यश चोपड़ा को फिल्म वीर-ज़ारा का गीत ‘तेरे लिए’ इतना पसंद था कि यह उनकी आखिरी सांस तक उनकी रिंगटोन बना रहा। फिल्म के 20वीं वर्षगांठ पर, दिग्गज संगीतकार मदन मोहन के बेटे संजीव कोहली ने इस यादगार साउंडट्रैक के बनने की कहानी साझा की और बताया कि वीर-ज़ारा कैसे उनके पिता की संगीत विरासत को सम्मान देने का एक सपना पूरा होने जैसा था।
वीर-ज़ारा के म्यूजिक डायरेक्टर संजीव कोहली
संजीव कहते हैं, “वीर-ज़ारा मेरे लिए एक ऐसा सपना था जिसे कभी सच मानने की हिम्मत भी नहीं कर सका। यह एक बेटे के अपने पिता की संगीत विरासत के लिए देखे गए सपने का साकार रूप था। मेरे पिता, दिवंगत संगीतकार मदन मोहन का 1975 में केवल 51 साल की उम्र में निधन हो गया। उनके पास बहुत कुछ नया बनाने का मौका नहीं मिला। बड़े प्रोडक्शन हाउस और लोकप्रिय पुरस्कार उनसे हमेशा दूर रहे, और यह बात उन्हें गहराई से तकलीफ देती थी।”
वो आगे बताते हैं, “2003 में एक दिन यश जी ने मुझसे कहा कि छह साल बाद उन्होंने फिर से एक फिल्म निर्देशित करने का निर्णय लिया है, पर वह एक ऐसी फिल्म चाहते थे जिसमें पुरानी दुनिया का संगीत हो – बिना पश्चिमी प्रभाव के, जिसमें भारतीय ध्वनियों पर आधारित सशक्त मेलोडी हो, 60 और 70 के दशक की तरह का संगीत, जैसे हीर रांझा और लैला मजनू का था।”
संजीव आगे कहते हैं, “यशजी ने बताया कि उन्होंने कई समकालीन संगीतकारों से बैठकों की थी, पर उस पुरानी मधुरता का जादू नहीं मिल पाया, क्योंकि सभी ने अपने संगीत को आधुनिक पश्चिमी प्रभावों के साथ ढाल लिया था। यह सुनकर मैंने उनसे कहा कि मेरे पास कुछ पुराने समय की धुनें हैं, जो 28 सालों से नहीं सुनी गईं। यश जी इस विचार से उत्साहित थे और उन्होंने मुझे अपने पिता के अनसुने धुनों की खोज करने के लिए कहा।”
संजीव कहते हैं, “मैंने करीब एक महीने तक इन पुराने टेप्स को सुना। पहले के दो-तीन कैसेट्स जो मेरे पास थे, उनमें से 3-4 धुनें मुझे ऐसी लगीं जो आज के दौर में भी चल सकती थीं। यश जी और आदित्य ने उन्हें सुना और वे सकारात्मक प्रतिक्रिया दे रहे थे, पर वे उन्हें नए ढंग से सुनना चाहते थे क्योंकि पुराने रिकॉर्डिंग्स का साउंड बहुत कमजोर था।”
संजीव बताते हैं, “मैंने तीन संगीतकारों की टीम बनाई और 30 धुनों को नए सिरे से रिकॉर्ड किया। मैंने खुद से डमी लिरिक्स लिखे और तीन युवा गायकों से उन्हें गवाया। जब यशजी और आदित्य ने इन धुनों को सुना, तो वे संतुष्ट थे। कुछ दिनों में उन्होंने 30 में से 10 गानों का चयन कर लिया और उन्हें अपनी स्क्रिप्ट में उपयुक्त स्थान दिया। मैं बहुत अभिभूत था।”
यश चोपड़ा चाहते थे कि वीर-ज़ारा की धुनें लता मंगेशकर ही गाएं। संजीव कहते हैं, “यशजी का कहना था कि लताजी ही फीमेल गाने गाएंगी और यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी क्योंकि मेरे पिता की धुनें हमेशा लताजी के लिए ही बनाई जाती थीं। लताजी ने भी इसे अपना आंतरिक बल दिखाते हुए गाया।”
संजीव कहते हैं, “वीर-ज़ारा के साथ मेरा हर सपना एक साथ सच हो गया। मेरे पिता की धुनें भारत की सबसे सफल फिल्मों में से एक की साउंडट्रैक बनीं। और अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी एक बार फिर उनके गानों पर थिरके, और यह गाने लगभग एक साल तक शीर्ष पर रहे और उन्हें लोकप्रियता के पुरस्कार मिले।”