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5-6 सालों से डेटिंग एप हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गई है । जहां इन डेटिंग एप्प को लेकर किसी का अनुभव बहुत कड़वा रहा वहीं किसी को इन्हीं डेटिंग एप से अपना जीवनसाथी मिल गया । और अब इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई कियारा आडवाणी की फ़िल्म इंदु की जवानी इन्हीं डेटिंग एप के मुद्दे को दर्शाती है । हालांकि फ़िल्म डेटिंग एप के अलावा और भी कई मुद्दे दर्शाती है वो भी कॉमिकल अंदाज में । तो क्या इंदु की जवानी दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब हो पाएगी, या यह अपने प्रयास में विफ़ल होती है ?आइए समीक्षा करते हैं ।

Indoo Ki Jawani Movie Review: कियारा आडवाणी की क्यूट परफ़ोर्मेंस फ़िल्म की जान

इंदु की जवानी एक लड़की की डेटिंग एप से जुड़ी कहानी को दर्शाती है । दिल्ली-गाजियाबाद सीमा पर पुलिस ने चेक पोस्ट पर एक ब्लैक स्कॉर्पियो कार को रोकने की कोशिश की लेकिन कार के अंडर लोग अपनी पहचान दिखाने से इंकार करते हैं और भाग जाते हैं । वे एक पुलिस वाले पर गोली भी चलाते हैं । अविनाश निगम (इकबाल खान) के नेतृत्व वाला पुलिस का जत्था उस कार को एक घर के बाहर देखता है । आतंकवादी कहीं नहीं दिख रहे हैं लेकिन पुलिस को अंदर विस्फोटक मिले हैं । जल्द ही पुलिस उस कार, एक पाकिस्तानी, और दूसरे व्यक्ति को ढूंढना शुरू कर देती है । इस बीच, गाजियाबाद में, इंदिरा गुप्ता उर्फ इंदु (कियारा आडवाणी) अपने प्रेमी सतीश (राघव राज कक्कड़) के साथ कठिन समय बिता रही है । सतीश इंदु के साथ सोना चाहता है लेकिन वह आशंकित है । बाद में इंदु रात में उसके घर आने के लिए राजी हो जाती है लेकिन फ़िर मन बदल लेती है । इसलिए, हताश सतीश इंदु की कॉलोनी की एक लड़की, अलका (लीशा बजाज) से उसके साथ रात बिताने के लिए कहता है, इस तथ्य के बावजूद कि अलका अगले हफ्ते किसी और से शादी कर रही है । इस बीच, इंदु की सबसे अच्छा दोस्त सोनल (मल्लिका दुआ) उसे बताती है कि उसे सतीश के साथ सोना चाहिए । जब इंदु सतीश के पास जाती है तो देखती है कि अलका सतीश के साथ बिस्तर पर होती है । इसके बाद इंदु सतीश से ब्रेकअप कर लेती है । अलका की शादी में, इंदु को न केवल किट्टू (शिवम कक्कड़) जैसे युवा लड़के, बल्कि प्रेम चाचा (राकेश बेदी), रंजीत चाचा (राजेंद्र सेठी) और प्राण चाचा (चितरंजन त्रिपाठी) जैसे बूढ़े लोग पसंद करते हैं । किट्टू इंदू के ड्रिंक में अल्कोहल मिला देता है और इससे वह पागलों की तरह नाचने लगती है । इस वजह से उसके पड़ोस में उसकी छवि खराब हो जाती है । अगले दिन, इंदु के माता-पिता (राजेश जैस, अलका कौशल) इंदू के भाई बंटी (हर्ष शर्मा) के दिल्ली एडमिशन के लिए दिल्ली रवाना हो जाते हैं । वे इंदु से कहते हैं कि अब ड्रामा मत करना । अकेली पड़ी इंदु सोनल के आईडिया मान लेती है और डेटिंग एप यूज करती है । इसी डेटिंग एप पर इंदु को समर (आदित्य सील) मिलता । एक संक्षिप्त बातचीत के बाद, इंदु उसे शाम को घर आमंत्रित करती है । उसी दिन, उसे प्रेम चाचा, रंजीत चाचा और प्राण चाचा से पता चलता है कि पाकिस्तान का एक आतंकवादी गाजियाबाद में घूम रहा है । शाम को, समर इंदु के घर पर पहुँचता है । समर पूरी तरह से सज्जन बन जाता है । इंदु उसके साथ अंतरंग होने का प्रयास करती है लेकिन घबरा जाती है । तभी समर का पासपोर्ट उसकी जैकेट से गिर जाता है । यहां उसे पता चलता है कि समर पाकिस्तानी है ! ये देखकर वह डर जाती है ।  इसके बाद आगे क्या होता है यह बाकी फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

अबीर सेनगुप्ता की कहानी मनोरंजक है। उन्होंने जिस तरह से उन्होंने डेटिंग एप्स, पूर्वाग्रह, छोटे शहरों की मानसिकता, आतंकवाद और भारत बनाम पाकिस्तान की बहस को एक ही फिल्म में एक साथ लाए हैं वह काफी सराहनीय है । अबीर सेनगुप्ता की पटकथा ज्यादातर हिस्सों के लिए प्रभावी है । हालांकि, फिल्म कहीं-कहीं खींची हुई सी लगती है । फ़र्स्ट हाफ़ में ये महसूस हो जाता है । ट्रेलर में ये पहले ही दिखा दिया जाता है कि इंदु का मैच पाकिस्तान से है । लेकिन फ़िल्म में यह ठीक इंटरवल से पहले आता है । काश की फ़िल्म का फ़र्स्ट हाफ़ थोड़ा और कसा हुआ होता । अबीर सेनगुप्ता के डायलॉग्स काफ़ी मजेदार और फ़िल्म में हास्य को जोड़ते हैं । भारत-पाक बहस के डायलॉग्स और छोटे हो सकते थे । इसके अलावा 'झंडा गाड़ दिया' डायलॉग हर दस मिनट में आता है जो बाद में परेशान करता है ।

अबीर सेनगुप्ता का निर्देशन साफ़-सुथरा है । कहीं-कहीं उनकी क्रिएटिविटी भी दिखाई देती है । इसके अलावा, निर्देशक इस बात पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि छोटे शहरों में पड़ोस के लोग कैसे सुसंस्कृत होते हैं और वे सुसंस्कृत होने की आड़ में काम करते हैं । हालांकि फ़िल्म में यह फ़न वे में दिखाया गया है लेकिन यह सच है और इस बात को स्क्रिप्ट में अच्छे से दर्शाया गया है । वहीं इसके विपरीत, फ़िनाले सीन रोमांचकारी है लेकिन यह और भी दिलचस्प हो सकता था । जगराता शॉट्स के साथ एक्शन सीन को इंटरैक्ट करने का विचार सही नहीं लगता । फेकबुक, डेंडर, कैफे कॉफी बे और डोमैटो जैसे सरोगेट ब्रांड नामों का उपयोग करना बहुत ही हंसाने वाला है ।

इंदु की जवानी की शुरूआत एक दिलचस्प नोट पर होती है, जो यह स्पष्ट करता है कि इंदु समाज में अपनी छवि और वैल्यूज के कारण चिंताग्रस्त है । एनिमेटेड ओपनिंग क्रेडिट बहुत अच्छे से किए गए हैं । फ़र्स्ट हाफ़ अपनी स्लो गति से आगे बढ़ता है । फ़िल्म में दिलचस्पी तब जागती है जब इंदु समर से मिलती है । लेकिन जब उसे पता चलता है कि वह दुश्मन देश से है, तो ये देखना मनोरंजक है । पहले तो दोनों को इस बात पर बहस करते देखना कि कौनसा देश बेहतर है अच्छा लगता है लेकिन फ़िर ज्यादा हो जाता है । लास्ट के 20 मिनट काफ़ी रोमांचकारी हैं । फ़िल्म का अंत अच्छा और फ़नी नोट पर होता है ।

अभिनय की बात करें तो, कियारा आडवाणी बहुत प्यारी लगती हैं । वह जितनी प्यारी दिखती हैं उतनी ही प्यारी परफ़ोरमेंस भी देती हैं । पूरी फिल्म में जिस तरह से वह गुस्से में रहती हैं यह देखना मनोरंजक लगता है । यह फ़िल्म उनके एक्टिंग स्किल को दिखाने का माध्यम बनेगी और उनके आगे के करियर में बहुत मददगार साबित होगी । फ़र्स्ट हाफ़ में आदित्य सील के पास करने के लिए ज्याद कुछ नहीं होता है लेकिन बाद में उनकी मौजूदगी महसूस होती है । वह काफ़ी डेशिंग लगते हैं और उनकी डायलॉग डिलीवरी तो कमाल की है । मल्लिका दुआ मजेदार लगती हैं और आदमियों, सेक्स और एडल्ट फ़िल्मों के बारें में बहुत सा ज्ञान देने वाली एक बेस्ट फ़्रेंड के रूप में अच्छी लगती हैं । इकवाल खान बहुत गहरी छाप छोड़ते हैं और अधिक फ़िल्मों में देखे जाने के हकदार हैं । राघव राज कक्कड़, जिन्हें स्कैम 1992 में 'करमचंद' की भूमिका के लिए प्यार किया गया था, ठीक है । शिवम कक्कड़ थोड़े ओवर लगते हैं ।

संगीत चार्टबस्टर किस्म का नहीं है, लेकिन इसका अच्छा उपयोग किया जाता है । 'हसीना पागल दीवानी' पैर थिरकाने वाला है । 'दिल तेरा' अनूठा है और खूबसूरती से बॉलीवुड को सम्मान देता है । 'सिंगल लेडीज़' को बैकग्राउंड में प्ले किया जाता है, जबकि 'हीलें टूट गई' अंतिम क्रेडिट्स के दौरान प्ले किया जाता है । नील अधिकर का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म के मूड के अनुरूप है ।

वसंत की सिनेमाटोग्राफी में कोई कमी नहीं है । प्रिया सुहास का प्रोडक्शन डिजाइन फिल्म को एक यथार्थवादी टच देता है । अमीन खतीब के एक्शन कम है और भी बहुत हिंसक नहीं है । शीतल शर्मा की वेशभूषा बहुत आकर्षक है, विशेष रूप से कियारा द्वारा पहनी गई । अजय शर्मा की एडिटिंग और क्रिस्पी हो सकती थी लेकिन फिर भी, वह एक अच्छा काम करते हैं ।

कुल मिलाकर, इंदु की जवानी एक मजेदार मनोरंजक फ़िल्म है जो अपनी दिलचस्प कहानी, वास्तविक सेटिंग, ह्यूमर और कियारा आडवाणी की प्यारी सी परफ़ोरमेंस की वजह से देखने लायक है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म सकारात्मक प्रतिक्रिया के चलते आगे आने वाले हफ़्तों में ज्यादा से ज्यादा दर्शक जुटा सकती है ।