उम्मीदें ?

इस साल की सबसे बड़ी फ़िल्मों में से एक (सुल्तान - अली अब्बास ज़फ़र ) । सबसे बड़ा प्रोडक्शन हाउस (यश राज फ़िल्म्स ) । सबसे बड़ा सुपरस्टार ( सलमान खान ) । बड़ी संगीतकार जोड़ी में से एक ( विशाल-शेखर ) । शीर्ष गीतकारों में से एक ( इरशाद कमली ) । यह 9 गानों की एक बेहतरीन पेशकश है । क्या उम्मीद कर सकते हैं ? एक बहुत ही स्वस्थ और अपनेआप में संपूर्ण गीतों का संग्रह जिसने अपना काम फ़िल्म की कहानी का हिस्सा बन के बखूबी किया, न कि फ़िल्म में जबरदस्ती डाले गए जुगाड़ों गानों के संग्रह जैसा ।

संगीत

एलबम के लिए यह एक हरियाणवी शुरुआत है और जल्द ही 30 सेकंड के भीतर विशाल डडलानी अपनी प्रचंड आवाज देने के लिए एक आनंद मचानेवाला गाना 'बेबी को बेस पसंद है' की शुरूआत करते हैं । हरियाणवी टोन का विलय और पश्चिमी स्टाइल के साथ सेटिंग बिठाना , आश्चर्यजनकरूप से अच्छी तरह काम किया और साथ ही गाने में शालमली खोलगड़े और इशिता की आवाज़ और भी जान डाल देती है । यह गीत क्षणीक विजेता है और एक पल के लिए कनेक्ट कर लेता है । जबकि ये गीत एक अद्भुत प्रवाह रखता है , गाने का रैप भाग बादशाह द्दारा गाया गया जो अनावश्यक शुरूआत के साथ बालक जैसा दिखता है । हालंकि, दो-तीन बार इस गाने को सुनने के बाद, अंततः यह गाना जुबान पर चढ़ जाता है । चार्टबस्टर

अगला गाना जो ज्यादा खबरों में रहा 'जग घूमया' जिसका एक संस्करण अरिजीत सिंह ने गाया था । हालांकि, ये गानों की एलबम में शामिल नहीं है बाद में यही गाना राहत फ़तेह अली खान ने गाया , जबकि कोई यह नहीं बता सकता कि अरिजीत की आवाज़ में गाया गया ये गाना सुनने में कैसा लग रहा होगा, तथ्य यह है कि इस प्रेम गीत को राहत ने बहुत अच्छा गाया है और यह गाना एक निश्चित ठहराव के साथ समेकित रूप से बहता चला जाता है । एक सुंदर मधुर नंबर जो कि आने वाले वर्षों में भी सुना जाना चाहिए (और न कि केवल एक पल के चार्टबस्टर के रूप में ), इसके बाद नेहा भसीन द्दारा अनप्लग संस्करण के रूप में भी पहुंचता है । , यह और भी अधिक पारंपरिक का अनुभव होता है और अच्छी तरह से फिर से फिट बैठता है।

फ़िल्म का '440 वोल्ट' शीर्षक वाला गाना फ़िल्म में एक टपोरी नंबर की छाप देता है । डिश एंटीना, सिगनल, अर्जेंटीना जैसे शब्दों के साथ जो सुल्तान में आपको मिलता है ये वो है । वास्तव में, इस गाने को सुनने के एक मिनिट के भीतर आपको ऐसा लगेगा कि आप सीधे दबंग 3 में प्रवेश कर गए । यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे लयबद्ध और स्माइल थ्रु नंबर्स इस फ़िल्म में फ़िट बैठते हैं । वैसे ये मानना पड़ेगा कि अपनी खुली आवाज़ के लिए जाने जाने वाले मीका सिंह इस बार काफ़ी अलग अंदाज़ में दिखे, और इस गाने में जिसका 'अंतरा', 'मुखड़ा' से बेहतर है, उनकी अदायगी काफ़ी गंभीर रही ।

अब आते हैं सुल्तान के शीर्षक गीत 'सुल्तान' पर, जिसे शादाब फ़रीदी ने मुखड़े में ही एक महाकाव्य जैसा अनुभव दे दिया है । और इस के तुरंत बाद, सुखविंदर सिंह ने अपनी आवाज़ देते हुए देखे जाते हैं । जब संगीत की बात करें तो गिटार और ड्रम की जुगलबंदी धमाल मचा सकती है अगर उसे अत्याधुनिक डॉल्बी सिस्टम से युक्त थिएटर में सुना जाए । पाशाचात्य वाद्ययंत्रों का इस्तेमाल करके बनाया गया ये देशी गीत फ़िल्म में कई बार बजता है और एक थीम गीत का अनुभव कराता है । इस गीत का एक दूसरा वर्जन 'रैज ऑफ़ सुल्तान' के नाम से एक गंभीर अंदाज़ में शुरू होता है और इस वर्जन को आवाज़ दी है शेखर रावजियानी ने । एक अच्छा प्रयोग है ।

अगला गाना एक फ़न गीत है 'सच्ची मुच्ची' जो सेट होने के लिए वास्तव में काफ़ी लंबा समय लेता है । अब तक के साउंडट्रेक की तुलना में यह गाना वास्तव में पूरी तरह से अलग मूड, मंच और सेटिंग में है । मासूम अनुभव के साथ यह बर्फ़ी मोड में अधिक लगा, जो मीठी और सरल सैर के लिए मोहित चौहान और हर्षदीप कौर के साथ एकसाथ आया । यह गाना सुनने में इतना बुरा नहीं लगता , यह सिर्फ़ इतना है कि आप जारी रखने के लिए सुल्तान को महसूस करना चाहते हो ।

एक अलग तरह से शुरू होता है अगला गाना 'बुल्लाया' पापोन की आवाज़ में प्राप्त होता है । हर कोई आश्चर्य में पड़ जाएगा कि कैसे यह गाना कुछ सेकेंड में रफ़्तार पकड़ लेता है , गाने का सूफ़ी साउंड इस गाने को एक अलग पहचान देता है । एक संक्षिप्त विराम के बाद, पापोन माइक के पीछे लौटता है और तब आप एक सुंदर-मधुर ध्वनि के साथ एकीकृत आवाज़ के रूप में एक संगीत का जादू सुनते हैं > आपके पैरों को थपथपाने के बजाए ये गाना 'बुल्लाए' एक धीमा गीत है जो कि अंततः लंबे समय के लिए आपकी जुबान पर चढ़ जाता है ।

इस एलबम का हाई गीत है 'टुक टुक' जो कि एक हरियाणवी पृष्ठभूमि से युक्त है और तुरंत कनेक्ट करने के लिए उपयुक्त है । यदि आपने 'घनी बाबरी गो गई ' [तनु वेड्स मनु रिटर्न] गाना पसंद किया था तो आप निश्चितरूप से इस गाने को भी पसंद करेंगे , जो कि नूरा सिस्टर्स ने गाया है और उन्होंने एक बार फ़िर एक गायक के तौर पर अपना अमिट प्रभाव छोड़ते हुए जादू कर दिया है । वास्तव में उल्लेखनीय है तथ्य यह है किं प्रादेशिक अनुभव के बजाए यह सर्वोत्कृष्ट विशाल-शेखर ध्वनि के रूप में अच्छा लगा , ऐसा कुछ है जो आगे बढ़ाने के रूप में सभी को और अधिक खास बनाने के लिए रखता है । जबकि विशाल डडलानी भी एक रैपर की चिप्स के रूप में है, यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कि कैसे दो अलग-अलग संगीत के दिग्गज यहां एकीकृत होते हैं ।

कुल मिलाकर

सुल्तान के संगीत ने इस बार बाजी मार ली है । काफ़ी वक्त के बाद एक फ़िल्म, एक साउंडट्रेक जैसे एहसास की अनुभूति हुई है, बजाए इसके की पूरी फ़िल्म अलग-थलग गानों से भरी पड़ी है । विशाल-शेखर के बारें में कहा जा सकता है कि देर आए दुरुस्त आए, क्योकि कंपोजर के तौर पर इरशाद कमली के साथ मिलकर वो कुछ ऐसा लाए हैं जो वो खुद पहले कभी नहीं लाए । उनकी सबसे बड़ी सफ़लता इसमें है कि उनके गीत इस बार सच में संगीतमय हैं न कि सिर्फ़ रिंगटोन ।

हमारा चयन

'बेबी को बेस पसंद है', 'जग घूमए', 'सुल्तान', 'बुल्लाए', 'टुक टुक'