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ब्लू : प्लास्टिकी किरदार और कहानी
फिल्म समीक्षा

ऐसा क्यूँ होता है के जिस मूवी से हम इतनी उम्मीदें लगाते हैं और सालभर उसके आने की राह तकते हैं वही फिल्म हमें बोरियत से दाँतों से नाखून कतरने पर मजबूर कर देती है? ऐसा क्यूँ होता है के फिल्मकारों की टीवी पर बातें सुन कर, पत्रिकाओं में लेख पढ़ कर हम ये समझ बैठते हैं कि हम इस फिल्म को सिने से लगा रखेंगे, पर वही फिल्म स्वाइन फ्लू के विषाणू जैसे हमें दूर रहने के लिए मजबूर करती है?

ब्लू ..... ऐसी ही एक फिल्म है जो समंदर के अंदर की रंगीन दुनिया दिखाने के साथ-साथ 2 घंटे के रोमांचक सफ़र का वादा करती है। विश्वस्तरीय तंत्र और बेशुमार लागत से बनी ये फिल्म जिसे प्रचारित करने में सभी मुख्य कलाकारों ने जान लगा दी थी, क्या वह अपने वादों पे खरी उतरती है?