शाहरुख खान-दीपिका पादुकोण और जॉन अब्राहम की फ़िल्म पठान का जब से टीज़र, गाने और ट्रेलर रिलीज़ हुआ है तब से यह फ़िल्म विवादों से घिर गई है । फ़िल्म के आपत्तिजनक दृश्यों से नाराज़ लोग लगातार पठान का विरोध कर रहे हैं । इतना ही नहीं कई लोग़ तो शाहरूख खान स्टारर पठान को धर्म से भी जोड़कर देख रहे हैं । पठान में दीपिका पादुकोण की ओरेंज बिकिनी, जिसेभगवा बिकनीकहा जा रहा है, ने धार्मिक समूहों की भावनाओं को आहत किया । यहाँ तक कि शिकायत दर्ज कराई गई है कि पठान का गानाबेशर्म रंगहिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करता है । नतीजतन सोशल मीडिया पर पठान का बायकॉट ट्रेंड शुरू कर दिया । पठान को लेकर हो रहे इसी विरोध पर मुंबई के मराठा मंदिर और गैटी गैलेक्सी थिएटर के मालिक और प्रतिष्ठित फ़िल्म एग्जीबिटर मनोज देसाई ने बॉलीवुड हंगामा के साथ हुए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में खुलकर बात की । मनोज देसाई ने कहा कि, फ़िल्मों को धर्म से जोड़ना ग़लत है । 

EXCLUSIVE: शाहरूख खान की पठान का धर्म के नाम पर हो रहे विरोध पर मनोज देसाई ने कहा, “दिलीप कुमार की मुग़ल-ए-आज़म और शाहरूख की ही दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे तो इतने साल चली थिएटर में”

शाहरूख खान की पठान को धर्म से जोड़ना ग़लत

इंटरव्यू के दौरान जब मनोज देसाई से पूछा गया कि क्या पठान एक मुस्लिम फ़िल्म है ? तो इसके जवाब में उन्होंने कहा, “मैं बोलता हूँ की ये ग़लत है । यदि धर्म को बीच में लाना था तो दिलीप कुमार साहब की फ़िल्म मुग़ल--आज़म 17 साल चली थी यहां पर । शाहरुख़ की ही दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे 28 साल चली । एक्टर एक्टर होता है उसमें जाति या धर्म नहीं देखा जाता । और जो देखते हैं मेरी उनसे नम्र विनती है की फ़िल्मों में धर्म मत देखो । ये सिर्फ़ मनोरंजन है ।

द डर्टी पिक्चर में विद्या बालन का डायलॉग था- फ़िल्म इंडस्ट्री क्या है एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट । वही देखो बस । इसमें कौन हिंदू काम कर रहा है कौन मुस्लिम काम कर रहा है ये मत देखो । आप अपने दिमाग़ को फ़्रेश करने के लिए फ़िल्म देखने जाते हैं तो फ़िल्म को धर्म से जोड़कर मत देखो । मैं किसी एक साइड नहीं हूं बल्कि दोनों साइड हूं, इसलिए किसी को मेरी बातों का बुरा न लगे । मैं हिंदुओं की भी साइड हूं और मुस्लिमों की साइड भी हूं । क्योंकि मेरे लिए दोनों बराबर हैं । और हिंदू-मुस्लिम ही क्यों क्रिश्चियन भी हैं, पंजाबी भी हैं, मराठी और साउथ भी है । हर किसी को हर तरह की फ़िल्मों का सम्मान करना चाहिए । और किसी भी फ़िल्म को किसी भी जाति से तुलना मत करो ।