बीते हफ़्ते 9 सितंबर को रिलीज हुई रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की फ़िल्म ब्रह्मास्त्र बॉक्स ऑफ़िस पर अपनी सफ़लता से इतिहास रच रही है । महज 3 दिनों में 120.75 करोड़ रु की कमाई करने वाली ब्रह्मास्त्र ने अपनी सफ़लता से, सोशल मीडिया पर फ़िल्म को लेकर चले बायकॉट ब्रह्मास्त्र ट्रेंड को भी झूठला दिया । हालांकि इससे पहले रिलीज हुई बॉलीवुड के सुपरस्टार कहे जाने वाले स्टार्स की बड़े बजट में बनी बहुप्रतिक्षित फ़िल्में जैसे- लाल सिंह चड्ढा, रक्षाबंधन बॉक्स ऑफ़िस पर फ़्लॉप साबित हुईं । इन फ़िल्मों को लेकर भी सोशल मीडिया पर बायकॉट ट्रेंड देखने को मिला था । सवाल उठता है कि क्या बायकॉट या खराब कंटेंट फ़िल्म के फ़्लॉप होने का कारण है ? इस बारें में मुंबई के मराठा मंदिर और गैटी गैलेक्सी थिएटर के मालिक और प्रतिष्ठित फ़िल्म एग्जीबिटर मनोज देसाई ने बॉलीवुड हंगामा के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत की जिसमें उन्होंने फ़िल्मों के फ़्लॉप होने की वजह का खुलासा किया ।

EXCLUSIVE: बायकॉट ट्रेंड के बावजूद बॉक्स ऑफ़िस पर रिकॉर्ड तोड़ कमाई कर रही ब्रह्मास्त्र ; फ़िल्म एग्जिबिटर मनोज देसाई ने कहा, ‘बायकॉट ट्रेंड नहीं फ़िल्म का खराब कंटेंट फ़िल्म को फ़्लॉप कराता है’

खराब कंटेंट फ़िल्म को फ़्लॉप बनाता है

थिएटर में जो फ़िल्में दर्शकों को आकर्षित नहीं कर पाती, उसका कारण फ़िल्म का खराब कंटेंट है । इस बारें में मनोज देसाई ने कहा, “सबसे पहले फ़िल्म का कंटेंट इसके बाद आर्टिस्ट को ये समझना चाहिए कि मैं प्रोफ़ेशनल हूं और मुझे प्रोफ़ेशनल एक्टिंग करनी है । मेरा पोर्शन इतना क्यूं, उसका ज्यादा क्यों, उसका कम क्यूं, ऐसा नहीं करना है । लोग कम पोर्शन के अंदर भी कमाल की एटिंग कर जाते हैं । आनंद में अमिताभ बच्चन का रोल बहुत छोटा था लेकिन फ़िल्म सुपर डुपर हिट हुई । क्योंकि इन फ़िल्मों का कंटेंट अच्छा था ।

फ़िल्ममेकर को दर्शकों के इमोशन के साथ खेलना चाहिए । उसको अपनी पर्सनल लाइफ़ की बातें याद आनी चाहिए । प्रोब्लम किस घर में नहीं होती लेकिन उनका सॉल्यूशन भी होता है और यही बात पहले की फ़िल्म में दिखाई जाती थी । लेकिन अब की फ़िल्मों में ऐसा कुछ नहीं दिखाते उन्हें बस अपनी फ़िल्म को रिलीज करने की लगती है । लेकिन इसका खामियाजा फ़िल्म डिस्ट्रीब्यूटर को भुगतना पड़ता है । इसलिए ऐसा मत करो । एकदिन फ़िर हम ऐसी फ़िल्मों को अपने थिएटर में ही नहीं लगाएंगे । इसके बजाए हम अपने थिएटर में गुजराती, मराठी, भोजपुरी या डबिंग फ़िल्में लगाएंगे और आपको भूल जाएंगे ।

असल में कंटेंट, स्टोरी, डायरेक्शन, एक्टिंग बायकॉट होती है । यदि इन सब चीजों में बॉलीवुड संभल जाए तो यह कहां से कहां पहुंच जाए । मेरे यहां मुगल-ए-आज़म 17 साल और दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे 27 सालों तक चली ।”