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साउथ सिने प्रेमियों के बीच मुनी सीरिज की फ़िल्मों ने खूब प्यार हासिल किया । राघव लॉरेंस द्दारा डायरेक्ट मुनी सीरिज की फ़िल्मों ने न केवल लोगों की सराहना बटोरी बल्कि बॉक्सऑफ़िस पर भी जबरदस्त सफ़लता हासिल की । और जब कंचना के हिंदी रीमेक की घोषणा हुई तो इसने मेरा ध्यान आकर्षित किया । जिसकी वजह अक्षय कुमार थे । क्योंकि अक्षय कुमार ने कंचना के हिंदी रीमेक लक्ष्मी का किरदार निभाने का फ़ैसला किया जिसे कंचना में राघव लॉरेंस ने निभाया था ।

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मैंने कंचना को दो बार देखा है और वास्तव में, फ़िल्म की कसी हुई पटकथा ने मेरा दिल जीत लिया । दमदार संदेश के साथ कुछ अलग हटके प्लॉट ने मुझे इसे दोबारा देखने के लिए मजबूर कर दिया था । और जब मैंने कंचना को दोबारा भी देखा था तो मुझे काफ़ी मजा आया था ।

तो अब बात करते हैं लक्ष्मी की । आगे बढ़ने से पहले कुछ सवाल-

* क्या लक्ष्मी आपका मनोरंजन करने में कामयाब होगी, जैसा कंचना ने किया था ?

* क्या अक्षय कुमार पर किरदार जंचेगा ?

* वीएफ़एक्स कैसे होंगे ? ड्रामाटिक और इमोशनल सीक्वंस में ये कैसे तालमेल बनाएंगे ?

* और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि क्या लक्ष्मी हॉरर और कॉमेडी का सही से बेलेंस बनाने में कामयाब हो पाएगी या यही इसकी कमी बनेगा ?

फ़िल्म की कहानी- लक्ष्मी एक ऐसे आदमी की कहानी है जिसके शरीर में एक ऐसे ट्रांसजेंडर का भूत समा जाता है जिसकी निर्मम हत्या कर दी गई थी । आसिफ [अक्षय कुमार] जो काफी मॉर्डन सोच वाला इंसान है जो जाति-धर्म को नहीं मानता है, रश्मि ( कियारा आडवाणी) से प्यार करता है । धर्म अलग होने की वजह से फ़ैमिली शादी के लिए राजी नहीं होती है इसलिए दोनों भागकर शादी कर लेते हैं । शादी के 3 साल बाद रश्मि अपने पति आसिफ के साथ अपने मायके जाती है । रश्मि के घर के पास एक प्लॉट है जिसमें भूत-प्रेत का साया बताया जाता है । आसिफ वहां जाता है और ट्रांसजेंडर भूत 'लक्ष्मी' की आत्मा उसे पकड़ लेती है । लक्ष्मी का उद्देश्य बदला लेना है । इसके बाद आसिफ़ के शरीर में बसी लक्ष्मी की आत्मा उससे क्या-क्या कारनामे करवाती है इसके लिए पूरी फ़िल्म देखनी होगी ।

लक्ष्मी अपनी ऑरिजनल तमिल फ़िल्म [कंचना] के आसपास भी नहीं है, हालांकि हिंदी दर्शकों को मद्देनजर रखते हुए इसमें ऑरिजनल फ़िल्म से कई सारे बदलाव किए गए हैं । लक्ष्मी की सबसे बड़ी समस्या इसकी कमजोर पटकथा है । फ़र्स्ट हाफ़ में जो कॉमेडी है, ये उसी पर टिकी हुई है लेकिन ये भी फ़िल्म के फ़ेवर में काम नहीं करता है । सेकेंड हाफ़ में जब शरद केलकर की एंट्री होती है तब फ़िल्म में दिलचस्पी जागती है और फ़िल्म अपनी स्पीड पकड़ती है । यहां से लेकर फ़िल्म के क्लाइमेक्स तक यह बेहतर रहती है ।

हॉरर ट्रॉप्स का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है । आदर्शत; हॉरर कंपा देने वाला होना चाहिए लेकिन इसमें ओल्ड स्कूल हॉरर है । यहां तक की गानों में भी- खासकर शुरूआती दो गानों में [बुर्ज खलीफा सहित] जो कि सही प्लेसमेंट के हकदार थे ।

लेखन की वजह से राघव लॉरेंस निराश करते हैं । लेखक क्लासिक हॉरर टेम्पलेट में हास्य का तालमेल बिठाने की कोशिश करते हैं, जिसमें वह मात खा जाते हैं । पिछली हॉरर-कॉमेडी हिट्स जैसे कि गोलमाल अगेन [2017] और स्त्री [2018] ने मजबूत पटकथा के कारण अच्छा प्रदर्शन किया । लेकिन दुर्भाग्यवश लक्ष्मी यहां निराश करती है ।

कॉरियोग्राफ़ी और सही जगह पर फ़िट होने के मामले में 'बम भोले' स्पष्टरूप से सबसे अच्छा गाना है । बैकग्राउंड स्कोर फ़िल्म के साथ सिंक होता है जबकि सिनेमेटोग्राफ़ी फ़िल्म के मूड को अच्छे से कैप्चर करती है । वीएफ़एक्स फ़िल्म में अहम भूमिका निभाता है, जो कि अच्छा है ।

Laxmii Movie Review: उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती अक्षय कुमार की लक्ष्मी

अभिनय की बात करें तो, बिना किसी संदेह के पूरी फ़िल्म की लाइमलाइट है अक्षय कुमार । शारीरिक दमखम दिखाने वाले किरदार को अक्षय ने बखूबी निभाया । उन्होंने अपनी शानदार एक्टिंग से दिल जीत लिया । कियारा आडवाणी काफ़ी गॉरजियस लगती हैं लेकिन उनके पास करने के लिए ज्यादा कुछ होता नहीं है । लेकिन फ़िल्म का सबसे बड़ा सरप्राइज हैं शरद केलकर । वह अपने किरदार में बेहतरीन हैं ।

इसके अलावा लक्ष्मी में कई सारे कलाकार हैं जैसे- राजेश शर्मा, मनु ऋषि चड्ढा, आयशा रज़ा, अश्विनी कालसेकर, तरुण अरोरा और प्राची शाह और ये सभी सख्ती से ठीक हैं ।

कुल मिलाकर लक्ष्मी में पंच की कमी है । लोगों को इस फ़िल्म से बहुत उम्मीदें थी लेकिन यह बड़े स्तर पर निराश करती है ।