किसी का भाई किसी की जान एक आदमी और उसके तीन भाइयों की कहानी है । भाईजान (सलमान खान) दिल्ली में एक ऐसे मोहल्ले में रहता है जहाँ उसका बहुत आदर और सम्मान है । एक भ्रष्ट अमीर आदमी महावीर (विजेंदर सिंह) व्यावसायिक लाभ के लिए पड़ोस को हड़पना चाहता है । लेकिन भाईजान और उसकी ताकत के कारण वह ऐसा नहीं कर पाता । इस बीच भाईजान के तीन भाई हैं, मोह (जस्सी गिल), इश्क (राघव जुयाल) और लव (सिद्धार्थ निगम)। चौकड़ी ने कभी शादी नहीं करने की कसम खाई है क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके होने वाली पार्टनर उन्हें एक दूसरे से अलग कर देंगी । लेकिन मोह, इश्क और लव क्रमशः मुस्कान (पलक तिवारी), सुकून (शहनाज गिल) और चाहत (विनाली भटनागर) को गुप्त रूप से डेट करने लग जाते हैं । पड़ोस के नदीम चाचा (सतीश कौशिक) और उसके दो दोस्त (तेज सप्रू, आसिफ शेख) को उनके प्रेम संबंधों के बारे में पता चलता है। वे उन्हें चेतावनी देते हैं कि अगर भाईजान को इसके बारे में पता चलेगा तो वह टूट जाएगा । इसलिए, भाई और उनके प्रेमी भाईजान के लिए एक साथी खोजने का फैसला करते हैं । लकीली, उनकी मुलाक़ात भाग्यलक्ष्मी उर्फ भाग्या (पूजा हेगड़े) से होती है और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि वह उनके भाईजान के लिए बिलकुल फिट बैठती हैं। सौभाग्य से, भाग्या भी भाईजान के प्यार में पड़ जाती है और बाक़ी के भाइयों के साथ अच्छी ट्यूनिंग बैठ जाती है । तीनों भाई भाग्या को बताते हैं कि भाईजान एक अहिंसक व्यक्ति है, ठीक भाग्या के बड़े भाई बालकृष्ण (वेंकटेश दग्गुबाती) की तरह। भाईजान में भी उसके लिए भावनाएँ विकसित हो जाती हैं और वह आगे बढ़ जाता है जब उसे पता चलता है कि भाग्या उनके बीच समस्याएं पैदा नहीं करेगा । भाग्या भाईजान को उसके परिवार से मिलाने के लिए उसके साथ हैदराबाद जाने का फैसला करती है। रास्ते में दोनों पर हमला हो जाता है और भाईजान हिंसक रूप से विरोधियों को खत्म कर देता हैं । भाग्या को यहाँ ये सोचकर झटका लगता है कि उसका शांतिप्रिय बालकृष्ण उसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे । आगे क्या होता है इसके लिए पूरी फ़िल्म देखनी होगी ।
स्पर्श खेत्रपाल और ताशा भांबरा की कहानी आशाजनक है और इसमें एक कमर्शियल ब्लॉकबस्टर के सभी गुण हैं। स्पर्श खेत्रपाल और ताशा भांबरा की पटकथा मिश्रित है । कुछ दृश्यों को विशेष रूप से लिखा और सोचा गया है । लेकिन सेकेंड हाफ़ के कुछ प्रमुख दृश्य उतने दमदार नहीं है । फरहाद सामजी के डायलॉग सख्ती से ठीक हैं । इस तरह की फिल्म में इससे अधिक मजेदार और दमदार डायलॉग होने चाहिए ।
फरहाद सामजी का निर्देशन ठीक है । उन्होंने फ़िल्म को ग्रैंड बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और फ़िल्म के स्केल को बहुत अच्छी तरह से संभाला है । उन्होंने सलमान खान को बेहतरीन दिखाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है । कुछ दृश्यों को चतुराई से निष्पादित किया जाता है जो प्रभाव को बढ़ाता है । सेकेंड हाफ में पारिवारिक एंगल पारिवारिक दर्शकों को पसंद आएगा । इसलिए, यह एक ऐसी फिल्म है जो न केवल सलमान खान के प्रशंसकों को आकर्षित करेगी बल्कि सभी सिनेप्रेमियों को भी पसंद आएगी ।
दूसरी तरफ, हालांकि कहानी के संदर्भ में फ़र्स्ट हाफ़ में बहुत कुछ होता है, सेकेंड हाफ़ की कहानी में शायद ही कोई प्रगति होती है। साथ ही इसमें ह्यूमर की भी काफी गुंजाइश थी लेकिन मेकर्स ये मौक़ा गँवा देते हैं । उदाहरण के लिए, यह देखना दिलचस्प होगा कि भाईजान और उनके भाई दक्षिण भारतीय रीति-रिवाजों से कैसे तालमेल बिठाते हैं, लेकिन निर्माता इस पहलू को स्मार्टली हैंडल नहीं कराटे । दमदार डॉयलॉग्स की कमी भी फ़िल्म के प्रभाव को बाधित करती है । शुक्र है कि सलमान खान की स्टार पावर कई कमियों की भरपाई कर देती है ।
किसी का भाई किसी की जान की शुरुआत रॉकिंग नोट से होती है । भाईजान की एंट्री वास्तव में सीटी-योग्य है और प्रशंसकों द्वारा पसंद की जाएगी । भाग्यश्री का कैमियो शानदार है । भाग्या का एंट्री सीन और उसके बाद के सीन फनी नहीं हैं लेकिन दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान जरूर छोड़ देंगे । सबसे अच्छा सीन इंटरवल के लिए रिज़र्व है । यह आसानी से फिल्म का सबसे रॉकिंग हिस्सा है और सिनेमाघरों में पागलपन की ओर ले जाएगा । इस बिंदु पर एक महत्वपूर्ण मोड़ है जो आगे मज़ा बढ़ाता है । सेकेंड हाफ़ दो दृश्य जो सामने आते हैं, बालकृष्ण नागेश्वर (जगपति बापू) से माफी माँगने के लिए सहमत होते हैं और कार में बालकृष्ण और भाईजान की बातचीत। फिनाले भी देखने लायक़ है ।
परफॉर्मेंस की बात करें तो सलमान खान अच्छी फॉर्म में हैं । वह ऊर्जावान प्रतीत होते है और निश्चित रूप से, उनकी स्टार पावर फ़िल्म में काफ़ी नज़र आती है । पूजा हेगड़े शानदार दिखती हैं और प्रथम श्रेणी का प्रदर्शन करती हैं । वेंकटेश दग्गुबाती ने ईमानदारी से प्रयास किया है और सफलता प्राप्त करते हैं। जस्सी गिल, राघव जुयाल और सिद्धार्थ निगम ठीक हैं और अच्छा करते हैं । जहां तक लड़कियों की बात है, शहनाज गिल अपनी छाप छोड़ती हैं, जबकि पलक तिवारी और विनाली भटनागर ज्यादा शाईन नहीं पाती हैं । जगपति बाबू खलनायक के रूप में जँचते हैं जबकि विजेंदर सिंह बेहतर काम कर सकते थे । भूमिका चावला बेकार हो जाती है लेकिन रोहिणी हट्टंगड़ी यादगार है । स्वर्गीय सतीश कौशिक प्यारे लगाते हैं । आसिफ शेख और तेज सप्रू भी बर्बाद हो जाते हैं । राम चरण और भाग्यश्री अपनी-अपनी विशेष उपस्थिति में शानदार लगाते हैं । हिमालय दासानी और अभिमन्यु दासानी भी उम्दा अभिनय करते हैं ।
म्यूजिक चार्टबस्टर किस्म का है । हालांकि फिल्म में 8 गाने हैं, लेकिन यह असुविधा का कारण नहीं बनते हैं और अच्छी तरह से ट्यून किए गए हैं। 'नैयो लगदा' सबसे अच्छा है और उसके बाद 'येंतम्मा' और 'बथुकम्मा' है। 'जी रहे थे हम' प्यारा है जबकि 'तेरे बिना' दिल को छू लेने वाला है । 'ओ बल्ले बल्ले' ठीक है जबकि 'बिल्ली बिल्ली' आकर्षक है । 'लेट्स डांस छोटू मोटू' एकमात्र ट्रैक है जो लुभाने में विफल रहता है । रवि बसरूर का बैकग्राउंड स्कोर शानदार और व्यापक है ।
वी मणिकंदन की सिनेमैटोग्राफी साफ-सुथरी है । अनल अरासु का एक्शन थोड़ा परेशान करने वाला है, लेकिन फिल्म के मुख्य बिंदुओं में से एक है । रजत पोद्दार का प्रोडक्शन डिजाइन बहुत रिच है । हालाँकि, कुछ सेट एक दूसरे के समान दिखते हैं। एशले रेबेलो, अलवीरा खान अग्निहोत्री, सनम रतनसी और रोशेल डी'सा की वेशभूषा ग्लैमरस है और सभी प्रमुख अभिनेता स्क्रीन पर बहुत आकर्षक और आकर्षक दिखते हैं। वन लाइन वीएफएक्स और रिडिफाइन का वीएफएक्स संतोषजनक है । मयूरेश सावंत की एडिटिंग शार्प है ।
कुल मिलाकर, किसी का भाई किसी की जान सलमान खान के प्रशंसकों के लिए एक परफ़ेक्ट ईद गिफ्ट है, जो निश्चित रूप से इसे पसंद करेंगे । वहीं, सेकंड हाफ में फैमिली एंगल दर्शकों के एक बड़े वर्ग को अपील करने की क्षमता रखता है । बॉक्स ऑफिस पर भले ही आज यह ईद से पहले की वजह से धीमी गति से खुलेगी, लेकिन वीकेंड में इसके कलेक्शन में काफ़ी बढ़त देखने को मिलेगी । किसी बड़ी रिलीज की कमी और फ़ेस्टिव सीजन फ़िल्म के कलेक्शन को बढ़ाने में मदद करेगा ।