3.5 Very Good

शायद रामगोपाल वर्मा यह फिल्म देखना चाहें. विक्रम भट्ट की यह लगातार तीसरी फिल्म है जिसमें वे दर्शकों को डराने का प्रयत्न करते हैं, और इस बार वे सफल भी होते हैं. उनकी पिछली दो फिल्में राज और 1920 भी भूतिया फिल्में थी लेकिन वे इतनी डरावनी नहीं थी. परंतु शापित वाकई में डराती है.

फिल्म की कहानी में नयापन नहीं है. जैसा कि हर भूतिया फिल्म में होता है, भूतकाल में हुई कोई घटना वर्तमान को प्रभावित करती है. शापित में भी ऐसा ही कुछ है. अमन [आदित्य नारायण] काया [श्वेता अग्रवाल] से प्रेम करता है और उससे सगाई कर लेता है. सगाई के बाद दोनों लम्बी ड्राइव पर जाते हैं. श्वेता ने अपनी उंगली में सगाई की अंगूठी पहन रखी है. अचानक उनकी कार सड़क से उतर जाती है और दुर्घटना में दोनों घायल हो जाते हैं. काया के अभिभावक अस्पताल आते हैं जहाँ काया के पिता [मुरली शर्मा] काया की अंगूठी देखते हैं.

उसके पिता बताते हैं कि उनका परिवार शापित है. वर्षों पहले एक पंडित ने शाप दिया था कि उनके परिवार की किसी भी बेटी का विवाह नहीं हो पाएगा.

उस बात को 300 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन आत्माएँ उस शाप को जीवित रखे हुए है.

अमन पशुपति [राहुल देव] से मिलता है जो उसकी मदद करने को राजी होता है. अमन को पता है कि उसका रास्ता खतरों से भरा है लेकिन वह अपने प्रेम के लिए जान की बाज़ी लगाता है.

फिल्म में कई दृश्य वाकई में डरावने बने हैं और दर्शकों के रौंगटे खड़े कर देते हैं. इस फिल्म के विशेष प्रभाव भी काफी अच्छे हैं. कहना होगा कि तकनीकी रूप से फिल्म काफी सक्षम बनी है.

आदित्य नारायण गायकी में स्थान नहीं बना पाए, परन्तु अभिनय की दुनिया में बना सकते हैं. अपनी पहली फिल्म में वे प्रभावित करते हैं. राहुल देव भी जमते हैं.

विक्रम भट्ट अब हॉरर फिल्मों के सबसे अच्छे निर्देशक बन गए लगते हैं. उन्होनें इस फिल्म में काफी मेहनत की है.

फिल्म के कुछ दृश्य और कहानी हजम नहीं होती. काया शापित है परंतु फिर भी वह अंगुठी वाला लॉकेट पहने रखती है, यह बात हजम नहीं होती. फिल्म कई जगह बोझिल होने लगती है.

हॉरर फिल्मों के प्रशंसकों को यह फिल्म पसंद आएगी. एक बार देख सकते हैं.