1.5 Average

पिछले दिनों फिल्म ‘राजनीति’ के रूप में ‘महाभारत’ ने दर्शकों को काफी लुभाया और इस सप्ताह बारी है ‘रामायण’ की ‘रावण’ के रूप और जब फिल्म मणि रत्नम की हो तो अपेक्षाएं और बढ़ जाती हैं।

लेकिन अफसोस, इस बार यह दिग्गज फिल्मकार कहानी कहने की अपनी कौशल से दर्शकों को प्रभावित करने में कामयाब नहीं हो सका है।

‘रावण’ में अच्छाई और बुराई के कई दौर हैं, जैसे फिल्म का पहला एक घंटा बहुत ही उबाऊ और फीका है, जबकि मध्य भाग कुछ-कुछ दिल को छूता है, लेकिन अंत आते-आते और क्लाइमैक्स पर तो फिल्म धराशायी हो जाती है।

पुलिस अधिकारी देव (विक्रम) को एक खूबसूरत, सीधी-सादी नृत्यांगना रागिनी (ऐश्वर्य राय) से प्यार हो जाता है और फिर दोनों की शादी भी हो जाती है। उसके बाद देव की नियुक्ति उत्तर भारत के लाल माटी नामक इलाके में होती है, जहां कानून पुलिस का नहीं, बल्कि बीरा (अभिषेक बच्चन) का चलता है।

लेकिन देव अपनी युक्तियों से बीरा की दुनिया में दखल देता और उसमें हलचल मच जाती है। बीरा का काफी नुकसान होता है और फिर शुरू होती है बदले की कहानी। यह कहानी बीरा के साथ-साथ रागिनी और देव को भी जंगल में ले आती है और फिर शुरू हो जाता है अच्छाई और बुराई के बीच संघर्ष, देव और बीरा के बीच संघर्ष यानी राम और रावण के बीच संघर्ष।

अब आएं इस बात पर कि आखिर वे कौन-से मुद्दे हैं, जिन्होंने ‘रावण’ को कमजोर बना दिया है – सबसे पहले तो यह कि शीर्षक से ही दर्शकों को यह अपेक्षा होती है कि फिल्म रावण की तरह ही शक्तिशाली होगी, लेकिन बीरा रावण के उस रूप को साकार नहीं कर पाता, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर और बीमार व्यक्ति के रूप में ही उभरकर सामने आता है, जो इस चरित्र को भयानक बनाने के बजाय उस चरित्र का उपहास करता हुआ दिखाई देता है।

फिल्म के अंत से भी दर्शकों को संतुष्टि नहीं होती, लगता है कि फिल्म खत्म होने के बाद भी जबरदस्ती चल रही है। दूसरी ओर रागिनी के मन में बीरा के लिए कोमल भावनाएं जन्म लेने लगती हैं। इसे लेखन का दोष ही माना जाएगा कि ऐसे हालात बनाए गए कि उसमें बीरा के प्रति ऐसी भावनाएं पैदा होती हैं, क्यों? यह नहीं पता।

‘रावण’ का उजला पक्ष वह दृश्य है जिसमें निखिल का अपहरण होता है और फिर फ्लैशबैक दिखाया जाता है। बीरा द्वारा देव की जिंदगी में तूफान लाने के कारण सचमुच दमदार है।

एक पुल पर अभिषेक और देव के बीच होनेवाली लड़ाई का दृश्य लाजवाब है, इतना कि ऐसा दृश्य हिंदी फिल्मों के दर्शकों ने कभी देखा नहीं होगा। श्याम कौशल ने वैसे अपने हर एक्शन दृश्य में जान डाल दी है और ‘रावण’ के कई दृश्य दिल को झकजोर कर रख देते हैं। मुश्किल लोकेशनों पर शानदार और मनमोहक दृश्यों के फिल्मांकन का श्रेय संतोष सिवन और वी. मणिकानंद को जाता है।

ए. आर. रहमान का संगीत उत्कृष्ट है और फिल्म के अच्छे पक्ष में योगदान देता है। विजय कृष्णा आचार्य के संवाद बहुत ही प्रखर हैं और फिल्म की पृष्ठभूमि के हिसाब से बहुत अच्छे हैं।

अभिषेक ने ‘युवा’ और ‘गुरु’ में बेहतरीन काम किया था, लेकिन न जाने क्यों वे इस फिल्म में प्रभावित नहीं कर पाए हैं। उनकी संवाद अदायगी भी कहीं-कहीं अनुकूल साबित नहीं होती।

ऐश्वर्य राय अपनी भूमिका में अद्भुत हैं। उनकी नैसर्गिक खूबसूरती उभरकर सामने आई है। उन्होंने अपनी भूमिका दृढ़ विश्वास के साथ निभाई है।

विक्रम का अभिनय आला दरजे का है, लेकिन उनकी भूमिका पर्याप्त रूप से संतोषजनक नहीं है। गोविंदा किसी भी तरह से प्रभावित करने में नाकामयाब रहे हैं। निखिल द्विवेदी का अभिनय बहुत अच्छा है। रवि किशन और प्रियामणि ने भी प्रभावित किया है।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि मणि रत्नम के नाम से जुड़ी विशाल अपेक्षाएं ‘रावण’ से थीं, जो दर्शकों के मन पर खरी नहीं उतर सकीं यानी दर्शक फिल्म की विषय वस्तु से बुरी तरह निराश हो जाते हैं। व्यवसाय की दृष्टि से फिल्म की शुरूआत अच्छी हो सकती है, लेकिन एक तरफ कमजोर पटकथा और दूसरी तरफ ऊंची अपेक्षाओं के बीच ‘रावण’ की भयानक आवाज कहीं दबकर रह गई है। यह ‘रावण’ गरज नहीं सका है।