/00:00 00:00

Listen to the Amazon Alexa summary of the article here

सैफ अली खान यूं तो हर तरह के किरदार में जंचते हैं लेकिन उन पर कूल-बिंदास और कैसिनोवा टाइप के किरदार कई सिनेप्रेमियो को उन पर जंचते है । अपने करियर में उन्होंने ऐसे किरदार वाली कई फ़िल्में की है । और अब काफ़ी समय बाद सैफ़ अली खान एक बार फ़िर अपने सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले किरदार के साथ आए हैं इस हफ़्ते रिलीज हुई फ़िल्म जवानी जानेमन में । खास बात ये है कि जवानी जानेमन के साथ सैफ़ अपने नए बैनर ब्लैक नाइट फिल्म्स को लॉंच कर रहे है । तो क्या यह फ़िल्म दर्शकों की उम्मीद पर खरी उतरती है या दर्शकों को निराश करती है ? आइए समीक्षा करते है ।

Jawaani Jaaneman Movie Review: कैसी है सैफ़ अली खान की जवानी जानेमन, यहां जाने

जवानी जानेमन एक 40 साल के प्लेबॉय आदमी, जिसकी जिंदगी अचानक बदल जाती है, की कहानी है । जस्सी उर्फ जैज (सैफ अली खान) अपने 40 के दशक में है और लंदन में रहते है । वह सिंगल है और कमिट करने के मूड में नहीं है । प्रोफ़ेशनली वह रियल एस्टेट ब्रोकर है और अपने भाई डिम्पू (कुमुद मिश्रा) के साथ काम करते है । लेकिन उनका ज्यादातर समय लड़कियों के साथ वक्त गुजारने और पार्टी करने में चला जाता है । वह एक ऐसी प्रोपर्टी डील भी करने जा रहे हैं जो उन्हें लंदन का सबसे बड़ा प्रोपर्टी डीलर बना देगी । उनकी जिंदगी उनके अनुसार अच्छी चल रही होती है लेकिन एक दिन जब उसकी मुलाकात टिया (अलाया फ़र्नीचरवाला) से होती है तो बहुत कुछ बदल जाता है । पहली बार वह उसके साथ फ़्लर्ट करता है और उसका लक्ष्य उसे अपने बैड तक ले जाना चाहता है । लेकिन वह उसे बताती है कि वह उसकी बेटी है । और डीएनए टेस्ट में पता चलता है कि वह उसकी बेटी है । इतना ही नहीं अब टिया भी बिन ब्याही मां बनने वाली है । फ़िर जैज हिल जाता है कि वह केवल पिता ही नहीं बल्कि नाना भी बनने वाला है । इसके बाद आगे क्या होता है, ये आगे की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

जवानी जानेमन एक इटैलियन फ़िल्म का रीमेक है । प्लॉट काफ़ी अच्छा है लेकिन इसे और ज्यादा मजेदार और मनोरंजक बनाया जा सकता था । स्क्रीनप्ले कई जगहों पर असंगत और कमजोर है । सिर्फ़ कुछ ही सीन हंसी लेकर आते है । हुसैन दलाल और अब्बास दलाल के डायलॉग मजाकिया हैं और प्रभाव को बढ़ाने की पूरी कोशिश करते हैं ।

नितिन कक्कड़ का निर्देशन औसत है । वह फिल्म के प्रवाह को ऑर्गेनिक नहीं रखते है । कुछ घटनाक्रम अचानक होते हैं, जैसे- जैज़ की रिया (कुबरा सैट) के लिए फ़ीलिंग, जैज़ का टिया से अपने घर में रहने केलिए पूछना । ये दृश्य हजम नहीं होते । लेकिन सेकेंड हाफ़ में एक अनजान व्यक्ति जैज पर प्रॉपर्टी डील में उसे धोखा देने का आरोप लगाता है, अचानक सामने आता है । अभी तक दर्शक जैज को आलसी मानकर चल रहे थे लेकिन फ़िर सामने आता है कि वह काम भी करता है, ये हजम नहीं होता है । और यह रहस्योद्घाटन विचित्र लगता है । इसके विपरीत फ़िल्म के कुछ सीन में इमोशन और ह्यूमर है । इसके अलावा फ़िल्म की लंबाई 119 मिनट है ।

जवानी जानेमन की शुरूआत ठीक-ठाक होती है क्योंकि दर्शक जैज़ और उसकी प्लेबॉय जीवन शैली से परिचित होते हैं । फ़िल्म में दिलचस्पी तब बढ़ती है जब टिया की एंट्री होती है और वह सच का खुलासा करती है । यह देखना मजेदार होता है । फ़र्स्ट हाफ़ में एक और मजेदार सीन है जब जैज़ और टीया डॉक्टर कृपलानी (कीकू शारदा) से मिलते है । दर्शकों को लगता है कि यहां बहुत कुछ होगा लेकिन यहां से कहानी आगे नहीं बढ़ती । इंटरमिशन मोड़ भी थोड़ा अजीब है । इंटरवल के बाद कहानी थोड़ी आगे बढ़ती है लेकिन एक बार फ़िर ये बिखरने लगती है । इसी के साथ प्रॉपर्टी डील ट्रैक भी प्रभाव को कम कर देता है । फ़िल्म में दिलचस्पी लाता है अनन्या (तब्बू) का ट्रैक लेकिन फ़िर से फ़िल्म अपना प्रभाव खो देती है । फ़िल्म का फ़ाइनल सीन दिल दहला देने वाला है ।

सैफ़ अली खान फ़ुल फ़ॉर्म में नजर आते हैं और पूरी फ़िल्म में मनोरंजन करते है । इस तरह के रोल उन पर जंचते हैं और वह लगातार स्क्रिप्ट से ऊपर उठने की कोशिश करते है । अलाया फ़र्नीचरवाला शानदार डेब्यू करती है और काफ़ी आत्मविश्वासी दिखती है । वह काफ़ी गॉर्जियस दिखाई देती है और वह और एकमात्र ऐसी अदाकारा हैं जो दर्शकों के दिलों को एक हद तक छूती हैं । निश्चितरूप से उनका आगे अच्छा बॉलीवुड करियर है । तब्बू की एंट्री काफ़ी देर से होती है लेकिन वह फ़िल्म में हंसी लेकर आती है । लेकिन उनके किरदार में कोई इमोशनल टच नहीं है । चंकी पांडे (रॉकी) को शुरूआत में बहुत कुछ करने को नहीं होता है । लेकिन सेकेंड हाफ़ में उनके हिस्से में एक महत्वपूर्ण सीन है लेकिन ये काम नहीं करता है । कुबरा सेट प्यारी लगती है और उन्हें देख्ने के बाद उन्हें और ज्यादा देखने का मन करता है । कुमुद मिश्रा भरोसेमंद हैं । किकु शारदा मजाकिया लगते है । किरदार की आवश्यकता के अनुसार, डांटे अलेक्जेंडर (रोहन) ओवर द टॉप लगते है । रमीत संधू (तन्वी) एक छाप छोड़ते है । फ़रीदा जलाल (जैज़ की माँ), शिवेंद्र सिंह महल (जैज़ के पिता) और दिलजोन सिंह (ग्रोवर) ठीक हैं ।

सभी गाने भूलाने योग्य है । 'ओले ओले 2.0' थोड़ा बहुत याद रहता है क्योकि यह लोकप्रिय गाने का न्यू वर्जन है । जबकि, 'गल्लां करदी', 'बंधु तू मेरा' और 'मेरे बाबुला' काम नहीं करते है । 'जिने मेरा दिल लुट्या' अंत के क्रेडिट में प्ले होता है । केतन सोढ़ा का बैकग्राउंड स्कोर सैंस अच्छा है ।

मनोज कुमार खतोई की सिनेमैटोग्राफी मनभावन है । लंदन के स्थानों को अच्छी तरह से कैप्चर किया गया है । उर्वी अशर कक्कड़ और शिप्रा रावल का प्रोडक्शन डिजाइन बेहतर है । सनम रतनसी की वेशभूषा काफी ग्लैमरस है और फिल्म के सभी कलाकार बहुत अच्छे लगते हैं । सचिंदर वत्स का संपादन (चंदन अरोड़ा द्वारा अतिरिक्त संपादन) कई जगहों पर निखरकर आता है ।

कुल मिलाकर, जवानी जानेमन सैफ अली खान और अलाया फ़र्नीचरवाला की जबरदस्त परफ़ोरमेंस पर टिकी फ़िल्म है । लेकिन कमजोर निर्देशन और इमोशनली कमजोर होने के कारण फ़िल्म काम नहीं कर पाती । बॉक्स ऑफिस पर यह चर्चा की कमी के कारण दर्शकों को जुटाने में संघर्ष करेगी ।