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तेलगु फ़िल्म टेम्पर मेरी पसंदीदा फ़िल्म है । इस फ़िल्म की याद मेरे जहन में अभी भी ताजा है । ये सम्पूर्ण तरीके से मनोरंजक । फ़िल्म के लीड एक्टर जूनियर एनटीआर की दमदार परफ़ोर्मेंस ने फ़िल्म को और भी बेहतरीन बना दिया । इसलिए इसके हिंदी रीमेक, सिम्बा, जो इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई है, से भी उम्मीदें बहुत ज्यादा है ।

फ़िल्म समीक्षा : दमदार गर्जना के साथ आया सिम्बा

रोहित शेट्टी को विभिन्न कारणों से उम्मीदों पर खरा उतरना है : एक तो वह सबसे पहली बार रणवीर सिंह के साथ आ रहे हैं...दूसरा वह एक बार फ़िर पुलिस ड्रामा लेकर आए हैं...और निसंदेह, जिसने टेम्पर देखी है, वे बारीकी से दोनों में तुलना करेगा ।

रोहित ने टेम्पर से फ़िल्म का सार लिया है लेकिन सिम्बा को बड़े पैमाने पर [खासकर सेकेंड हाफ़ और क्लाइमेक्स के दौरान] अपने तरीके से बनाया है । सकारात्मक रूप से स्क्रीन पर अंततः जो कुछ भी सामने आता है, वह काफ़ी अलग है ।

पूरी कहानी खोले बिना, यहां हम आपको फ़िल्म की संक्षिप्त कहानी के बारें में सबसे पहले बताते हैं :- संग्राम भालेराव उर्फ़ सिम्बा [रणवीर सिंह] एक बेईमान पुलिस अधिकारी है । एक बार एक अलग शहर में स्थानांतरित होने के बाद, वह शगुन [सारा अली खान] से मिलता है और दोनों के बीच प्यार हो जाता है ।

वहीं संग्राम की, गरीब बच्चों को पढ़ाने वाली एक मेडिकल छात्रा आकृति [वैदेही परशुराम] के साथ भी अच्छी बॉंडिंग हो जाती है । पढ़ाने के दौरान आकृति को पता चलता है कि, उसके छात्रों का उपयोग एक शक्तिशाली व्यक्ति, दुर्वा [सोनू सूद] के भाइयों [सौरभ गोखले और अमृत सिंह] द्वारा ड्रग पेडलिंग के लिए किया जा रहा है ।

आक्रुति उस पब में पहुंच जाती है, जहां गैरकानूनी गतिविधियां हो रही हैं और अपने सेलफोन पर यह सब रिकॉर्ड करने की कोशिश करती है, लेकिन वह ऐसा करते हुए पकड़ी जाती है । इसके बाद आगे क्या होता है, यह आगे की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

सबसे पहले तो, रोहित शेट्टी और स्क्रीनप्ले लेखक यूनुस सजवाल [अतिरिक्त पटकथा लेखक साजिद सामजी] ने टेम्पर से कुछ ताली बजाने योग्य पलों को सिम्बा के लिए चुना और इन्हें अपने तरीके से सजाया । कहानी का सार बरकरार रखा है, लेकिन यह समूचे भारत के दर्शकों की पसंद के अनुकूल है ।

इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि रोहित शेट्टी हिंदी सिनेमा के वर्तमान मनमोहन देसाई हैं । उनके फ़ंडे बहुत स्पष्ट हैं : और वो है बड़े स्तर पर मनोरंजन प्रदान करना । सिम्बा में एक दमदार मैसेज भी है जो फिल्म के समापन के बाद आपके साथ रहता है ।

फ़र्स्टहाफ़ में सिम्बा एक आनंददायक फ़िल्म है । कुछ सीन और मजेदार-हास्य से भरे वन-लाइनर्स [फरहाद समजी के संवाद] निश्चितरूप से हंसा-हंसा कर लोटपोट कर देने वाले है । इंटरवल के बाद फ़िल्म इमोशनल हो जाती है और तब आप फ़िल्म का वो फ़न मिस करते हैं जो आप फ़र्स्ट हाफ़ में महसूस किया । लेकिन सेकेंड हाफ़, में उठे मुद्दे को गंभीरता की जरूरत थी ।

जैसा कि मैंने बहुत शुरुआत में कहा था, रोहित और उनके लेखक कहानी को पूरी तरह से एक नए निष्कर्ष के साथ अलग तरीके से पेश करते हैं और जिन लोगों ने टेम्पर देखी है वो इस अंतर को महसूस भी करेंगे । मेरी राय में, कोर्ट रूम सीक्वेंस और फ़िल्म का क्लाइमेक्स सीन, फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ स्तर पर ले जाता है ।

रणवीर सिंह फ़िल्म की लाइफ़लाइन और आत्मा है । और मुझे यह कहना ही चाहिए कि वह साबित करते हैं कि वह एक ऑल राउंडर हैं, जो विभिन्न किरदारों को शानदार तरीके से बड़ी ही सहजता के साथ निभाते हैं । सिम्बा निश्चितरूप से उनके फ़ैन फ़ोलोइंग में कई गुना वृद्धि करेगी ।

सारा अली खान अपनी पहली फ़िल्म केदारनाथ की तरज इस फ़िल्म से भी छा जाती है, हालांकि सेकेंड हाफ़ में उनके करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है । सोनू सूद शानदार परफ़ोर्मेंस देते है । यदि विलेन हीरो के बराबर दमदार नहीं होता तो सिम्बा लड़खड़ा जाती । सोनू ने रणवीर के साथ हर बार अपनी परफ़ोर्मेंस को मैच किया है ।

सिम्बा में बहुत बड़ी सपोर्टिंग कास्ट है, लेकिन यहां मैं कुछ सपोर्टिंग एक्टर्स के नाम लेना चाहूंगा जिसनें फ़िल्म में अपनी शानदार अदायगी से चार चांद लगा दिए । आशुतोष राणा असाधारण हैं । उनका सैल्यूट सीन हजारों तालियों की गड़गड़ाहट के साथ और सीटियों के साथ सम्मानित होगा । सिद्धार्थ जाधव विशिष्ट है । वैदेही परशुराम अद्भुत है । अश्विनी कालसेकर शानदार हैं । क्लाइमेक्स में उनके डायलॉग्स तालियों के हकदार होंगे । गणेश यादव और अशोक समर्थ [वकील] अपनी भूमिका अच्छे से निभाते हैं । सौरभ गोखले छा जाते हैं । सरिता जोशी ठीक हैं ।

सिम्बा में कई कैमियो है, जिनमें शामिल हैं गोलमाल अगेन गैंग [अरशद वारसी, तुषार कपूर, श्रेयस तलपड़े और कुणाल खेमु] । अजय देवगन का परिचय सीटी और ताली बजाकर किया जाएगा और उनके अभिनय को यकीनन सराहा जाएगा । और फ़िर अक्षय कुमार के कैमियो के साथ दर्शकों को एक बार फ़िर एक बड़ी ट्रीट मिलती है ।

साउंडट्रैक फिल्म के मूड के साथ अच्छी तरह से मेल खाता है । 'आंख मार' पहले से ही एक चार्टबस्टर है, जबकि 'आला रे आला' आपको इसके क्रियान्वयन से अवाक करता है । बैकग्राउंड स्कोर विशेष उल्लेख के योग्य है, विशेष रूप से सिंघम और सिंबा के थीम का फ़्यूजन । जोमन टी जॉन की सिनेमैटोग्राफी दोषरहित है । एक्शन सीक्वेंस जीवंत और ध्यान आकर्षित करने वाले है ।

कुल मिलाकर, सिम्बा निश्चितरूप से एक बेहतरीन फ़िल्म है और इसमें कोई दो राय नहीं है । यह फ़िल्म बॉक्सऑफ़िस पर एक तूफ़ान ले आएगी । यकीनन, साल 2018 एक गर्जना के साथ खत्म होगा ।