कई महीनों बाद फ़ाइनली सिनेमाघरों में कोई बड़ी हिंदी फ़िल्म रिलीज हुई जिसका नाम है रूही । जाह्नवी कपूर, राजकुमार राव और वरुण शर्मा की हॉरर-कॉमेडी फ़िल्म रूही इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई । तो क्या रूही दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब हो पाती है या यह अपने प्रयास में विफ़ल होती है ? आइए समीक्षा करते हैं ।
रूही एक ऐसी लड़की की कहानी है जिसके अंदर एक आत्मा है । भंवरा पांडे (राजकुमार राव) और कट्टानी कुरैशी (वरुण शर्मा) एक छोटे से शहर, बागड़पुर में अपराध पत्रकार के रूप में काम करते हैं । वे बागड़पुर में अमेरिकी रिपोर्टर (एलेक्स ओनील) की ‘पकड़वा शादी’ पर डॉक्युमेंट्री बनाने में मदद भी करते हैं । एक दिन, उनके मालिक, गुनिया शकील (मानव विज) उन्हें एक लड़की, रूही (जान्हवी कपूर) का अपहरण करने का आदेश देते हैं, जो पास के एक शहर, मुजारीबाड से है । भंवरा और कट्टानी रूही का अपहरण तो कर लेते हैं लेकिन उसे ठिकाने पर पहुंचाने के बजाय हालात उन्हें जंगल में पहुंचा देते हैं । यहां पता चलता है कि रूही के जिस्म में अफजा नाम की लड़की की रूह है । रूही और अफजा मिलकर रूह-अफजा बनता है। अफजा बदला लेना चाहती है । वहीं भंवरा रूही को दिल दे बैठा है मगर कट्टानी का दिल रूही के जिस्म में रह रही अफजा पर आ जाता है । इस प्रेम त्रिकोण का आखिर क्या होता है, ये पूरी फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।
मृगदीप सिंह लांबा और गौतम मेहरा की कहानी दिलचस्प और अनूठी है । लेखक पूरी कोशिश करते हैं कि टेबल पर कुछ नया ला सकें । मृगदीप सिंह लांबा और गौतम मेहरा की पटकथा, हालांकि, केवल कुछ जगह ही दिलचस्प है । कुछ दृश्य असाधारण हैं और हंसी लेकर आते हैं। लेकिन गंभीर हिस्से वांछित प्रभाव नहीं डालते । मृगदीप सिंह लांबा और गौतम मेहरा के संवाद मजाकिया हैं । लेकिन बोली बहुत प्रामाणिक है जो कई स्थानों पर समझ से बाहर है ।
हार्दिक मेहता का निर्देशन औसत है । फ़िल्म के कुछ सकारात्मक पहलूओं पर नजर डालें तो हार्दिक मेहता ने कुछ सीन बहुत ही अच्छे से हैंडल किए है । इसके अलावा वह फ़िल्म के लिए मूड सेट करने में कामयाब होते हैं । यहां तक कि फिल्म में दिखाए गए विभिन्न शहरों को विशिष्ट रूप से चित्रित किया गया है । फ़िल्म के निगेटिव प्वाइंट्स की बात करें तो, सबसे पहले तो क्लाइमेक्स निराश करता है क्योंकि फ़िल्म अचानक नोट पर समाप्त होती है । दर्शकों को लगता है कि मेकर्स को रूही के पास्ट के बारें में कुछ बैकग्राउंड स्टोरी तो बतानी चाहिए थी, लेकिन मेकर्स ऐसा नहीं करते हैं । सही मायने में रूही स्त्री की तरह असर छोड़ने में नाकाम साबित होती है । सबसे मुश्किल तो इस फ़िल्म की बोली को समझना है । कुछ डायलॉग्स तो लोगों के सर के ऊपर से निकल जाएंगे ।
रूही एक दिलचस्प नोट पर शुरू होती है, जिसमें बागाडपुर में दुल्हन के अपहरण की अवधारणा को दर्शाया गया है, वह भी एक विदेशी रिपोर्टर (Alexx O'Nell) की नजर से । फिल्म में दिलचस्पी तब जागती है जब भावा और कट्टानी रूही का अपहरण करते हैं । यहां कुछ सीन देखने लायक है जो दर्शकों के चेहरे पर खुशी लेकर आते हैं । इंटरमिशन अहम मोड़ पर होता है । इंटरवल के बाद फ़िल्म थोड़ी बिखरने लगती है । लेकिन कुछ सीन है जो देखने लायक है जैसे- कुत्ते के साथ शादी वाला सीन, बुजुर्ग महिला (सरिता जोशी) के साथ बावरा की बातचीत इत्यादि । क्लाइमेक्स हालांकि अप्रत्याशित है लेकिन निराश कर देने वाला है ।
राजकुमार राव उम्मीद के मुताबिक फ़ुल फ़ॉर्म में नजर आते हैं । उनकी शानदार परफ़ोर्मेंस के चलते उन्हें पसंद किया जाता है फ़िर भले ही उन्होंने फ़िल्म में अपहरणकर्ता की भूमिका क्यों न निभाई हो । उनकी कॉमिक टाइमिंग तो शानदार है । जाह्नवी कपूर फ़िल्म के लिए सरप्राइज हैं । हालांकि उनके हिस्से में बमुश्किल ही कोई डायलॉग आया हो लेकिन उन्होंने अपने हाव-भाव से बेहतरीन एक्टिंग की है । वरुण शर्मा अद्भुत हैं और हंसी लेकर आते हैं । हालांकि, अंतिम 30 मिनटों में, उसके पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं है । मानव विज अपने रोल में जंचते हैं और उनका अभिनत अच्छा है । सरिता जोशी (पद्म श्री सरिता जोशी के रूप में फिल्म में श्रेय देने वाली) प्रफुल्लित करने वाली हैं और उन्हें देखकर लगता है कि काश उनका रोल थोड़ा और बड़ा होता ।
सचिन-जिगर का संगीत फिल्म और उसकी थीम के लिए उपयुक्त है । 'किस्तों' अचानक आता है लेकिन वह भावपूर्ण है । 'भूतनी ’प्रफुल्लित करने वाला है जबकि 'पंगत’ अंतिम क्रेडिट में प्ले किया जाता है। फिल्म शुरू होने से पहले 'नदियों पार' फिल्म के प्रिंट के साथ अटैच है । यह बहुत अच्छा गाना है । केतन सोढ़ा का बैकग्राउंड स्कोर फ़िल्म की थीम के साथ मेल खाता है और डर पैदा करता है ।
अमलेंदु चौधरी की सिनेमैटोग्राफी शानदार है । फिल्म में विभिन्न स्थानों को अच्छी तरह से कैप्चर किया गया है । आयुषी अग्रवाल और अभिजीत श्रेष्ठ का प्रोडक्शन डिजाइन विचित्र है और डर का माहौल बनाता है । थिया टेकचंदानी की वेशभूषा यथार्थवादी है । निकिता कपूर की प्रोस्थेटिक्स बहुत शानदार है। मनोहर वर्मा का एक्शन ठीक है, जबकि रेड चिलीज वीएफएक्स के वीएफएक्स सर्वोत्तम है । हुज़ेफा लोखंडवाला का संपादन ठीक है लेकिन फ़र्स्ट हाफ़ में और बेहतर हो सकता था ।
कुल मिलाकर, रूही एक अनूठे कॉन्सेप्ट, बेहतरीन परफ़ोर्मेंस और कुछ दिलचस्प फ़नी और हॉरर सीक्वंस से सजी फ़िल्म है । लेकिन निराश कर देने वाले क्लाइमेक्स और मुश्किल से समझ में आने वाली बोली, इस फ़िल्म के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को प्रभावित कर सकती है ।