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जीरो कई कारणों से एक अत्यंत महत्वपूर्ण फ़िल्म है । सबसे अहम कारण है ये है कि, यह शाहरुख खान और आनंद एल राय, जिसने अपनी पिछली तीन फ़िल्मों [तनु वेड्स मनु, रांझना और तनु वेड्स मनु रिटर्न्स] से हिट की हैट्रिक लगाई, की साथ में पहली फ़िल्म है ।

फ़िल्म समीक्षा : बड़े स्तर पर निराश करती है जीरो !

उनकी पिछली फ़िल्मों के विपरीत, इस बार इस फ़िल्म का दांव काफ़ी बड़ा था । फ़िल्म का मुख्य अभिनेता इसमें ऐसे रोल में नजर आया जो उसने पहले कभी नहीं निभाई, वहीं, सेकेंड हाफ़ के एक महत्वपूर्ण हिस्से में फ़िल्म की पटकथा में अंतरिक्ष यात्रा को शामिल किया गया है । स्वाभाविक रूप से, अपेक्षाएं बहुत विशाल हैं ।

पूरी कहानी खोले बिना, यहां हम आपको फ़िल्म की संक्षिप्त कहानी के बारें में सबसे पहले बताते हैं :- बउआ [शाहरुख खान], एक 38 साल का आदमी है, जो अपने परिवार के साथ उत्तरप्रदेश के एक छोटे से शहर मेरठ में रहता है । वह मैरिज ब्यूरो में आफ़िया [अनुष्का शर्मा] की प्रोफ़ाइल देखता और वो उसे पसंद आ जाती है और फ़िर वो उसे शादी के लिए प्रपोज करने का फ़ैसला करता है ।

शुरूआत में आफ़िया को बउआ में कोई दिलचस्पी नहीं होती है । बउआ निराश होकर वापस आ जाता है । कुछ महीनों बाद, एक दिन बउआ आफ़िया को अपने घर देखकर हैरान रह जाता है ।

बउआ के पिता [तिंग्माशु धूलिया] बउआ और आफ़िया की शादी कराने का फ़ैसला करते हैं और अनिच्छुक बउआ भी शादी के लिए राजी हो जाता है । वहीं बउआ एक डांस कॉम्पिटिशन में भाग लेता है जहां जितने वाले विजेता को सुपरस्टार बबीता [कैटरीना कैफ़] से मिलने का मौका मिलेगा ।

बबीता का एक उत्साही फ़ैन,बउआ शादी के दिन आफ़िया को धोखा दे देता है । इसके बाद फ़िल्म में क्या होता है, यह फ़िल्म के बाकी हिस्सों में पता चलता है ।

सबसे पहले कहानी से शुरूआत करते हैं, फ़िल्म की कहानी [हिमांशु शर्मा] काफ़ी बारीक प्लॉट पर टिकी हुई है । लेखक ने कहानी में अंतरिक्ष यात्रा को शामिल किया है और आप तर्क दे सकते हैं [वो भी सही मायने में] कि यह ऐसा पहलू है जो कहानी को प्रीडक्शन से दूर ले जाता है यानि कि फ़िल्म के बारें में कोई कल्पना नहीं कर सकता । लेकिन फ़िर भी लेखक एक बांधे रखने वाली आकर्षक व मनोरंजक पटकथा गूंथने में नाकाम होता है ।

जीरो के फ़र्स्ट हाफ़ में कुछ ध्यान खींचने वाले पल हैं जो आपका दिल जीतते हैं और आपके चेहरे पर एक स्माइल लेकर आते है । वहीं कुछ ऐसे सीन भी हैं जो आपका ध्यान तो खींचते हैं लेकिन फ़िर आपको महसूस होता है कि, जैसे-जैसे फ़िल्म आगे बढ़ रही है, कुछ गड़बड़ होती जा रही है ।

इंटरवल के बाद फ़िर से आपको फ़िल्म से एक उम्मीद होती है, और आप कुछ अच्छा लेखन और इमोशनल सीन की उम्मीद रखते हैं- जैसा कि आनंद की पिछली फ़िल्मों में होता है जिससे पूरी फ़िल्म बेहतरीन फ़िल्म में तब्दील हो जाती है । दुर्भाग्य से, लेखन पूरी तरह से धराशाही हो जाता है क्योंकि फ़िल्म का फ़न पोर्शन खत्म हो जाता है, रोमांस सतही लगता है और इमोशन नकली और झूठे लगते है ।

जीरो को जो कहीं हद तक बचाती है, इसके मुख्य कलाकारों के उम्दा प्रदर्शन के अलावा, कुछ शार्प और मजेदार लाइंस । लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि थिएटर से बाहर निकलने के बाद ये शानदार लाइंस या विशिष्ट सीक्वंस भूला दिए जाते हैं ।

आनंद एल राय का निर्देशन उनकी पिछली फ़िल्मों के कामों से कोसों दूर है । असल में, अविश्वसनीय रूप से एक प्रतिभाशाली कहानीकार आनंद आपको, अपनी अच्छे से बनाई गई फ़िल्मों में हंसाने, गुदगुदाने और रुलाने के लिए खासतौर पर जाने जाते है । जो भी उनकी पिछली फ़िल्मों को याद करेगा, वो इस बात से हैरान रह जाएगा कि कैसे उन्होंने एक अधपकी पटकथा को मंजूरी दी ? जैसे-जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती है, कई सारे सवाल आपके दिमाग में कौंधते है और फ़िर जल्द ही आपको महसूस हो जाता है कि, यह समझ के परे पटकथा है ।

दूसरे घंटे में फ़िल्म का ग्राफ़ और नीचे गिर जाता है । आम तौर पर, आप फिल्म के रन टाइम/ लंबाई के बारे में शिकायत नहीं करते हैं यदि फ़िल्म के सीन आपको मंत्रमुग्ध करते हैं<मनोरंजन करते हैं और आपको बांधे रखते है । अफसोस की बात है, जीरो में एक मजबूत और एकजुट स्क्रिप्ट की शक्ति की कमी है ।

अजय-अतुल का साउंडट्रैक फ़िल्म का प्लस प्वाइंट है । 'मेरा नाम तू' निस्संदेह, सबसे अच्छा ट्रैक है । दोनों खानों के फ़ैंस के लिए सलमान-शाहरुख का गाना एक ट्रीट की तरह है । छायांकन शानदार है । कैमरे ने कई स्थानीय जगहों और मूड्स को काफ़ी अच्छे से कैप्चर किया है, अर्थात कैमरा वर्क शानदार है । प्रोडक्शन डिजाइन शीर्ष स्तर की है । वीएफ़एक्स को खास उल्लेख, जो वैश्विक मानकों से मेल खाता है ।

शाहरुख खान, जीरो की लाइफ़लाइन हैं । वह अपनी टॉप फ़ॉर्म में है । शाहरुख अपने बेहतरीन प्रदर्शन के लिए 10 में से 10 नंबर के हकदार है क्योंकि उन्होंने वाकई बहुत बेहतरीन काम किया है । अनुष्का शर्मा अपने किरदार में छा जाती है । इसमें कोई शक नहीं कि वह सभी कलाकारों में सर्वश्रेष्ठ हैं और उनका उम्दा प्रदर्शन इसका सबूत है । कैटरीना कैफ़ अपने शानदार परफ़ोरमेंस से हैरान कर देती है । सेकेंड हाफ़ में कुछ सीन में उन्हें छा जाने के लिए काफ़ी कुछ स्कोप मिलता है ।

मोहम्मद जीशान अयूब भरोसेमंद हैं और फ़िल्म में फ़न को जोड़ते हैं । तिग्मांशु धुलीया परफ़ेक्ट हैं । बृजेंद्र कला शायद ही नजर आते हैं । अभय देओल और आर माधवन शायद ही अपना योगदान देते हैं ।

जीरो में श्रीदेवी, काजोल रानी मुखर्जी, आलिया भट्ट, दीपिका पादुकोण, करिश्मा कपूर और जुही चावला एक अपरिहार्य सीन में नजर आती हैं ।

कुल मिलाकर जीरो, में चलने के लिए कई फ़ैक्टर हैं जैसे- बड़े स्टार्स की मौजूदगी, उनकी शानदार परफ़ोरमेंस, दमदार साउंड ट्रेक और निश्चित रूप से, इसका क्रिसमस और न्यू ईयर की छुट्टी के दौरान रिलीज होना । लेकिन अफसोस, कमजोर-दोषपूर्ण और असंतुलित पटकथा लेखन की वजह से ये बहुप्रतिक्षित फ़िल्म मात खा जाती है । यह फ़िल्म बहुत बड़े स्तर पर निराश करती है ।