4.5 Excellent

हम सब जानते हैं कि ऐसा होता है, परंतु हमने कभी इस बारे में गम्भीरता से सोचा नहीं. गूगल पर "mms clip" खोज कीजिए और आपको ऐसी सैंकड़ों कड़ियाँ मिलेंगी जहाँ लड़कियों के अश्लील एमएमएस दिखाने का दावा किया जाता होगा. आज की युवा पीढ़ी नई तकनीकों का दुर्रपयोग कर रही है और इससे लोगों का निजी जीवन प्रभावित हो रहा है.

दिबाकर बैनर्जी की फिल्म लव सेक्स और धोखा ऐसी ही एक फिल्म है जो समाज में व्याप्त इस बुराई को प्रदर्शित करती है. दिबाकर एक ऐसे निर्देशक हैं जो अपनी हर फिल्म में कुछ नया करते हैं और अपनी छाप छोड़ते हैं. खोसला का घोसला से अपने निर्देशन की शुरूआत करने वाले दिबाकर की फिल्म ओये लकी लकी ओये असफल जरूर रही थी परंतु उन्होने एक सामान्य सी कहानी को एक अलग ही रूप दिया था. ऐसा ही कुछ लव सेक्स और धोखा में भी है.

फिल्म में 3 कहानियाँ है. एक फिल्म इंस्टिट्यूट में पढने वाला छात्र राहुल छोटी छोटी फिल्में बनाता है और उन फिल्मों की हिरोइन श्रृति से प्रेम करने लगता है. वे विवाह कर लेते हैं अच्छे भविष्य की कामना करते हैं. दूसरी ओर आदर्श नाम का एक युवक है जो एक नए डिपार्टमेंटल स्टोर में सुरक्षा कैमरे लगाता है. उसे अपना कर्ज चुकाने के लिए पैसा चाहिए और उसे यह विचार आता है कि क्यों ना गुप्त रूप से पोर्न फिल्म बनाई जाए. वह स्टोर में ही काम करने वाली एक लडकी रश्मी से पींगे बढाता है. तीसरी तरफ जीवन से निराश पत्रकार प्रभात है जो आत्महत्या करने पर उतारू है. उसकी मुलाकात नैना से होती है. वह भी आत्महत्या करना चाहती है. नैना लोकी लोकल नामक पोप स्टार से धोखा खा चुकी है. लोकी उसे अपने वीडियो में काम देने का वादा करता है. नैना उसके साथ सहशयन भी करती है, लेकिन बाद में वह मुकर जाता है. प्रभात और नैना लोकी लोकल का स्टिंग ओपरेशन करते हैं.

तीनों कहानियाँ अलग हैं परंतु एक दूसरे से कहीं ना कहीं जुड़ी हुई हैं. इनमें बॉलीवुड के प्रेम प्रकरणों, सेलिब्रिटियों के जीवन, अश्लील एमएमएस बनाने, बोयफ्रेंड के द्वारा ही धोखा दिए जाने, नवआगंतुक लडकियों का यौन शोषण आदि पर से पर्दा उठाया गया है.

सभी कलाकार नए हैं [स्थापित कलाकार ऐसी भूमिकाएँ करने से पहले दो बार सोचते] और सभी ने अच्छा अभिनय किया है. राहुल के रूप में आंशुमन झा, श्रृति, राजकुमार यादव आदि का अभिनय शानदार है. फिल्म का छायांकन भी बढिया है. पूरी फिल्म वास्तविक लगती हैं क्योंकि इस फिल्म को डिजिटली उतारा गया है. अधिकांश शूटिंग सीसीटीवी कैमरों से की गई लगती है. कई जगह हैंडिकैम का भी इस्तेमाल किया गया है. इसलिए अलग अलग तरह के कोण से दृश्य दिखाई देते हैं, इससे एक नया अनुभव होता है. नम्रता राव का सम्पादन भी अच्छा है. निर्देशक के रूप में दिबाकर बैनर्जी ने शानदार काम किया है.

यह फिल्म उन लोगों के लिए नहीं है जो नैतिकता पर आधारित फिल्म देखना चाहते हों. इस फिल्म में अच्छाई और बुराई या बुराई पर अच्छाई की जीत जैसा कुछ नहीं है. इस फिल्म में वही है जो आज हमारे आसपास घटित होता है और हमें पता नहीं चलता. यह समाज की कड़वी सच्चाई है.

इस फिल्म को पूरे परिवार के साथ बैठ कर नहीं देख सकते. परंतु वयस्कों को अवश्य देखनी चाहिए. मात्र 1.5 करोड़ के बजट से बनी यह फिल्म 'हट के" है.