90 के दशक के पॉपुलर सिंगर कुमार शानू ने हिंदी फ़िल्मों में ऐसे कई हिट गाने दिए हैं जो आज भी लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं । एक दिन में 28 सॉन्ग गाने का रिकॉर्ड बनाकर अपना नाम गिनीज बुक में दर्ज कराने वाले कुमार शानू आज भी लोगों के दिलों पर राज करते हैं । 90 के दशक में मशहूर प्लेबैक सिंगर कुमार सानू का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलता था । लेकिन अब हिंदी फ़िल्मों में कुमार शानू की आवाज कम ही सुनने को मिलती है । वहीं कुमार सानू का भी मानना है कि, आज के समय की फ़िल्मों में गाने सेकेंडरी हो गए हैं जबकि 90 के दशक में गाने और फ़िल्म का म्यूजिक फ़िल्म की जान हुआ करता था । हाल ही में बॉलीवुड हंगामा के साथ हुई बातचीत में कुमार ने कहा पहले के समय में म्यूज़िक के पैसे से फ़िल्म की शूटिंग का पैसा वसूल हो जाता था लेकिन अब तो फ़िल्म में गाना हो या न हो कुछ फ़र्क नहीं पड़ता ।

EXCLUSIVE: आज की फ़िल्मों में गानों को सेकेंडरी करने पर कुमार शानू ने नाराजगी जताई ; कहा-“पहले म्यूजिक के पैसे से फ़िल्म की शूटिंग का पैसा वसूल हो जाता था ; दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे को सिर्फ़ अपने म्यूज़िक ट्रेक को बेचकर 2 करोड़ रू मिले थे”

आज की फ़िल्मों में गानों को सेकेंडरी कर दिया- कुमार शानू

बॉलीवुड हंगामा के साथ हुई बातचीत में कुमार ने फ़िल्मों में गानों की महत्ता पर बात करते हुए कहा, “आज के समय में मेकर्स को गानों में नया साउंड चाहिए और उसके चक्कर में वो तिकड़म करके वेस्टर्न म्यूज़िक से साउंड उठा लेते हैं । सबसे बड़ी प्रोब्लम आज के समय की हो है वो ये कि, गाने को सेकेंडरी कर दिया है । हमारे समय क्या होता था कि पहले गाना रिलीज़ होता था और उसे सुनकर पब्लिक थिएटर में फ़िल्म देखने आती थी । लोगों को थिएटर तक लाने का काम हम लोगों का था यानी म्यूज़िक का था । थिएटर को भरने का काम म्यूज़िक करता था । पहले गाना सुपर डुपर हिट होता था फिर लोग फ़िल्म देखने आते थे । ऐसी भी फ़िल्में रही हैं जिसमें फ़िल्म नहीं चली लेकिन गाने सुपर डुपर हिट रहे । आज के समय में क्या हो गया है कि, गाने को सेकेंडरी कर दिया है यानि फ़िल्म में गाना होगा तो भी चलेगा और नहीं होगा तो भी चलेगा । उस समय फ़िल्म की कहानी के साथ-साथ गाना चलता था । गाना अपने आप में एक आवश्यक चीज था फ़िल्म की । मेकर्स को भी गाना बेचकर बहुत ज्यादा पैसा मिलता था ।

दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे को ख़ाली अपने म्यूज़िक ट्रेक, जिसमें 6 गाने थे, को बेचकर 2 करोड़ रू मिला था । एक म्यूज़िक के पैसे से फ़िल्म की शूटिंग का पैसा वसूल हो गया था । तो उस समय म्यूज़िक बहुत पावरफ़ुल हुआ करता था । आज के समय में फ़िल्मों में गाना बस फ़िलर के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है । इसलिए ज्यादा से ज्यादा फ़िल्में फ्लॉप हो रहीं हैं । गाने भी एक महीने चलाते हैं या 15 दिन चलते हैं बस । इसके बाद दूसरे गाने आकर उनकी जगह ले लेते हैं । लेकिन हमारे समय में एक गाना रहेगा और उसके बाद दूसरा आएगा तो पुराने वाले को कोई नहीं भूलेगा । आशिक़ी के रहते हुए साजन आया, साजन के रहते हुए दीवाना आया, फिर सड़क, बाज़ीगर कितनी ही फ़िल्में आई लेकिन इन फ़िल्मों के हर गानों ने अपनी एक अलग जगह बनाई । लेकिन आज कल के गाने भूलने लायक़ बन रहे हैं ।”

कुमार शानू को बॉलीवुड में मेलोडी का बादशाह कहा जाता है । हिंदी के अलावा, उन्होंने मराठी, नेपाली, असमिया, भोजपुरी, गुजराती, मणिपुरी, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, तमिल, पंजाबी, उड़िया, छत्तीसगढ़ी, उर्दू, पाली, अंग्रेजी और उनकी मूल भाषा बांग्ला सहित अन्य भाषाओं में भी गाया है । उन्होंने 1990 से 1994 तक लगातार पांच फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने का रिकॉर्ड बनाया । भारतीय सिनेमा और संगीत में उनके योगदान के लिए उन्हें 2009 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था ।