/00:00 00:00

Listen to the Amazon Alexa summary of the article here

बीते महीने मिशन मंगल के प्रमोशन के दौरान अक्षय कुमार ने खुलासा किया था कि उनको लगता है कि सफ़लता 70% भाग्य और 30% कठिन मेहनत पर निर्भर करती है । हालांकि उनके इस बयान ने कई लोगों को चौंका दिया था । लेकिन वहीं दुनियाभर में एक ऐसा वर्ग भी है जो भाग्य को बहुत मानता है । अनुजा चौहान का 'द जोया फ़ैक्टर' नाम का उपन्यास इसी विचारधारा पर बेस्ड है । यह एक बेस्टसेलर उपन्यास बन चुका है । इसलिए इसके राइट्स को आरती शेट्टी और पूजा शेट्टी देओरा ने खरीद लिए और इसी टाइटल पर फ़िल्म बनाई, द जोया फैक्टर, जो इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई है । तो क्या द जोया फैक्टर फ़िल्म के रूप में भी दर्शकों का मनोरंजन करने में सफ़ल हो पाएगी, या यह अपने प्रयास में विफ़ल होती है ? आइए समीक्षा करते है ।

The Zoya Factor Movie Review: मेकर्स और कलाकारों के लिए 'लकी' साबित होगी द जोया फैक्टर

द जोया फ़ैक्टर, एक ऐसी लड़की की कहानी है जो खुद को बदकिस्मत मानती है लेकिन देश के लिए वह लकी चार्म है । जोया सोलंकी (सोनम के आहूजा) का जन्म 25 जून 1983 को हुआ, जिस दिन भारत ने 1983 क्रिकेट विश्व कप का फाइनल जीता था । उनके पिता विजयेंद्र सिंह सोलंकी (संजय कपूर) ने घोषणा की कि जोया ऐसे शुभ अवसर पर पैदा हुई है इसलिए वह क्रिकेट टीम के लिए लकी साबित होगी । बड़े होने के दौरान, ज़ोया वास्तव में विजयेंद्र और उनके भाई जोरावर (सिकंदर खेर) के लिए एक लकी चार्म बनती है, जब वे गली क्रिकेट खेलते है । लेकिन व्यस्क होने के बाद जोया खुद को अशुभ मानने लगती है । क्रिकेट के लिए उसके परिवार के सदस्यों का पागलपन उसे इस खेल को नापसंद करने का कारण बनता है । वह AWB नामक एक विज्ञापन एजेंसी में जूनियर कॉपीराइटर के रूप में काम करती है और अपने बॉस मोनिता (कोयल पुरी) को परेशान करने के लिए लगातार गलतियाँ करती जाती है । मोनिता, ज़ोया को श्रीलंका में भारतीय क्रिकेट टीम के विज्ञापन कैम्पेन के लि भेजती है और चेतावनी देती है कि वह कोई भी गलती न करे । ज़ोया श्रीलंका पहुंचती है और भारतीय टीम के कप्तान निखिल खोड़ा (दुलकएर सलमान) के साथ दोस्ती कर लेती है । यह एक ऐसा समय है जब खिलाड़ी बैक-टू-मैच हार रहे हैं । विश्व कप को अभी एक महीना बाकी है और इसीका प्रेशन उन्हें परेशान कर रहा है । श्रीलंका में अपने मैच के दिन, निखिल ने ज़ोया को खिलाड़ियों के साथ नाश्ता करने के लिए आमंत्रित किया । यहाँ, जोया ने अचानक ही अपनी जन्म तिथि और अपने लकी चार्म होने के बारें में बताया । उस दिन, भारत ने चमत्कारिक रूप से मैच जीता । खिलाड़ियों को लगने लगता है कि जोया वाकई भारतीय क्रिकेट टीम के लिए लकी चार्म है । वे उसे भारत वापस जाने से रोकने के लिए कई बहाने बनाते हैं और अगले मैच के लिए उसे कैसे भी करके रोकने की कोशिश करते है । जैसी कि उम्मीद थी, वे मैच जीत जाते है । निखिल हालांकि भाग्य और ज़ोया फैक्टर पर विश्वास नहीं करता है और उसे लगता है कि वह कड़ी मेहनत करता है । इस बीच, भारतीय क्रिकेट बोर्ड के जोगपाल लोहिया (मनु ऋषि चड्ढा) को जोया के बारे में पता चलता है । वह जोया से संपर्क करता है और उसे एक करोड़ रु का ऑफ़र देता है कि जब भी मैच हो तो वह भारतीय क्रिकेट प्लेयर्स के साथ नाश्ता करे । लेकिन जोया इस ऑफ़र को ठुकरा देती है । जोगपाल किसी भी तरह से जोया को लेना चाहता है इसलिए वह विश्व कप कैम्पेन को AWB को इस निर्देश के साथ सौंपते हैं कि ज़ोया इसका नेतृत्व करें । इस योजना में जोगपाल को अपने भतीजे रॉबिन (अंगद बेदी) की मदद मिलती है जो खुद टीम का हिस्सा है और निखिल का प्रतिद्वंद्वी है । वह चाहता है कि निखिल को कप्तानी से हटा दिया जाए इसलिए वह जोया का इस्तेमाल अपने बुरे मकसद के लिए करता है । इसके बाद आगे क्या होता है, यह बाकी फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

द जोया फ़ैक्टर, अनुजा चौहान के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है । कहानी में कई सारे रिलेटेवल फ़ैक्ट्स हैं और यह काफ़ी भरोसेमंद है । बहुत से लोग भाग्य पर विश्वास करते हैं और साथ ही क्रिकेट प्रशंसक हैं और इसलिए हमारे जैसे देश में, इस तरह की कहानी दर्शकों के साथ जुड़ सकती है । प्रद्युम्न सिंह मॉल और नेहा शर्मा की पटकथा (अनुजा चौहान की अतिरिक्त पटकथा के साथ) अधिकांश हिस्सों के लिए प्रभावी है । फ़िल्म को कहीं भी इमोशनल इवेंट नहीं बनाया गया है । फ़िल्म को शुरूआत से लेकर आखिर तक हल्की-फ़ुल्की और मनोरंजक बनाया गया है । एक तरह से, यह बहुत अच्छा है लेकिन साथ ही, यह अपना इमोशनल टच खो देती है । प्रद्युम्न सिंह मॉल और अनुजा चौहान के डायलॉग बहुत मजाकिया हैं और हास्य में बहुत योगदान देते हैं । कमेंटेटर द्वारा दिए गए संवादों को दर्शकों द्वारा पसंद किया जाना निश्चित है ।

अभिषेक शर्मा का निर्देशन सभ्य है । उन्होंने कुछ सीन को बहुत ही मनोरम ढंग से अंजाम दिया है लेकिन वहीं कुछ ऐसे सीन भी है जिसमें उन्होंने थोड़ी जल्दबाजी कर दी । लेकिन उनके निष्पादन की रचनात्मकता कई दृश्यों में निकलकर सामने आती है । वह दृश्य जहाँ बारिश होती है, ऐसा ही एक क्रम है - निखिल के पवेलियन लौटने पर फ़ोकस जबकि ज़ोया को अग्रभूमि में विशाल स्क्रीन पर देखा जा सकता है । इसके अलावा, उन्होंने यह दिखाने के लिए सूक्ष्म संकेत का उपयोग किया है कि फिल्म 9 या 10 साल पहले सेट की गई है । और यह पुराने मोबाइल फोन के उपयोग से झलकता है । 2018 या 2019 में ZOYA FACTOR को आधार नहीं बनाने का विचार समझ में आता है क्योंकि ज़ोया की उम्र 26 या 27 से अधिक नहीं है । इसके अलावा, उत्पाद प्लेसमेंट अधिकांश फिल्मों में आंख का कांटा बन सकते हैं लेकिन यहां यह फ़िल्म का मुख्य हिस्सा है । उदाहरण के लिए-कैदबरी सिल्न टीवीसी कहानी में अच्छे से बुना गया है ।

द जोया फ़ैक्टर, में एक बहुत ही प्रभावशाली शुरूआत है जो फिल्म के क्रिकेट और भाग्य तत्वों के बारे में एक विचार देती है । कथाकार के रूप में शाहरुख खान का मजाकिया अंदाज और एनिमेटेड सीक्वेंस मजेदार है । ज़ोया के शुरुआती दृश्य ठीक हैं, लेकिन एक बार जब वह श्रीलंका पहुंचती है और भारतीय टीम के साथ घुलती-मिलती है तो फिल्म बेहतर हो जाती है । रोमांटिक ट्रेक में भी कई अच्छे पल है । यहां दो सीन बेहद शानदार है- लिफ़्ट में जोया का निखिल के साथ बातचीत और निखिल की जोया की फ़ैमिली व फ़ैमिली फ़्रेंड्स से मुलाकात । इंटरवल के बाद फिल्म थोड़ी बिखर सी जाती है । इसके अलावा, फिल्म कई जगहों पर बहुत भागती हुई सी लगती है । क्लाइमेक्स से पहले का वर्ल्ड कप सीक्वंस और क्लाइमेक्स यकीनन फ़िल्म में दिलचस्पी बढ़ाता है ।

अभिनय की बात करें तो सभी कलाकार इसमें बाजी मार ले जाते है । सोनम कपूर आहुजा अपने रोल में पूरी तरह से जंचती हैं और उनके बिना इस रोल की कल्पना भी नहीं की जा सकती । वह अपने रोल के साथ पूरी तरह से न्याय करती है । वह अपने किरदार के हर इमोशन को बखूबी पर्दे पर पेश करती है । दुलकएर सलमान, बहुत डेशिंग लगते है और अपने रोल में जंचते है । वह अपने किरदार में पूरी तरह से समा जाते हैं और कैप्टन की भूमिका में छा जाते है । अंगद बेदी को अच्छा खासा स्क्रीन टाइम मिला जिसका वह भरपूर उपयोग करते है और एक बदमाश के रूप में जंचते है । सिकंदर खेर फ़िल्म में सरप्राइज की तरह है । हालांकि उनका किरदार जाने तू या जाने न [2008] के प्रतीक के किरदार की याद दिलाता है । लेकिन सिकंदर अपने रोल से छा जाते है । उनके सबसे अच्छे दृश्यों में से एक है, जब वह प्रदर्शनकारियों को चाय ऑफर करते हैं । संजय कपूर नेचुरल लगते है । मनु ऋषि चड्ढा ठीक हैं और वह ओवर नहीं करते है । कोयल पुरी सख्ती से ठीक है । पूजा भाम्राह (सोनाली) काफी ग्लैमरस दिखती हैं और सहायक भूमिका अच्छी तरह से निभाती हैं । अन्य क्रिकेटर्स में, जो अपनी छाप छोड़ते हैं, वे हैं- अभिलाष चौधरी (शिवि), गंधर्व दीवान (हैरी) और सचिन देशपांडे (लखी) ।

शंकर-एहसान-लॉय का संगीत फिल्म के मूड के अनुरूप है । 'लकी चार्म' सभी में बेहतर है और इसके बाद 'काश' और 'महेरू' अच्छे है । 'पेप्सी की कसम' अंत क्रेडिट में प्ले किया जाता है । इंद्रजीत शर्मा और परीक्षित शर्मा का बैकग्राउंड स्कोर (किंगशुक वर्णवर्ती द्वारा अतिरिक्त बैकग्राउंड स्कोर के साथ) नाटकीय है और मज़ेदार है ।

मनोज लोबो की सिनेमैटोग्राफी उपयुक्त है और लेंसमैन विशेष रूप से क्रिकेट के दृश्यों में अच्छा काम करते है । Theia Tekchandaney, अभिलाषा देवनानी और गायत्री थडानी की वेशभूषा बहुत ही आकर्षक है । विशेष रूप से सोनम द्वारा पहने गई पोशाकें । रजत पोद्दार का प्रोडक्शन डिजाइन समृद्ध है । स्टूडियो का वीएफएक्स भी काफी अच्छा है, हालांकि कुछ दृश्यों में यह थोड़ा खराब भी है । लेकिन कुल मिलाकर, यह एक अच्छा काम है, क्योंकि हरे रंग की स्क्रीन में यह ज्यादातर शूट किया गया है । उत्सव भगत के संपादन से फिल्म को एक अजीब सी अनुभूति होती है ।

कुल मिलाकर, द जोया फ़ैक्टर एक अच्छी खासी पॉपकॉर्न एंटरटेनर फ़िल्म है, जो मुख्य रूप से अपने निराले कॉंसेप्ट, निष्पादन, ह्यूमर और शानदार परफ़ोर्मेंस के कारण काम करती है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म, अच्छी तारिफ़ों के बल पर सही प्रदर्शन करने की क्षमता रखती है ।