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बॉलीवुड में टूटे दिल की कहानी पर बेस्ड फ़िल्म में सबसे चर्चित फ़िल्म है देवदास । इस फ़िल्म को बॉलीवुड में कई मर्तबा रीमेक किया गया है । अलग-अलग फ़िल्ममेकर्स ने इसे अपने-अपने ढंग से तच दिया, जो कि दर्शकों को पसंद भी आया । क्योंकि दर्शकों ने हमेशा उस कहानी को पसंद किया जिसमें एक आदमी तब आत्म-विनाशकारी रास्ते पर चल निकलता है जब उसे अपना प्यार नसीब नहीं होता है । दो साल पहले संदीप रेड्डी वंगा ने तेलगु फ़िल्म बनाई थी अर्जुन रेड्डी, जिसने कहीं न कहीं देवदास की याद दिलाई, जो ब्लॉकबस्टर साबित हुई । और अब इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई है इस कल्ट फ़िल्म की ऑफ़िशियल हिंदी रीमेक, कबीर सिंह । संदीप रेड्डी के निर्देशन में बनी कबीर सिंह क्या अर्जुन रेड्डी जैसा जादू फ़िर से चला पाएगी या यह दर्शकों की भावनाओं को उत्तेजित करने में विफल होती है, आइए समीक्षा करते है ।

Kabir Singh Movie Review : टूटे दिल के दर्द को शानदार ढंग से पर्दे पर उतारते हैं शाहिद कपूर

कबीर सिंह आत्म-विनाश के मार्ग पर चलने वाले एक टूटे दिल के आदमी की कहानी है । कबीर सिंह (शाहिद कपूर) दिल्ली के एक मेडिकल स्कूल से शीर्ष रैंक के मेडिकल छात्र हैं । वह गुस्से का तेज है और कॉलेज के दिनों में एक फुटबॉल मैच के दौरान, उसकी अमित (अमित शर्मा) नामक एक प्रतिद्वंद्वी कॉलेज के छात्र के साथ हाथापाई हो जाती है । कॉलेज के डीन (आदिल हुसैन) कबीर से माफ़ी मांगने को कहते हैं और कहा जाता है कि, यदि उसने ऐसा नहीं किया तो उसे कॉलेज से निकाला भी जा सकता है । कबीर ने दूसरा विकल्प चुना क्योंकि उसे लगता है कि उसने कोई गलत काम नहीं किया । लेकिन फ़िर वह अपना माइंड बदल देता है जब वह फ़र्स्ट ईयर की स्टूडेंट प्रीति (कियारा आडवाणी) को देखता है । यहां कबीर का लक काम कर जाता है क्योंकि प्रीति की फ़ैमिली उसकी फ़ैमिली फ़्रेंड निकलती है और कबीर को उसकी केयर करने का जिम्मा देती है । कबीर को कैम्पस में बहुत डर लगता है इसलिए वह प्रीति को प्राइवेट लेसन देना शुरू कर देता है । प्रीति को कबीर का साथ बहुत अच्छा लगने लगता है और वह दोनों रोमांटिक रिलेशनशिप में आ जाते है । दोनों की पढ़ाई पूरी हो जाती है और दोनों अपने-अपने घर मुंबई चले जाते है । कबीर के भाई करण (अर्जन बाजवा) की शादी हो रही होती है और कबीर प्रीति को उसके घर से लेने जाता है । लेकिन यहां से चीजें बदलने लगती है और प्रीति के पिता ये देख लेते हैं कि कबीर और प्रीति एक दूसरे के करीब आ रहे है । कहानी में अचानक मोड़ आता है जब प्रीति जतिंदर से शादी करने के लिए मजबूर हो जाती है । इसके बाद आगे क्या होता है, यह बाकी की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

संदीप रेड्डी वंगा की कहानी शानदार है और काफ़ी मनोरंजक है । संपूर्ण आधार और अधिकांश पटकथा अर्जुन रेड्डी जैसी ही है । और संदीप रेड्डी वांगा की पटकथा इस आधार के साथ पूरा न्याय करती है । यह काफ़ी फ़्रेश लगती है । देवदास के हैंगओवर के बावजूद यह वर्तमान समय के लिए शानदार कहानी है । यह फ़िल्म युवा पीढ़ी की जर्नी को दर्शाती है । यह एक अच्छे गूंथी गई फ़िल्म है । सिद्धार्थ-गरिमा के डायलॉग काफी प्रभावशाली हैं और हीरो के स्वभाव के अनुरूप है । फ़नी और मेडीकल-इंस्पायर्ड वन-लाइनर्स काफ़ी मजाकियां है ।

संदीप रेड्डी वंगा का निर्देशन काफ़ी प्रभावपूर्ण है और वह अर्जुन रेड्डी जैसा ही जादू इसमें भी चलाने में कामयाब होते है । एक नए निर्देशक के तौर पर उन्होंने बेहतरीन काम किया है । जिस तरह से कबीर अपने अनैतिक कामोंआउर गलत लतों की पीड़ा से गुजरते हैं आप उस दर्द को महसूस कर सकते हैं और ये आपका दिल जीत लेता है । और एक निर्देशक के लिए दर्शकों की इस फ़ील को जीतना आसान नहीं है ।

कबीर सिंह की शुरूआत काफ़ी दार्शनिक तरीके होती है जो थोड़ी कन्फ़्यूजिंग भी है । फ़्लैशबैक से शुरू होकर यह फ़िल्म तुरंत ट्रेक पर आ जाती है । फ़र्स्ट हाफ़ का वो सीन देखने लायक है जब कबीर अपने प्रतिद्वंद्वी कॉलेज के खिलाड़ी को मारता है और डीन के सामने अपने व्यवहार को तर्कसंगत बनाता है । वो सीन, जहां कबीर प्रीति को प्राइवेट क्लास लेने का आदेश देता है, कुछ अटपटा सा लगता है लेकिन फ़िर यह बेहतर तब होता है जब आपको पता चल जाता है कि प्रीति को भी कबीर का साथ अच्छा लग रहा है और वह अपनी इच्छा से उसके साथ जुड़ रही है । होली सीक्वंस के दौरान फ़िल्म अलग लेवल पर चली जाती है । इंटरवल से पूर्व और इंटरवल के दौरान टेंशन बरकरार रहती है । इंटरवल के बाद फ़िल्म थोड़ी खींचने लगती है । लेकिन फ़िल्म फ़िर से बांधना शुरू करती है जब कबीर जो एक शानदार सर्जन है लेकिन शराबी बन जाता है । हाउस कोर्ट का सीक्वेंस बहुत पेचीदा है । क्लाइमेक्स थोड़ा अनुमानित है लेकिन जो कुछ भी होता है वह दर्शकों को जरूर सरप्राइज करेगा । फ़िल्म का अंत एक प्यारे से नोट पर होता है ।

ये पूरी फ़िल्म शाहिद कपूर के कंधो पर टिकी हुई है और वह इस फ़िल्म की आत्मा है । यह कहना गलत नहीं होगा कि, उन्होंने इसमें सबसे बेहतरीन काम किया है । विजय देवरकोंडा, जिसने उन्हें सुपरस्टार बना दिया था, के रोल को करना कोई आसान काम नहीं था लेकिन शाहिद ने इसमें जरा भी निराश नहीं किया । शाहिद अपने काम से एक बार फ़िर अपना दीवाना बना देते है । उनका लड़के जैसा लुक, और जब वह प्रतिद्वंद्वी कॉलेज में एंटर करते हैं और वहां मौजूद सैकड़ों छात्रों के सामने एक छात्र को मारते है, यह काफ़ी शानदार है । उनका शराबी फ़ेज भी देखने लायक है । कियारा आडवाणी के पास ज्यादा डायलॉग्स नहीं है और सेकेंड हाफ़ में तो स्क्रीन पर उनकी मौजूदगी भी काफ़ी सीमित है । लेकिन इसके बावजूद भी वह अपने रोल में जंचती है और शानदार परफ़ोरमेंस देती है । उनका दिल टूटने का सीक्वंस असाधारण है । निकिता दत्ता सहायक भूमिका में प्यारी लगती हैं । अर्जन बाजवा और सुरेश ओबेरॉय (कबीर के पिता) सभ्य हैं । सोहम मजूमदार (शिव) का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है और बहुत ही मनोरंजक है । दर्शक जरूर उन्हें पसंद करेंगे । आदिल हुसैन ठीकठाक है । वनिता खरात (कबीर की नौकरानी) अपने दोनों दृश्यों में हंसी लेकर आती है । अमित शर्मा थोड़े ओवर लगते है लेकिन वो उनके किरदार पर जंचता है । श्रुति, जतिंदर, कीर्ति का किरदार निभाने वाले कलाकार अपने-अपने रोल में जंचते है ।

सनों को ज्यादातर बैकग्राउंड में प्ले किया जाता है । 'बेखयाली' फिल्म में सबसे बेहतरीन है और अच्छे सेट किया गया है । 'कैसे हुआ' अच्छी तरह से फिल्माया गया है और इस गीत का इन्स्ट्रमेन्टल हिस्सा पूरी फ़िल्म का थीम गीत है । 'तुझे कितना चाहने लगा ’, 'पहला प्यार' और 'तेरा बन जाउंगा’मधुर हैं । हर्षवर्धन रामेश्वर का बैकग्राउंड स्कोर सूक्ष्म है और कुछ दृश्यों में अनुपस्थित भी । लेकिन फिल्म की सेंट्रल थीम प्राणपोषक है और उत्साह बढ़ाती है ।

संथाना कृष्णन रविचंद्रन की सिनेमैटोग्राफी शानदार है । पागलपन बहुत अच्छी तरह से कैप्चर किया गया है । मानसी ध्रुव मेहता का प्रोडक्शन डिजाइन काफी समृद्ध है । पायल सलूजा और अंकिता पटेल की वेशभूषा यथार्थवादी है और आकर्षक भी है । अफ़ज़ल उस्मान खान का एक्शन काफी वास्तविक और खूनखराबे वाले है । आरिफ़ शेख का संपादन कुछ स्थानों पर थोड़ा बाधित है ।

कुल मिलाकर, कबीर सिंह एक अच्छे से बनाई गई प्रेम कहानी है जो युवाओं को खासी आकर्षित करती है । एडल्ट थीम, लवमेकिंग सीन, हिट म्यूजिक, कसी हुई स्क्रिप्ट और शानदर परफ़ोरमेंस निश्चितरूप से दर्शकों को थिएटर तक खींच कर लाएगी ।