Review: रश्मि रॉकेट तापसी पन्नू की बेहतरीन परफ़ोर्मेंस से सजी एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर बेस्ड फ़िल्म है । लेकिन इसे वर्ड ऑफ माउथ की आवश्यकता होगी । रेटिंग : 3 स्टार्स
रश्मि रॉकेट एक ऐसी लड़की की कहानी है जिस पर पुरुष होने का आरोप लगाया जाता है । साल 2014 है । रश्मि वीरा (तापसी पन्नू) भुज, गुजरात की रहने वाली हैं और एक टूर गाइड हैं । वह एक ग्रेट रनर है लेकिन 2001 के भूकंप में अपने पिता रमणीक (मनोज जोशी) को खोने के बाद उसने दौड़ना छोड़ दिया । उस समय, वह एक चल रहे टूर्नामेंट में भाग ले रही थी जब भूकंप आया । वह दौड़-भाग में इस कदर खोई हुई थी कि उसे अपने आस-पास की भगदड़ का एहसास भी नहीं हुआ । उसकी माँ, भानुबेन (सुप्रिया पाठक) ने फिर उसे पाला और अपने गाँव की महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ना शुरू कर दिया । चूंकि वह एक सैन्य क्षेत्र में रहती है, इसलिए उसकी सेना के एक डॉक्टर, डॉ. एजाज कुरैशी (आकाश खुराना) के साथ अच्छी दोस्ती है । वह उसे कैप्टन गगन ठाकुर (प्रियांशु पेन्युली) से मिलवाता है । गगन और उसके साथियों के साथ दौरे के दौरान, रश्मि रॉकेट की तरह दौड़ती है और एक सैनिक की जान बचाती है जो एक बारूदी सुरंग पर कदम रखने वाला था । ये देखकर गगन प्रभावित हो जाता है । गगन रश्मि को दौड़ने के लिए प्रोत्साहित करता है। पहले वह मना करती है लेकिन फ़िर वह मान जाती है । इंडियन एथलेटिक्स एसोसिएशन रश्मि को एशिया गेम्स 2014 में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए ट्रेनिंग देने के लिए अपने यहां बुलवाती है । रश्मि के लिए शुरुआती दिन मुश्किल भरे होते हैं । मुख्य कोच तेजस मुखर्जी (मंत्र) के सानिध्य में, वह खेल में और भी बेहतर होने की कोशिश करती है। कुछ साथी धावक उसका तिरस्कार करते हैं, खासकर निहारिका (मिलोनी झोंसा) और प्रियंका (नमिता दुबे)। वे उसे 'पुरुष' कहते हैं क्योंकि उनका मानना है कि उसके पास मर्दाना गुण हैं। रश्मि इन बातों को इग्नोर करती हैं और अपने गेम पर फोकस करती हैं। एशिया खेलों में, रश्मि तीन स्वर्ण पदक जीतने में सफल होती है। उसी दिन, जब वह लौटती है, तो एसोसिएशन की एक महिला अधिकारी (लीशा बजाज) उसे कुछ प्रोसेस के लिए साथ आने के लिए कहती है। रश्मि को एक सरकारी अस्पताल ले जाया जाता है और वहां उसके कुछ टेस्ट होते हैं । इन सभी प्रक्रियाओं में करीब छह घंटे का समय लगता है और रश्मि को खाना खाने की इजाजत भी नहीं होती है। वह अपमानित महसूस करते हुए अपने छात्रावास लौट जाती है । होस्टल जाकर वह निहारिका से भिड़ जाती है जब निहारिका एक बार फिर रश्मि को ताना मारती है और उसे 'लौंडा' कहती है । गुस्से में रश्मि उसके चेहरे पर मुक्का मार देती है । कुछ देर बाद इंस्पेक्टर साठे (उमेश प्रकाश जगताप) हॉस्टल पहुंचते हैं और तापसी को जबरन गिरफ़्तार कर लेते हैं ये कहकर कि हॉस्टल में कोई लड़का लड़की बनकर छुपा हुआ है । गगन पुलिस स्टेशन जाकर रश्मि को छुड़ा लाता है । रश्मि की ये खबर मीडिया में आग की तरह फ़ैल जाती है । टे्स्ट की रिपोर्ट भी लीक हो जाती है और यह साबित करती है कि रश्मि में असामान्य रूप से उच्च स्तर का टेस्टोस्टेरोन है । इसलिए एसोसिएशन ने उन्हें बैन कर दिया है । रश्मि इस बैन से कैसे निपटती है इसके लिए पूरीइ फ़िल्म देखनी होगी ।
नंदा पेरियासामी की कहानी अनूठी है और दुती चंद के जीवन से प्रेरित लगती है । अनिरुद्ध गुहा की पटकथा (कनिका ढिल्लों द्वारा अतिरिक्त पटकथा) अच्छी तरह से लिखी गई है और सरल है । फिल्म में जिस विषय को उठाया गया है वह नया है और दर्शकों के लिए इसे समझना थोड़ा मुश्किल है । लेकिन लेखकों ने यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश की है कि यह मुद्दा आसानी से समझ में आ जाए । हालांकि, सेकेंड हाफ कोर्ट और नॉन कोर्ट सीन के बीच झूलता रहता है । हालाँकि, बाद वाला उतना आकर्षक नहीं है । कनिका ढिल्लों के संवाद (आकर्ष खुराना, अनिरुद्ध गुहा और लिशा बजाज के अतिरिक्त संवाद) फ़िल्म की सबसे अच्छी चीजों में से एक हैं। कई वन-लाइनर्स प्रभाव को बढ़ाते हैं ।
आकर्ष खुराना का निर्देशन साफ-सुथरा है । उनकी सबसे बड़ी जीत यह है कि उन्होंने ऐसे संवेदनशील मुद्दे को बहुत ही अच्छे से हैंडल किया है । विभिन्न ट्रैक स्मार्टली हैंडल किए गए हैं, चाहे वह गगन के साथ रश्मि का बॉन्ड हो या रश्मि की ट्रेनिंग पीड़ा या कोर्ट रूम ड्रामा । वहीं दूसरी तरफ जहां रश्मि और भानुबेन का ट्रैक फ़र्स्ट हाफ़ में दिल को छूता है, वहीं सेकेंड हाफ में यह काफ़ी कमजोर सा लगता है । रश्मि और उसकी माँ ने एक दूसरे से बोलना बंद क्यों बंद कर दिया, यह ठीक से नहीं बताया गया है । जहां कोर्ट के सीन फिल्म को हाई नोट पर ले जाते हैं, वहीं इंटरमीडिएट सीक्वेंस वांछित प्रभाव पैदा नहीं करते हैं, हालांकि यहां भी बहुत कुछ होता है । एक महत्वपूर्ण प्लॉट, जो क्लाइमेक्स में सामने आता है, यह पूर्वानुमेय है, हालाँकि इसे एक सस्पेंस ट्रैक की तरह ट्रीट किया जाना चाहिए ।
रश्मि रॉकेट की शुरुआत नाटकीय ढंग से होती है । बचपन के हिस्से प्यारे लगते हैं । वह दृश्य जहां गगन रश्मि से दोस्ती करता है और उसे पता चलता है कि वह एक एक्सपर्ट रनर है। रश्मि का ट्रेनिंग ट्रैक नाटकीय है और दर्शकों को बांधे रखता है । हालांकि, फर्स्ट हाफ में जो सीन सबसे ज्यादा हैरान करता है, वो है कि टेस्ट के दौरान रश्मि को कैसे अपमानित किया जाता है । थाने में गगन का ठहाका तालियों के काबिल है । सेकेंड हाफ में, इशित (अभिषेक बनर्जी) की एंट्री कुछ हल्के-फ़ुल्के पल जोड़ती है । कोर्ट रूम के सभी दृश्य मनोरंजक हैं लेकिन बीच वाले उतने प्रभावी नहीं हैं । फिनाले काफ़ी अच्छा है ।
तापसी पन्नू उम्मीद के मुताबिक शानदार प्रदर्शन करती हैं । कुछ पुरस्कार-योग्य प्रदर्शन देने के बाद, उनसे कुछ और नहीं बल्कि सर्वश्रेष्ठ की उम्मीद की जाती है जिसमें वह निराश नहीं करती । साथ ही, वह गुजराती एक्सेंट और मर्दाना लुक को कंट्रोल में रखती हैं और यह काम करता है । प्रियांशु पेन्युली की डायलॉग डिलीवरी अच्छी है और वह अपने किरदार के साथ पूरा न्याय करते हैं । अभिषेक बनर्जी काफी मनोरंजक हैं और फिल्म के सेकेंड हाफ में जान फूंक देते हैं । सुप्रिया पाठक प्यारी लगती हैं लेकिन उनका ट्रैक सेकेंड हाफ में और भी मजबूत बनकर उभर सकता था । मनोज जोशी और आकाश खुराना गेस्ट अपीयरेंस में प्यारे लग रहे हैं । सुप्रिया पिलगांवकर (जज सविता देशपांडे) फ़िल्म में अपने छोटे से रोल से दिल जीत लेती है । वही वरुण बडोला (दिलीप चोपड़ा) भी जंचते है । मिलोनी झोंसा और नमिता दुबे निगेटिव जैसे रोल्स में जंचते हैं । उमेश प्रकाश जगताप कुछ ही दृश्यों के साथ अपनी छाप छोड़ते हैं । जफर कराचीवाला (मंगेश देसाई) एक सराहनीय कार्य करते हैं । असीम जयदेव हट्टंगडी (प्रवीन सूद) और क्षितिज जोग (डॉ म्हात्रे) एक छोटी सी भूमिका में अच्छे लगते हैं । लिशा बजाज की उपस्थिति ध्यान खींचती है । श्वेता त्रिपाठी शर्मा (माया भसीन) एक कैमियो में कमाल की लगती हैं ।
अमित त्रिवेदी का संगीत कुछ खास नहीं है। 'घनी कूल छोरी' जैसा गाना फ़िल्म में चार्टबस्टर गाने जरूरत को कुछ हद तक पूरा करता है। 'ज़िद' में अन्य स्पोर्ट्स फिल्मों में एड्रेनालाईन-पंपिंग ट्रैक की कमी है । 'रण मा कच्छ' फिल्म की कच्छ सेटिंग के लिए एक अच्छा शगुन है । 'जिंदगी तेरे नाम' भूलने योग्य है। अमित त्रिवेदी का बैकग्राउंड स्कोर कहीं बेहतर है ।
इस तरह की फिल्म के लिए नेहा पार्टी मटियानी की सिनेमैटोग्राफी उपयुक्त है । दुर्गाप्रसाद महापात्रा का प्रोडक्शन डिजाइन वास्तविक सा लगता है । रोहित चतुर्वेदी की वेशभूषा स्टाइलिश है, खासकर तापसी द्वारा पहनी जाने वाली पोशाकें । स्वर्गीय अजय शर्मा और श्वेता वेंकट मैथ्यू की एडिटिंग सेकेंड हाफ़ में और भी स्लीक हो सकती थी ।
कुल मिलाकर, रश्मि रॉकेट तापसी पन्नू की बेहतरीन परफ़ोर्मेंस से सजी एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर बेस्ड फ़िल्म है । फ़िल्म की कम चर्चा इसके लिए निराशाजनक साबित हो सकती है इसलिए इसे वर्ड ऑफ माउथ की आवश्यकता होगी ।