4.5 Excellent

जिस फिल्म के साथ आमिर खान का नाम जुड़ जाता है, उस फिल्म से कुछ खास पाने की उम्मीद की जाती जा सकती है। अनुशा रिजवी द्वारा निर्देशित ‘पीपली लाइव’ एक तीखा व्यंग्य है किसानों की आत्महत्या, उसमें वोट के भूखे राजनीतिज्ञों की भूमिका तथा किसी तरह अपनी टीआरपी बढ़ाने को बेताब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर।

किसानों की आत्महत्या जैसे गंभीर और विचारशील विषय पर एक व्यंग्य के रूप में ज्यादा शक्तिशाली व सार्थक संदेश देती है फिल्म ‘पीपली लाइव’।

हमारे समाज में बुरी खबरें तो सुर्खियों में छा जाती हैं, लेकिन ज्वलंत मुद्दे कहीं पीछे छूट जाते हैं। यह फिल्म भारत के गरीब से गरीब लोगों की दुखद जीवन और पलायन की गाथा है, लेकिन इस पर राजनीति की रोटियां सेंकनेवालों की कमी नहीं है। राजनीतिज्ञ, बिचौलिए, सरकारी बाबू, मीडिया और आसपास के लोग सभी अपने-अपने लाभ की जुगत में रहते हैं।

इस फिल्म का बेहतरीन पहलू यह है कि यह न संदेशात्मक है और न ही इस समस्या का कोई समाधान पेश करती है। इसका काम बस इतना ही है कि यह हमारे देश के वर्तमान हालात को बड़ी ही सादगी के साथ प्रस्तुत करती है।

नत्था (ओमकार दास माणिकपुरी) ग्रामीण भारत के एक गांव पीपली का गरीब किसान है। सरकारी कर्ज न चुका पाने के कारण उसकी जमीन जब्त होनेवाली है। लेकिन एक सरकारी योजना ही उसके लिए राहत लेकर आती है। योजना यह है कि कर्ज के बोझ के दबाव से आत्महत्या करनेवाले किसानों के परिजनों को सहायता राशि दी जाएगी। बस, नत्था भी आत्महत्या की योजना बना लेता है और उसका भाई रघुवीर यादव उसके इस अनोखे कारनामे को प्रोत्साहित करता है।

ऐसे में राजनीतिज्ञ, सरकारी बाबू, बिचौलिए और मीडिया अपने-अपने हिस्से का लाभ लेने के लिए उमड़ पड़ते हैं। यहां तक कि उसके परिवार में भी उसकी आत्महत्या को लेकर एक अजीब-सी स्थिति बन जाती है।

टीवी पत्रकार इस बात की तहकिकात में लगे रहते हैं कि ऐसे हालात में नत्था की दिमागी हालत कैसी है। किसी को भी नत्था की नहीं पड़ी है।

पहली बार निर्देशक बनीं अनुशा रिजवी ने फिल्म के विषय को किसी मंझे हुए निर्देशक की तरह बड़ी ही कुशलता से पेश किया है। उनकी पटकथा कसी हुई और हास-परिहास से भरपूर है। इस तरह के कठिन विषय को उन्होंने पूरी जिम्मेदारी से संभाला है। यह फिल्म अन्य बॉलीवुड फिल्मों की तरह बिल्कुल नहीं है। इस फिल्म ने एक अछूते विषय को पूरी संवेदनशीलता और परिपक्वता के साथ रुपहले पर्दे पर उतारा है। फिल्म का अंत भी बहुत ही सटीक और कहानी के अनुरूप है।

फिल्म का संगीत कई कलाकारों द्वारा तैयार किया गया है, जिसमें भारत के लोकसंगीत और लोकगीतों की मीठी चाशनी घुली हुई है। संवाद बहुत ही वास्तविक हैं और अच्छा प्रभाव पैदा करते हैं।

ओमकार दास माणिकपुरी ने नत्था के रूप में उत्कृष्ट काम किया है। रघुवीर यादव ने एक मौकापरस्त भाई के किरदार में जान भर दी है। मलाइका शिनॉय ने टीवी रिपोर्टर के रूप में दिल जीत लेनेवाली भूमिका निभाई है। नत्था की मां के रूप में फारूख जाफर ने असाधारण अभिनय किया है। नसीरुद्दीन शाह ने एक धूर्त और चतुर राजनीतिज्ञ के रूप में आला दर्जे की अदाकारी की है।

आखिर में यह कि फिल्म ‘पीपली लाइव’ निर्माता आमिर खान के नाम और उनकी साख के बल पर दर्शकों को सिनेमाघरों में खींचेगी और ऐसा हो जाए तो फिर यह तय है कि फिल्म खुद ही बोलने लगेगी। इस फिल्म में इतना दम है कि यह न सिर्फ भारतीयों को पसंद आएगी, बल्कि विदेशों में भी इसे खूब सराहना मिलेगी। फिल्म लाजवाब है और इसे देखने से चूकना नहीं चाहिए।