26 जनवरी 2003 से, महाराष्ट्र के सभी सिनेमा थिएटरों के लिए राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य हो गया था । इसके बाद, नवंबर 2016 में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित किए गए फैसले को पूरे देश के सिनेमा थिएटर पर लागू कर दिया गया । और फ़िर इस आदेश ने इस बहस को जन्म दिया कि सिनेमाघर में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य है या नहीं । जहां कुछ लोग इसके समर्थन में थे वहीं कुछ इसके खिलाफ़ थे । जो खिलाफ़ थे उनके अनुसार, यूं जबरदस्ती किसी पर देशभक्ति थोपना अच्छा नहीं है हर चीज का एक तरीका होता है । इतना ही नहीं, राष्ट्रगान बजते समय सीटे पर बैठे रहने के कारण कई जगहों पर लोगों के साथ मारपीट की घटनाएं भी आईं थी । इसके बाद, फिर एक चौंकाने वाली घटना सामने आई, एक थियेटर में राष्ट्रगान के दौरान खड़ा न होने के कारण गुवाहाटी में एक व्हीलचेयर वाले आदमी को खूब मारा-पीटा गया ।

लेकिन अब राष्ट्रगान को अनिवार्य रूप से बजाने के खिलाफ़ आए लोगों के लिए राहत की खबर है । सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि देशभर के सिनेमाघरों में फ़िल्म दिखाने से पहले राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नहीं है । सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला केंद्र सरकार की ओर से भेजे गए एक हलफनामे के बाद लिया है । गौरतलब है कि 23 अक्टूबर, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा कि सिनेमाघरों और अन्य स्थानों पर राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य हो या नहीं, ये वो तय करे । इस संबंध में कोई भी सर्कुलर जारी किया जाए तो सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश से प्रभावित ना हों । सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि ये भी देखना चाहिए कि सिनेमाघर में लोग मनोरंजन के लिए जाते हैं, ऐसे में देशभक्ति का क्या पैमाना हो, इसके लिए कोई रेखा तय होनी चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस तरह के नोटिफिकेशन या नियम का मामला संसद का है. ये काम कोर्ट पर क्यों थोपा जाए?

केंद्र ने कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि इस मुद्दे पर इंटर मिनिस्ट्रियल कमिटी का गठन किया गया है ताकि वह नई गाइडलाइंस तैयार कर सके । सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई करते हुए सरकार के हलफनामे को स्वीकार कर लिया । कोर्ट ने कहा कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने संबंधी अंतिम फैसला केंद्र द्वारा गठित कमिटी लेगी । सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही कहा कि कमिटी को सभी आयामों पर व्यापक रूप से विचार करना चाहिए। इस फैसले के बाद फिल्म से पहले राष्ट्रगान बजाना या न बजाना सिनेमाघरों के मालिकों की मर्जी पर निर्भर होगा । कोर्ट ने कहा कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के दौरान खड़े होने से दिव्यांगों को छूट मिलती रहेगी । राष्ट्रगान पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश और केंद्र के रवैये पर कई लोगों द्वारा सवाल उठाए गए थे। कहा गया था कि लोग मनोरंजन के लिए फिल्म देखने जाते हैं, वहां उनपर इस तरह देशभक्ति थोपी नहीं जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी पिछले साल 23 अक्टूबर को हुई सुनवाई के दौरान कहा था कि राष्ट्रगान नहीं गाने को राष्ट्र विरोधी नहीं कहा जा सकता है। देशभक्ति दिखाने के लिए राष्ट्रगान गाना जरूरी नहीं है। साथ ही कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि देशभक्ति के लिए बांह में पट्टा लगाकर दिखाने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने संकेत दिया था कि वह 2016 में राष्ट्रगान मामले में दिए फैसले की समीक्षा कर सकता है ।

गौरतलब है कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के मुद्दे पर श्याम नारायण चौकसे नाम के एक व्यक्ति ने याचिका दायर की थी । उनका कहना था कि किसी भी कारोबारी काम के लिए राष्ट्रगान के चलन पर रोक लगनी चाहिए और मनोरंजन आदि के शो में राष्ट्रगान का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए । याचिका में यह भी कहा गया था कि एक बार शुरू होने पर राष्ट्रगान को आखिरी तक गाया जाना चाहिए और बीच में बंद नहीं किया जाना चाहिए ।