बॉलीवुड एक बार फ़िर सवालों के घेरे में आ गया है क्योंकि, बड़े-बड़े स्टार्स की मचअवेटेड फ़िल्में बॉक्स ऑफ़िस पर बुरी तरह से फ़्लॉप साबित हो रही है । लगातार फ़्लॉप हो रही फ़िल्मों ने ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिए वो क्या कारण है जिसकी वजह से बॉलीवुड फ़िल्मों को दर्शक नहीं मिल रहे हैं ? इतनी बड़ी-बड़ी फिल्मों की असफलता वास्तव में चिंताजनक है । बड़े मियां छोटे मियां, मैदान, चंदू चैंपियन, सरफिरा, औरों में कहां दम था जैसी फिल्मों की निराशाजनक परफ़ॉरेंस, फ़िल्म इंडस्ट्री के लिए अच्छा संकेत नहीं है । बड़े-बड़े स्टार्स होने के बावजूद, इन फिल्मों को दर्शक नहीं मिले । बॉलीवुड फ़िल्मों की खराब पर्फ़ॉर्मेंस ये सोचने पर मजबूर कर रही है कि, आखिर गड़बड़ी कहां है ?
लगातार फ़्लॉप हो रही बॉलीवुड फ़िल्में
एक प्रमुख वितरक ने वर्तमान स्थिति पर चर्चा करते हुए एक महत्वपूर्ण मुद्दे को उजागर किया: “इनमें से अधिकांश फिल्मों में मनोरंजन की कमी है । कौन उपदेश सुनने या बड़े पर्दे पर गंभीर, निराशाजनक ड्रामा देखने में रुचि रखता है ? मनोरंजन ही वह चीज है जो हमारे दर्शकों को सिनेमा हॉल तक ले जाती है।”
मैं भी यही मानता हूँ। एक अच्छी तरह से बनाई गई मनोरंजक फिल्म को कभी भी दर्शक नकारेंगे नहीं ।
सच कहूँ तो, कुछ भी नहीं बदला है। दशकों पहले, मनोरंजन के सम्राट मनमोहन देसाई जी के साथ बातचीत के दौरान, हिट मशीन ने मुझे स्पष्ट शब्दों में कहा था: “मैं पिक्चर क्रिटिक्स और अवॉर्ड्स के लिए नहीं, आम आदमी के लिए बनाता हूं । मैं चाहता हूं कि मेरे डिस्ट्रीब्यूटर और प्रदर्शक खुश रहें। मैं चाहता हूं कि मेरे दर्शक मेरी फिल्मों के माध्यम से रोलर कोस्टर की सवारी का आनंद लें । उन्हें एक पूरा पैकेज दें और वे बदले में आपको और आपकी फिल्म को पसंद करेंगे ।”
यह सच है। संपूर्ण मनोरंजन की कमी वाली फिल्मों को बार-बार टिकट खिड़कियों पर अस्वीकृति का सामना करना पड़ा है । मनोरंजन सफलता की कुंजी है और केवल अच्छी तरह से बनाई गई मनोरंजक फिल्में ही भविष्य में बॉलीवुड को उबरने में मदद कर सकती हैं ।
जब आप सिंगल स्क्रीन में चलने वाली फ़िल्मों को देखेंगे तो उसमें पठान, जवान, गदर 2, रॉकी और रानी की प्रेम कहानी और एनिमल जैसी फिल्मों को पसंद करने वाले ज्यादा मिलेंगे बजाए धीमे, नीरस ड्रामा फ़िल्मों को जिन्हें कुछ खास दर्शक और चुनिंदा फ़िल्म क्रिटिक्स ही पसंद करते हैं ।
ऐसी फिल्में बनाना जरूरी है जो पूरे भारत के दर्शकों को आकर्षित करें, शहरी केंद्रों के साथ-साथ छोटे शहरों के सिंगल स्क्रीन पर भी दर्शक जुटाने की क्षमता रखती हों । हमें देसी मनोरंजन की जरूरत है जो हर वर्ग के लोगों से जुड़ सके । केवल चुनिंदा महानगरों या मुट्ठी भर शहरों पर ध्यान केंद्रित करना पर्याप्त नहीं होगा । जितनी जल्दी हम इस दृष्टिकोण को अपनाएंगे, उतना ही यह पूरी फिल्म बिरादरी के लिए बेहतर होगा ।
लेकिन पिक्चर अभी बाकी है। स्वतंत्रता दिवस पर कई उल्लेखनीय फिल्में एक साथ दिखाई देंगी । मैं आशा करता हूं और प्रार्थना करता हूं कि अच्छे दिन एक बार फिर लौट आएं ।