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चार साल पहले, सोनम कपूर ने अपनी फ़िल्म डॉली की डोली [2015] में अपने कॉमिक अंदाज से हर किसी को हैरान कर दिया था । इस फ़िल्म की कहानी एक ऐसी महिला के इर्द-गिर्द घूमती है जिसमें नवविवाहित महिला अपने दुल्हे का सारा पैसा लेकर भाग जाती है । और अब इतने सालों बाद जेंडर बदलते हुए अरशद वारसी ने अपनी इस हफ़्ते रिलीज हुई फ़िल्म फ्रॉड सैंया में इसी तरह का किरदार निभाया है । यह काफ़ी देर से आई फ़िल्म है लेकिन सौभाग्य से मेकर्स को ये फ़िल्म पुरानी नहीं लगती है । तो क्या फ्रॉड सैंया एक मजेदार फ़िल्म साबित होगी या यह अपने प्रयास में विफ़ल होती है । आइए समीक्षा करते है ।

फ़िल्म समीक्षा : फ्रॉड सैंया

फ्रॉड सैंया एक ऐसे आदमी की कहानी है जिसकी कई सारी पत्नियां हैं । भोला प्रसाद त्रिपाठी (अरशद वारसी) एक ठग है, जो महिलाओं से शादी करता है और फिर उनके पैसों को लेकर भाग जाता है । वह 12 से अधिक महिलाओं से शादी कर चुका है और अब उसे अपने अगले शिकार की तलाश है । वह अपनी पत्नी सुनीता (दीपाली पनसारे) के साथ रहता है । एक दिन सुनीता अपने पति भोला से अपने चाचा मुरारी चौरसिया (सौरभ शुक्ला) को लाने के लिए स्टेशन जाने के लिए कहती है । वहीं मुरारी को भोला की सच्चाई का पता चल जाता है ।

वह उसे बेनकाब करने की कोशिश करता है लेकिन उसकी कोशिश नाकाम साबित होती है । तब वह भोला से आसक्त होने का नाटक करता है और उसे टीम का हिस्सा बनाने के लिए कहता है । भोला अनिच्छा से सहमत हो जाता है और इसके बाद मुरारी को पता चलत है कि भोला कितनी आसानी से इतनी सारी पत्नियों को संभाल लेता है । दोनों एक दिन मुश्किल में आ जाते हैं जब एक डकैत चंदा यादव (भावना पानी), जिससे भोला ने शादी का वादा किया था, दोनों का अपहरण कर लेती है और उसे जबरदस्ती शादी करने केलिए कहती है । इसके बाद क्या होता है यह बाकी की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

सौरभ श्रीवास्तव की कहानी दिलचस्प है और डोली की डोली की याद दिलाती है और यहां तक की कपिल शर्मा की डेब्यू फ़िल्म किस किस को प्यार करूं [2015] । पटकथा की बात करें तो इसमें कई खामियां है, इसका ध्यान रखा जा सकता था । लेकिन अमल डोनवर और शरद त्रिपाठी की पटकथा ऐसी कोई कोशिश नहीं करती है । फिल्म में चीजें काफी आसानी से होती हैं । इनमें से कुछ को वो लोग नजर अंदाज कर सकते हैं जो ऐसी फ़िल्में देखने के लिए अपना दिमाग घर छोड़ कर आते है । लेकिन फिर भी, इसकी कुछ सीमा होनी चाहिए और निर्माता इसका पालन नहीं करते हैं । मिसाल के तौर पर, मुरारी एक उजाड़ रेलवे स्टेशन पर उतर जाता है, जो उसका गंतव्य नहीं माना जाता था । और यहाँ, वह एक बेसहारा कार पाता है वो भी चाबी के साथ । कहने की जरूरत नहीं है, वह इसे अपने पास रख लेता है और अंत तक इसे अपने साथ रखता है ! अमल डोनवर और शरद त्रिपाठी के संवाद हालांकि विचित्र हैं और प्रभाव को बेहतर बनाने में मदद करते हैं । सौरभ श्रीवास्तव का निर्देशन औसत है । कम लंबाई के बावजूद, फिल्म खींचती हुई प्रतीत होती है । और भोला की हरकतों को बुरी तरह से सही ठहराने का प्रयास किया गया ।

फ्रॉड सैंया एक देरी से आई फ़िल्म है लेकिन दिखने में ये पुरानी नहीं लगती है, लेकिन विचारों के मामले में ये काफ़ी पुरानी लगती है । यह फ़िल्म 4-5 साल पहले काम कर सकती थी । लेकिन साल 2019 में ऐसी फिल्म प्रतिगामी और आपत्तिजनक लगती है । कुछ सीन हालांकि दिलचस्प है । लेकिन वहीं दूसरी तरह फ़िल्म में ह्यूमर जबरदस्ती का डाला हुआ लगता है । इसके अलावा, 1.52 घंटे की कम लंबाई के बावजूद, फ्रॉड सैंया 2.30 घंटे लंबी फ़िल्म की तरह लगती है । शुक्र है कि फ़िल्म का क्लाइमेक्स काफ़ी सरप्राइजिंग और अप्रत्याशित है । जो फ़िल्म को एक बड़ी फ़्लॉप होने से बचाता है ।

अरशद वारसी अपनी फ़ुल फ़ॉर्म में नजर आते हुए काफ़ी मनोरंजन करते हैं । वह ऐसे रोल में जंचते हैं और दर्शकों को अपनी शानदार परफ़ोरमेंस से जरा भी निरश नहीं करते है । सौरभ शुक्ला भी काफ़ी मजेदार हैं लेकिन स्क्रिप्ट उन्हें निराश करती है । अरशद और सौरभ की जोड़ी पर्दे पर काफ़ी फ़न लेकर आती है । सारा लोरेन (पायल) शायद ही शुरू में नजर आती है लेकिन सेकेंड हाफ़ में; वह अन्य सभी अभिनेत्रियों में से सबसे अधिक प्रभाव डालती है । फ्लोरा सैनी (श्रद्धा) इसके बाद अच्छा प्रदर्शन करती है । एली अवराम (चांदनी) सभ्य है । उनका सीन काफ़ी अच्छे से बुना गया है । दीपाली पनसारे कुछ भी खास नहीं करती है । भवानी पनी फनी है निवेदिता तिवारी (माला दुबे) ठीक है । प्रीति सूद (प्रीति) को सीमित गुंजाइश मिलती है वरुण बडोला (बद्री) ठीक है । पीयूष सुहाने (दुलारे) और फैजल मलिक (पुलिस वाले) फ़न जोड़ते है ।

सोहेल सेन और तनिष्क बागची का संगीत साधारण है । 'छम्मा छम्मा' सभी गानों में सबसे यादगार है । शीर्षक गीत आकर्षक है लेकिन यादगार नहीं है । फिल्म के मिजाज के अनुसार सोहेल सेन का बैकग्राउंड स्कोर क्वर्की है । उदय प्रकाश सिंह का प्रोडक्शन डिजाइन ठीक है । प्रकाश कुट्टी की सिनेमैटोग्राफी सरल है। नीरव सोनी का संपादन कमज़ोर है और कुछ दृश्यों को छोटा किया जा सकता था ।

कुल मिलाकर, फ्रॉड सैंया दरअसल काफ़ी देरी से आई फ़िल्म है क्योंकि यदि ये कुछ साल पहले आती तो शायद, ज्यादा अच्छा प्रदर्शन कर सकती थी । इसकी कम सुर्खियां बॉक्सऑफ़िस पर इस फ़िल्म के अच्छे प्रदर्शन पर असर डालेगी ।