मनोज बाजपेयी अपनी पिछली थिएट्रिकल रिलीज जोरम के बॉक्स ऑफिस पर परफॉर्म नहीं करने से ख़ासे अपसेट हैं । और इसका ज़िम्मेदार वह फ़िल्म की मार्केटिंग स्ट्रेटजी को बता रहे हैं । मनोज बाजपेयी ने अपनी बात एक्सप्लेन करते हुए कहा, “जोरम को लिमिटेड स्क्रीन्स में रिलीज करने का फ़ैसला निर्माता ज़ी स्टूडियो का था । मुझे इस मामले में कुछ नहीं कहना था । व्यक्तिगत रूप से, मुझे लगता है कि जोरम को बहुत बड़ी रिलीज मिलनी चाहिए थी । मुझे लगता है कि इसमें सफल होने की क्षमता थी । 12वीं फेल को देखें और कैसे विधु विनोद चोपड़ा और ज़ी स्टूडियोज़ ने इसे मार्केट किया । इसकी सफलता आंखें खोलने वाली है । सभी बड़े बजट की एक्शन फिल्मों के बीच, 12वीं फेल ने बाज़ी मार ली और सफल फ़िल्म बनकर उभरी । मुझे लगता है कि जोरम में 2023 की एक और ब्रेकआउट फिल्म बनने की क्षमता थी ।

बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही जोरम की मार्केटिंग स्ट्रेटजी से खुश नहीं मनोज बाजपेयी ; “अगर थिएटर में फ़िल्म होगी ही नहीं तो लोग कैसे देखने आएंगे हमारी फ़िल्म”

जोरम की मार्केटिंग से खुश नहीं मनोज बाजपेयी

हालांकि इतना कहने के बाद, मनोज पिछले साल रिलीज़ हुई फिल्मों को मिली प्रतिक्रिया से खुश हैं । “2023 की बड़ी फिल्मों के सामने टिकना आसान नहीं है । यह स्पष्ट है कि दर्शकों ने उन फिल्मों का आनंद लिया जिन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया (जवान, पठान, गदर 2, एनिमल) और हम दर्शकों की पसंद के साथ बहस करने वाले कौन होते हैं ? हम बस इतना कर सकते हैं कि एक अलग तरह का मनोरंजन पेश करें, उम्मीद है कि दर्शकों को बड़ी ब्लॉकबस्टर फिल्मों के अलावा कुछ और भी पसंद आएगा । लेकिन इसके लिए हमें सबसे पहले अपनी फिल्मों को सिनेमाघरों में उपलब्ध और दृश्यमान बनाना होगा । अगर थिएटर में होगी ही नहीं तो हमारी फिल्म कैसे देखने आएंगे लोग ।

हाल की कुछ ब्लॉकबस्टर फिल्मों की हिंसक महिला विरोधी कंटेंट पर हो रहे हंगामे के बारे में बोलते हुए, मनोज ने कहा कि, “देखिए, इस पर मेरी राय सरल है । यदि सिनेमा में समाज को बदलने और मानसिकता को पुनर्व्यवस्थित करने की शक्ति होती तो अब तक देश में राम राज्य हो गया होता । राज कपूर, वी शांताराम, बिमल रॉय और मेहबूब खान जैसे फिल्म निर्माताओं ने महान सुधारवादी फिल्में बनाईं । क्या उन्होंने सामाजिक संरचना और पूर्वाग्रहों को थोड़ा सा भी बदला ? क्या बिमल रॉय की सुजाता ने जातिगत भेदभाव को कम किया ? क्या शांताराम की दो आंखें बारह हाथ से जेलों में सुधार आया ? मेरा मानना है कि सिनेमा मुख्य रूप से मनोरंजन के लिए है । फ़िल्में, चाहे उनके विश्वदृष्टिकोण में कितनी भी नकारात्मक क्यों न हों, लोगों के सोचने के तरीके को नहीं बदल सकतीं ।