ब्रह्मास्त्र पार्ट वन : शिवा एक व्यक्ति की अपनी महाशक्तियों की खोज की कहानी है । शिवा (रणबीर कपूर) मुंबई में स्थित एक डीजे है, और एक कैयरलेस लाइफ़ जीता है। वह एक अनाथ है; वह अनाथ बच्चों के साथ रहता है और उन पर अपना प्यार लुटाता है। वह जब ईशा (आलिया भट्ट) से मिलता है तो तुरंत उससे प्यार कर बैठता है । वह भी उसकी ओर आकर्षित हो जाती है, । सब कुछ ठीक चल रहा होता है लेकिन अचानक शिवा को कुछ झलक सी दिखने लगती है । वह दुष्ट जूनून (मौनी रॉय) को एक वैज्ञानिक, मोहन भार्गव (शाहरुख खान) को मारते हुए और उससे एक दुर्लभ कलाकृति को छीनते हुए देखता है। मरने से पहले, मोहन दबाव में कहता है कि कलाकृति का दूसरा हिस्सा अनीश शेट्टी (नागार्जुन अक्किनेनी) नाम के एक कलाकार के पास है, जो वाराणसी में रहता है। शिवा यह सब देखता है और महसूस करता है कि जूनून आगे अनीश को निशाना बनाने के लिए तैयार है । अनीश को आसन्न खतरे से आगाह करने के लिए शिव वाराणसी जाने का फैसला करते हैं । ईशा भी उसके साथ जाती है। वाराणसी में शिवा और ईशा अनीश को बचाते हैं । अनीश की वजह से, उन्हें पता चलता है कि मोहन से चुराई गई कलाकृति 'ब्रह्मास्त्र' का एक हिस्सा है । इसके दो हिस्से और हैं और अनीश के पास उसका एक हिस्सा है। वह इसे शिवा और ईशा को सौंप देता है और उन्हें गुरु (अमिताभ बच्चन) के आश्रम में जाने के लिए कहता है, जबकि वह जूनून को रोकने की कोशिश करता है। अनीश अपने जीवन का बलिदान देता है और जब शिवा का सामना जूनून के गुंडे से होता है, तो वह अनजाने में अपनी अग्नि शक्ति का उपयोग करके उसे नष्ट कर देता है। आगे क्या होता है इसके लिए पूरी फ़िल्म देखनी होगी ।
अयान मुखर्जी की कहानी फ़्रेश, आशाजनक है, और इसमें बड़े पैमाने वाली एक्शन एंटरटेनर है। अयान मुखर्जी की पटकथा कई हिस्सों में प्रभावी है, खासकर फ़र्स्ट हाफ़ में । हालाँकि, बाद में उनका लेखन प्रभावित नहीं करता है। उन्होंने कई सवालों को अनुत्तरित भी छोड़ दिया है, इस उम्मीद के साथ कि अगली कड़ी में उनका जवाब दिया जाएगा । सेकेंड हाफ़ के लिए दर्शकों को उत्साहित करने के बजाय, यह दर्शकों को थोड़ा निराश करता है । हुसैन दलाल के डायलॉग कुछ खास नहीं है । इस तरह की फिल्म में कुछ दमदार वन-लाइनर्स होने चाहिए । शाहरुख खान के सीन के डायलॉग खासकर खराब हैं ।
अयान मुखर्जी का निर्देशन ठीक है । कुछ सीन्स उन्होंने पैमाने और भव्यता को देखते हुए बहुत अच्छी तरह से हैंडल किए हैं । रोमांटिक हिस्से प्यारे हैं और फ़र्स्ट हाफ में कई दृश्य और सेकेंड हाफ की शुरुआत में कई दृश्य काफ़ी प्रभावित करते हैं । उनकी पिछली दो फिल्मों में शायद ही कोई एक्शन था लेकिन ब्रह्मास्त्र में उन्होंने लड़ाई के दृश्यों को बखूबी निर्देशित किया है । अफसोस की बात है कि स्क्रिप्ट फ़िल्म का साथ नहीं देती । सबसे पहले, ब्रह्मास्त्र और उससे संबंधित विशेषताओं की पूरी अवधारणा को सरल तरीके से समझाया नहीं गया है । कई पहलू दिमाग से बाहर जा सकते हैं । दूसरा, क्लाइमेक्स की लड़ाई खिंची हुई लगती है और बेहतर प्रभाव के लिए इसे छोटा किया जा सकता था । तीसरा, लेखन में कई कमियां जो साफ़-साफ़ नजर आती हैं । जैसे शिवा के साथ रहने वाले बच्चे एक समय बाद पूरी तरह से भूला दिए जाते हैं । यहां लगता है कि उनके पास करने के लिए कुछ होगा, खासकर जब ईशा सेकेंड हाफ में अपनी जगह पर वापस जाती है । जहां ईशा और शिवा की केमिस्ट्री प्यारी है, वहीं ईशा की बैकग्राउंड स्टोरी को कभी बताया ही नहीं गया है । उसके दादा को सिर्फ एक सेकंड के लिए दिखाया गया है (वह भी कॉमिक रिलीफ के लिए) लेकिन हर कोई जानना चाहता है कि ईशा के परिवार के सदस्य कौन थे इत्यादि । यहां तक कि गुरु के शिष्यों को भी पर्याप्त स्क्रीन टाइम नहीं दिया जाता है । अंत में और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि फिल्म एक सीक्वल के वादे के साथ समाप्त होती है और कुछ किरदारों को भी पेश किया जाता है । हालांकि, उनके चेहरे नहीं दिखाए जाते । अगर दर्शकों को पता होता कि कौन सा अभिनेता उन किरदारों को निभा रहा है, तो फिल्म तुरंत बेहतर हो सकती थी ।
ब्रह्मास्त्र पार्ट वन : शिवा एक अच्छे नोट पर शुरू होती है । मोहन भार्गव दृश्य, हालांकि अच्छे संवाद नहीं हैं, फिर भी शाहरुख खान की उपस्थिति के कारण देखने योग्य है । शिवा की एंट्री ठीक है और जिस तरह से वह ईशा को अपने घर ले जाते हैं और बर्थडे पार्टी सीक्वेंस बहुत अच्छा है । ये सीन भी अच्छा है जब शिवा ईशा को अपनी वाराणसी योजनाओं के बारे में बताते हैं । वाराणसी सीक्वेंस शानदार है । पहाड़ियों में पीछा करने का सीक्वंस जिज्ञासा जगाने वाला है जबकि इंटरमिशन प्वाइंट ताली बजाने योग्य है। यहीं से फिल्म फिसल जाती है। कुछ दृश्य ऐसे हैं जैसे शिव अपनी शक्ति का उपयोग करना सीख रहे हैं और शिव अपने माता-पिता के बारे में जान रहे हैं। बाकी सीक्वेंस ज्यादा प्रभावित नहीं करते ।
हालांकि, फ़िल्म में कलाकारों की एक्टिंग बेहतरीन हैं । रणबीर कपूर शानदार एक्टिंग करते हैं और उस व्यक्ति के रूप में आश्वस्त दिखते हैं जिसका जीवन अचानक बदल जाता है जब उसे पता चलता है कि उसके पास शक्तियां हैं। एक्शन और इमोशनल सीन्स में वह छा जाते हैं। आलिया भट्ट बेहद खूबसूरत दिखती हैं और ग्रेड ए परफॉर्मेंस देती हैं । शुक्र है कि उनकी भूमिका प्रमुख है और रणबीर के साथ उनकी केमिस्ट्री इलेक्ट्रीफ़ाइंग है। सहायक भूमिका में अमिताभ बच्चन प्यारे लगते हैं। शाहरुख खान अच्छा करते हैं और स्टार वैल्यू में इजाफा करते हैं । नागार्जुन अक्किनेनी का कैमियो बेहतर है । मौनी रॉय अच्छी हैं । डिंपल कपाड़िया के पास कुछ खास करने के लिए नहीं होता हैं। सौरव गुर्जर, गुरफतेह पीरजादा और अन्य अपने किरदार में ठीक हैं ।
प्रीतम चक्रवर्ती का संगीत चार्टबस्टर किस्म का है । 'केसरिया' उत्कृष्ट है और इसे बहुत अच्छी तरह से चित्रित किया गया है । 'देव देवा' भावपूर्ण है और सेकेंड हाफ़ के बारे में कुछ अच्छी चीजों में से एक है । 'डांस का भूत' मनोरंजक है । 'रसिया' और 'आवाज दे' फेयर हैं । प्रीतम चक्रवर्ती का बैकग्राउंड स्कोर सिनेमाई है और प्रभाव को जोड़ता है ।
वी मणिकंदन, पंकज कुमार, सुदीप चटर्जी, विकास नौलाखा और पैट्रिक ड्यूरॉक्स की सिनेमैटोग्राफी लुभावनी है । अनीता श्रॉफ अदजानिया और समिधा वांगनू की वेशभूषा वास्तविक सी लगती है, फिर भी ग्लैमरस है। खासकर आलिया के कॉस्ट्यूम सबसे अलग दिखते हैं । डीएनईजी और रेडिफाइन का वीएफएक्स फिल्म की यूएसपी में से एक है, और यह विश्व स्तरीय है, जो वैश्विक मानकों से मेल खाता है । अमृता महल नकई का प्रोडक्शन डिजाइन बहुत रिच है । डैन ब्रैडली, दियान हिरस्टोव और परवेज शेख का एक्शन रोमांचक है न कि खूनी । बिश्वदीप चटर्जी का साउंड डिज़ाइन बढ़िया है । प्रकाश कुरुप का संपादन साफ-सुथरा है लेकिन फिल्म छोटी हो सकती थी ।
कुल मिलाकर, ब्रह्मास्त्र पार्ट वन: शिवा दमदार विजुअल्स, शानदार परफॉर्मेंस, शानदार फर्स्ट हाफ और बेहतर वीएफएक्स से सजी फ़िल्म है । हालांकि, फ़िल्म का सेकेंड हाफ़ कमजोर है, जिसका मुख्य कारण गलतियों से भरा लेखन है । बॉक्स ऑफिस पर, फिल्म को लेकर फ़ैली अपार उत्सुकता के कारण इसे बहुत बड़ी ओपनिंग मिलेगी लेकिन वीकेंड के बाद, फिल्म को दर्शक जुटाने में मुश्किल होगी ।