बॉलीवुड मुख्य रूप से प्रेम कहानियों के लिए जाना जाता है और इस शैली से संबंधित यहां कई फ़िल्में बनी और उन्होंने सफ़लता भी अर्जित की । और उन्हीं प्रेम कहानियों में से एक विषय है प्रेम त्रिकोण यानी लव ट्रायंगल । फ़िल्म मेकर अनुराग कश्यप, जो डार्क और हार्ट हीटिंग सिनेमा के लिए जाने जाते है, ने इस बार एक हल्की-फ़ुल्की रोमांटिक फ़िल्म बनाने का फ़ैसला किया जो बेसिकली प्रेम त्रिकोण पर आधारित है । तो अनुराग कश्यप का ये 'कमर्शियल एक्सपेरिमेंट" काम कर पाएगा, या उनका यह प्रयास विफ़ल हो जाएगा, आइए समीक्षा करते है ।
मनमर्ज़ियां, दो प्रेमियों के बीच फंसी लड़की की कहानी है । अमृतसर में रहने वाली रुमी (तापसी पन्नू) एक तेजतर्रार लड़की है । वह काफ़ी कम उम्र में ही अनाथ हो जाती है और उसके बाद अपने चाचा के साथ उनके परिवार में रहती है । रूमी को विकी उर्फ़ डीजे सेंडेज़ (विकी कौशल), जो उसके घर के काफ़ी नजदीक रहता है, से प्यार हो जाता है । विकी चुपके से छत से कूदकर अक्सर रूमी से मिलने आता है । एकदिन वह रंगे हाथों पकड़ा जाता है और पूरे घर व मोहल्ले में हंगामा मच जाता है । रूमी के परिवार वाले उसकी शादी करने का फ़ैसला करते है । लेकिन रूमी सिर्फ़ विकी से शादी करना चाहती है । वहीं अपने परिवार को इस बात का भरोसा दिलाती है कि विकी और उसके घरवाले उसका हाथ मांगने उसके घर आएंगे । लेकिन वहीं विकी जिम्मेदारियों से दूर भागता है । और इसलिए विकी और रूमी का शादी के मुद्दे को लेकर गंभीर झगड़ा हो जाता है । इसी बीच, रॉबी (अभिषेक बच्चन), जो लंदन बेस्ड है, अपनी फ़ैमिली से मिलने और फ़ैमिली की इच्छा के अनुसार शादी रचाने अमृतसर आता है । यह जानकर की, विकी शादी को लेकर दूर भाग रहा है, रूमी किसी से भी शादी करने के लिए हां कह देती है । और इस बीच रूमी और रॉबी एक दूसरे से मिलते है । रॉबी को रूमी से पहली नजर में ही प्यार हो जाता है और वह रूमी से शादी करने को हामी भर देता है । जैसे ही विकी को रूमी की शादी के बारें में पता चलता है वह भड़क जाता है । शादी के ठीक एक दिन पहले, विकी रूमी से कहता है कि अब वह बदल गया है और जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार है । हालांकि रूमी अभी तक विकी से ही प्यार करती है इसलिए वह उसके साथ भागने केलिए राजी हो जाती है । लेकिन इससे पहले वह रॉबी से रात में मिलती है और उसे बताती है कि वह उससे शादी नहीं कर सकती । इसके बाद क्या होता है, यह आगे की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।
कनिका ढिल्लों की कहानी प्रभावशाली है लेकिन थोड़ी नोबल है । कनिका ढिल्लों की पटकथा बांधे रखने वाली है और कई जगहों पर परतदार है । अच्छे से गूंथे गए किरदारों ने फ़िल्म में जान डाल दी । हालांकि एक समय बाद, सेकेंड हाफ़ में फ़िल्म फ़िसलने लगती है । इसके अलावा यह फ़िल्म 155 मिनट की है जो थोड़ी सी लंबी है । इसके अलावा, फ़िल्म की बोल्ड थीम कुछ निश्चित दर्शकों को दूर कर सकती है । ये फ़िल्म अर्बन और यूथ दर्शकों को अपील कर सकती है । कनिका ढिल्लों के डायलॉग दमदार हैं और ज्वलनशील है । फ़िल्म के वन-लाइनर्स अच्छे से लिखे गए है ।
अनुराग कश्यप का निर्देशन उनका ट्रेडमार्क स्टैंप हैं, लेकिन इस फ़िल्म का विषय उनकी अन्य फिल्मों की तुलना में थोड़ा हल्का है । वह कुलमिलाकर फ़िल्म के प्लॉट के साथ न्याय करते हैं लेकिन जब फ़िल्म लगातार दोहराई जाती है तब उनका निष्पादन बहुत कुछ करने में सक्षम नहीं हो पाता है ।
चलिए सीधी बात कते है । मनमर्ज़ियां का ट्रेलर देखने के बाद कुछ लोगों ने दावा किया कि ये धड़कन [2000] और हम दिल दे चुके सनम [1999] का रीमेक है, लेकिन ऐसा नहीं है । फ़िल्म को गूंथने से लेकर किरदारों को सजाने तक, हर जगह से मनमर्ज़ियां इन दोनों फ़िल्मों से कहीं भी मेल नहीं खाती है । फ़िल्म कि शुरूआत फ़नी नोट, म्यूजिकल नोट पर होती है जो विकी और रुमी के बीच हॉट रोमांस दर्शाती है । जैसा कि शीर्षक से पता चलता है, फिल्म के किरदार अपने दिल के अनुसार चलते है । फ़िल्म का यह पहलू सही ढंग से ले जाया जाता है, खासकर फ़र्स्ट हाफ़ में । ड्रामा सीन और गाने अच्छे से ब्लेंड किए गए हैं और ये देखने लायक है । फ़िल्म के सबसे बेहतरीन सीन में से एक सीन फ़र्स्ट हाफ़ में आता है जब रूमी हाईवे के बीच रास्ते में विकी पर नाराज होती है । फ़िल्म का इंटरवल महत्वपूर्ण मोड़ पर होता है और दर्शक आगे और नया देखने केलिए उत्साहित होते है । लेकिन अफ़सोस, सेकेंड हाफ़ से फ़िल्म फ़िसलने लगती है और खिंचना शुरू हो जाती है । क्लाइमेक्स से ठीक पहले का सीन, समझ के परे लगता है हालांकि जिस तरह से क्लाइमेक्स प्रस्तुत किया जाता है, उसके लिए बनाता है ।
मनमर्ज़ियां कुछ बेहतरीन परफ़ोरमेंस से सजी हुई है । तापसी पन्नू बेहतरीन परफ़ोरमेंस देती है और उन पर से कोई भी अपनी नजर नहीं हटा सकता है । तापसी ने हाल ही में पिंक [2016], , नाम शबाना [2017] और मुल्क [2018]में यादगार परफ़ोरमेंस दी है । लेकिन मनमर्ज़ियां में उनकी परफ़ोरमेंस सबसे शानदार है और नि्श्चितरूप से ये उनका अब तक का सबसे बेहतरीन काम है । विकी कौशल, जो इन दिनों काफ़ी फ़ॉर्म में हैं, एक बार फ़िर रॉकिंग परफ़ोरमेंस देते है । वह पूरी तरह से अपने किरदार में समाए हुए नजर आते है और हर एंगल से एक छोटे उत्तर भारतीय शहर के वानबी म्यूजिशियन से डीजे जैसे लगते है । उनका रोना, उनकी चुप्पी और जिस तरह से वह अपनी आंखो से बात करते हैं, वाकई बहुत अच्छा है । अभिषेक बच्चन काफ़ी दमदार पोजिशन बनाते है और कई साल बाद उन्हें स्क्रीन पर देखना अच्छा लगता है । वह एक विन्रम आदमी का किरदार अदा करते हैं जबकि अन्य दो किरदार काफ़ी तेज और शार्प है । लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि अभिषेक दोनों के बीच कहीं छुप जाते है । वह अपने दम पर सेकेंड हाफ़ में अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं और यह देखने लायक है । फिल्म में सहायक किरदार भी काफ़ी अच्छा काम करते हैं । अश्नूर कौर (किरण; रुमी की चचेरी बहन) जंचती है । सौरभ सचदेव (काका जी, जो मैरिज ब्यूरो चलाती है) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और वह इसे बखूबी निभाती हैं । विक्रम कोचर (रॉबी का भाई) फ़िल्म में हास्य को जोड़ते हैं । रुमी का दरजी और रॉबी की मां का किरदार अदा करने वाले कलाकार भी काफ़ी अच्छा रोल निभाते हैं ।
अमित त्रिवेदी का संगीत फ़िल्म के लिए एक पिलर की तरह है क्योंकि यह एक म्यूजिकल फ़िल्म है । न केवल फ़िल्म के सभी गाने याद रखने योग्य हैं बल्कि फ़िल्म की कहानी में समाए हुए लगते है । 'डरया' सभी गानों में बेहतरीन है और इस गाने के दोनों वर्जन को फ़िल्म के अहम मोड़ पर प्ले किया जाता है । 'ग्रे वाला शेड" शुरूआत में प्ले होता है और फ़िल्म के मूड को सेट करता है । 'एफ़ फ़ॉर फ़्यार' ठीक है जबकि 'ध्यान चंद' फ़ंकी है और अच्छे से शूट किया गया है । 'बिजली गिरेगी' पेपी है जबकि, 'कुंडली' मजेदा गाना है । 'हल्ला' काफ़ी तनावपूर्ण मौके पर प्ले किया जाता है । 'चोंच लड़ाईयां" और 'जैसी तेरी मर्ज़ी' अच्छे हैं जबकि 'सच्ची मोहब्बत' हृदयस्पर्शी है । अमित त्रिवेदी का बैकग्राउंड स्कोर फ़िल्म की थीम के साथ अच्छे से सिंक होता है । और फ़िल्म में जुड़वा सेंसेशन देखने लायक है- पूनम शाह और प्रियंका शाह, अमृतसर की गलियों में नाचना फ़िल्म को एक यूनिक टच देता है ।
सिल्वेस्टर फोन्सेका के छायांकन ने तनाव, वास्तविक लोकेशन और कश्मीर की स्थानीय जगहों को बहुत ही खूबसूरती से कैप्चर किया है । मेघना गांधी का प्रोडक्शन डिजाइन विकी के स्टूडियो के दृश्यों में काफ़ी स्प्ष्ट है । प्रशांत सावंत की वेशभूषा काफी उपयुक्त हैं । सभी पात्रों को उनकी व्यक्तित्व के अनुसार तैयार किया जाता है । आरती बजाज का संपादन सरल और साफ है ।
कुल मिलाकर, मनमर्ज़ियां कुछ शानदार परफ़ोरमेंस और दमदार लेखन के साथ एक समकालीन और एक अपरंपरागत कहानी के रूप में सामने आती है । फिल्म की बोल्ड थीम अपनी अपील को सीमित कर सकती है लेकिन इसके लक्षित दर्शक फिल्म को जरूर पसंद करेंगे ।