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थार एक दूर के टाउन में होने वाली रहस्यमयी घटनाओं की कहानी है । साल 1985 है, राजस्थान के मुनाबो कस्बे में एक गैंग ने एक घर पर हमला कर दिया, जहां कुछ ही दिनों में बेटी की शादी होने वाली है । लड़की के माता-पिता की हत्या कर दी जाती है, जबकि उनकी संपत्ति को गिरोह द्वारा चुरा लिया जाता है । अगले दिन, सुवा (अक्षय गुनावत) नामक एक व्यक्ति को मौत के घाट उतार दिया जाता है । इन मामलों को सुलझाने के लिए इंस्पेक्टर सुरेखा सिंह (अनिल कपूर) को चार्ज दिया जाता है । अपने सहयोगी भूरे (सतीश कौशिक) की मदद से, वह जांच करता है और यह पता लगाने की कोशिश करता है कि दोनों हत्याओं के बीच कोई संबंध है या नहीं । इस बीच, सिद्धार्थ (हर्षवर्धन कपूर), एक रहस्यमय व्यक्ति मुनाबो आता है । वह दिल्ली में एक एंटीक डीलर है । उसे अपने काम के लिए प्रशिक्षित पुरुषों की जरूरत होती है और उसकी तलाश उसे पन्ना (जितेंद्र जोशी) के घर ले जाती है । हालांकि, पन्ना अपनी पत्नी चेतना (फातिमा सना शेख) को पीछे छोड़कर कलकत्ता में हैं । पन्ना और चेतना के बीच एक आकर्षण विकसित होता है। इस बीच, सुरेखा को अपनी जांच से पता चलता है कि हत्याएं अवैध अफीम के व्यापार से संबंधित हैं और इसमें पाकिस्तान के खिलाड़ी भी शामिल हैं । आगे क्या होता है इसके लिए बाकी की फ़िल्म देखनी होती है ।

Thar Movie Review: इंटरनेशनल सिनेमा का फ़ील देती है अनिल कपूर और हर्षवर्धन की थार

राज सिंह चौधरी की कहानी सिंपल है । हालांकि, राज सिंह चौधरी की पटकथा (योगेश दाबुवाला और एंथनी कैटिनो द्वारा अतिरिक्त पटकथा) शानदार है । लेखकों ने कथा को कुछ गहन और अप्रत्याशित क्षणों के साथ जोड़ा है । पात्र काफी दिलचस्प हैं और वे सभी एक दूसरे से कैसे संबंधित हैं, यह भी इसे देखने लायक बनाती है । कमियों की बात करें तो, साइड ट्रैक अच्छी तरह से विकसित नहीं होते हैं । अनुराग कश्यप के संवाद शार्प हैं ।

राज सिंह चौधरी का निर्देशन कमाल का है और फिल्म को नई ऊंचाईयों तक ले जाता है । सबसे पहले, वह इस तरह के लुभावने स्थानों को चुनने के लिए तारीफ़ के हकदार हैं । आपने सैकड़ों फिल्मों में राजस्थान के लोकेशंस की शूटिंग देखी होगी । लेकिन थार में राजस्थान का एक अलग रूप देखने को मिलेगा जो इससे पहले कभी नहीं देख गया हो । यह बात फ़िल्म को देखने लायक बनाती है । दूसरी बात ये कि थार को डायरेक्टर एक विश्व सिनेमा की तरह बनाते हैं । बंजर स्थान, सन्नाटा, और किसी बाहरी व्यक्ति के एक अजीब शहर में आने का विचार पश्चिमी, काउबॉय फिल्मों की याद दिलाता है । अंत में, वह 108 मिनट के रनटाइम में बहुत कुछ पैक करते है । वह दृश्य जहां दर्शकों को पता चलता हैं कि हत्यारा कौन है, अनुमान लगाया जा सकता है और फिर भी उन्हें यह ट्विस्ट हैरान कर देता है । सेकेंड हाफ में कुछ सीक्वंस दर्शकों को बांधे रखने का काम करते हैं । फ़िनाले सीन जिज्ञासा से भरा है । फ़िल्म में कमियों की बात करें तो, हनीफ खान (राहुल सिंह) और पूरे अफीम के धंधे का ट्रेक कमजोर है । यह मुख्य कथा में अच्छी तरह से नहीं बुना गया है । दूसरी ओर, सुरेखा द्वारा सामना किए गए आंतरिक संघर्षों को भी बेहतर ढंग से चित्रित किया जाना चाहिए था । अंत में, कुछ प्रश्न बिना जवाब के ही रह जाते हैं ।

अभिनय की बात करें तो अनिल कपूर हमेशा की तरह फ़िल्म में छा जाते हैं । वह अपने किरदार में पूरी तरह समा जाते हैं और अच्छा प्रदर्शन देता है । हर्षवर्धन कपूर के पास शायद ही कोई डायलॉग है और वह अपनी आंखों के माध्यम से खूबसूरती से बातचीत करते हैं । हर्षवर्धन की एक्टिंग में निश्चित रूप से विकास हुआ है और थार में ये साफ़-साफ़ दिखता है । फातिमा सना शेख एक बड़ी छाप छोड़ती है और एक सुंदर प्रदर्शन देती है । सतीश कौशिक हमेशा की तरह भरोसेमंद हैं । SACRED GAMES फेम जितेंद्र जोशी ने एक और यादगार परफॉर्मेंस दी । मुक्ति मोहन (गौरी; धन्ना की पत्नी) और निवेदिता भट्टाचार्य (प्रणति; सुरेखा की पत्नी) अच्छा करते हैं, और यही बात अनिल कपूर के बेटे की भूमिका निभाने वाले अभिनेता के लिए भी जाती है । मंदाना करीमी (चेरिल) एक कैमियो में अच्छी लगती हैं । अक्षय गुनावत, संजय दधीच (कंवर) और संजय बिश्नोई (धन्ना) ठीक हैं । राहुल सिंह अच्छे हैं लेकिन चरित्र चित्रण से निराश करते हैं । अक्षय ओबेरॉय (अर्जुन सिंह) वेस्ट हो जा्ते है । सूरज व्यास (माखन; ढाबा मालिक), अनुष्का शर्मा (बबीता) और शुभम कुमार (बबीता का प्रेमी) ठीक हैं ।

थार में केवल एक गाना है और इसे शुरुआती क्रेडिट में प्ले किया जाता है । शाश्वत सचदेव द्वारा रचित, यह गाना काफी प्रभावशाली है । अजय जयंती का बैकग्राउंड स्कोर शानदार है । संगीत साज़िश और रहस्य को जोड़ता है और निश्चित रूप से हाल के दिनों में सबसे यादगार बीजीएम में से एक है । श्रेया देव दुबे की सिनेमैटोग्राफी शानदार है । डीओपी ने फिल्म में दिखाए गए वर्जिन लेंडस्केप के साथ पूरा न्याय किया है । वसीक खान का प्रोडक्शन डिजाइन यथार्थवादी है । प्रियंका अग्रवाल की वेशभूषा प्रामाणिक है । सलाम अंसारी का एक्शन स्क्रिप्ट की जरूरत के हिसाब से परेशान करने वाला है । एटॉमिक आर्ट्स का वीएफएक्स अच्छा है । आरती बजाज की एडिटिंग रेज़र शार्प है ।

कुल मिलाकर, थार एक इंटरनेशनल लेवल की फ़िल्म है । यह एक सरप्राइज की तरह सामने आती है और इसके दिलचस्प प्लॉट, डायरेक्शन, म्यूजिक स्कोर और कभी न देखे गए राजस्थान के लोकेशंस फ़िल्म को देखने लायक बनाते हैं ।