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रैपिंग दुनिया भर में संगीत का एक प्रसिद्ध रूप है । यह गलियों से ऊपर उठकर आया और अब समाज के हर वर्ग में पंसदीदा संगीत फ़ोर्म बन गया है । भारत में भी एक रैपिंग के क्षेत्र में दो रैपर्स काफी प्रसिद्ध हुए, वे हैं डिवाइन और नेज़ी । इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई जोया अख्तर द्दारा निर्देशित फ़िल्म गली बॉय, कमोबेश डिवाइन और नेजी की जिंदगी पर ही बेस्ड है जो इस फ़िल्म के लिए अपने आप प्रमोशन बन गई । इसके अलावा रणवीर सिंह और आलिया भट्ट की मौजूदगी ने फ़िल्म को एक अलग सुर्खियां दिलाई । तो क्या गली बॉय उम्मीदों पर खरी उतर पाती है और एक संपूर्ण मनोरंजक फ़िल्म बनकर उभरती है या यह अपने प्रयास में विफ़ल होती है, आइए समीक्षा करते है ।

फ़िल्म समीक्षा : गली बॉय

गली बॉय एक डरपोक झुग्गीबस्ती में रहने वाले उस शख्स की कहानी है जिसकी जिंदगी उसके टेलेंट की बदौलत बदल जाती है । मुराद (रणवीर सिंह) एक कॉलेज छात्र है जो मुंबई की झुग्गी बस्ती, धारावी में रहता है । वह एक मेडिकल स्टूडेंट, सफ़ीना (आलिया भट्ट) के साथ रिलेशनशिप में है, जो एक रूढ़िवादी उच्च जाति के मुस्लिम परिवार से है । मुराद के घर में टेंशन चलती है क्योंकि उसके पिता शाकिर (विजय राज) दूसरी पत्नी लेकर आते है, जो उसकी माँ रजिया (अमृता सुभाष) के साथ रहने वाली होती है । इस बीच, एक दिन एक आगामी रैपर एमसी शेर (सिद्धांत चतुर्वेदी) मुराद के कॉलेज में प्रदर्शन करता है और वह झूम उठता है । आखिरकार, मुराद की दिली इच्छा हमेशा से ही रैपिंग में रही । एमसी शेर एक दिन महत्वाकांक्षी कलाकारों से मिलने के लिए कहता है और मुराद इस अवसर को नहीं गंवाता है । एमसी शेर मुराद को पसंद करता है और उसे सार्वजनिक रूप से रैप करने के लिए प्रेरित करता है । हालांकि, मुराद फ़ुल टाइम अपने इस जुनुन को देने में सक्षम नहीं हैं । वह अपने पिता के काम में हाथ बटाने में मजबूर हो जाता है क्योंकि उसके पि्ता के पैर में फ़्रैक्चर हो जाता है । अपनी सामाजिक स्थिती के कारण उसे कॉमप्लेक्स हो जाता है । इसके बाद आगे क्या होता है, यह बाकी की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

रीमा कागती और जोया अख्तर की कहानी बांधे रखने वाली है । मुराद का किरदार और उसके आस-पास की दुनिया बहुत अच्छी तरह से लिखी गई है । जिंदगी न मिलेगी दोबारा [2011] और दिल धड़कने दो [2015] में अमीरों की दुनिया दिखाने वाली जोया की आलोचना करने वाले, गली बॉय को देखकर हैरान रह जाएंगे । इसके अलावा लेखकों ने भी इस बात का ध्यान रखा है कि उनकी ये फिल्म सिर्फ एक रैपर की कहानी न लगे । यह फ़िल्म जुनून, महत्वाकांक्षा को दर्शाती है और साथ ही गरीबी, सामाजिक स्तर, बाल अपराध, बहु विवाह इत्यादि पर एक एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करता है । रीमा कागती और जोया अख्तर की पटकथा अत्यधिक प्रभावी है । फिल्म के लिए बहुत रिसर्च की गई है जो दिखाई देती है । कई सीक्वेंस बहुत ही दमदार है । विजय मौर्य के डायलॉग फ़िल्म के प्रभाव को बढ़ाते है क्योंकि वह बहुत ही ज्वलनशील है । मुराद की कविताएँ जावेद अख्तर द्वारा लिखी गई हैं और उनका अपना आकर्षण है ।

जोया अख्तर का निर्देशन एक बार फ़िर अनुकरणीय है और वह साबित करती हैं कि वह विविध दुनिया में अपनी फिल्म स्थापित करने और उस पर विजय हासिल करने में सफ़ल हो जाती है । हालांकि फ़िल्म में कुछ खामियां भी है और जिन्हें देखकर ऐसा लगता है कि इसका ध्यान रखा जाता तो अच्छा होता । यहां तक सेकेंड हाफ़ काफ़ी लंबा है । असल में ऐसा लगता है कि तीन घंटे फ़िल्म देख रहे हो । कुछ किरदार जैसे सफीना और स्काई काफ़ी दिलचस्प है लेकिन उनके पास करने केलिए कुछ ज्यादा होता नहीं है और आसानी से फ़िल्म के मध्य में तो वह खो से जाते है । साथ ही फिल्म का टोन और विषय ऐसा है जो भारत भर के हर दर्शक को आकर्षित नहीं करेगा । फ़िल्म में रैप बैटल भी दिखाई गई है जहां ऐसा लगता है कि वे पर्सनल लड़ाई कर रहे हो । संभावना है कि ऐसे सीन को कुछ दर्शक पसंद नहीं करे ।

गली बॉय एक सामान्य मनोरंजक नहीं है और यह फ़िल्म के पहले ही सीन से पता चल जाता है । हालांकि फ़िल्म की स्पीड काफ़ी अच्छी है और आपको किरदारों की दुनिया में आसानी से ले जाती है । सफ़ीना की एंट्री फ़िल्म में फ़न को जोड़ती है और वह सीन, जहां वह अलबीना, जो मुराद में अपनी दिलचस्पी दिखाती है, को लताड़ती है वो सीन हंसा-हंसा कर लोट पोट कर देगा । मुराद के संघर्ष और एमसी शेर के साथ उनके बॉंड को भी अच्छी तरह से चित्रित किया गया है । कुछ सीन तो असाधारण रूप से फ़िल्माए गए है जैसे मुराद की पहली परफ़ोर्मेंस । फ़र्स्ट हाफ़ में वो सीन जब मुराद को कार में "दूरी' गाने का विचार आता है । इंटरवल के बाद, दिलचस्पी थोड़ी कम हो जाती है । फ़िल्म खींचने लगती है और बहुत सारे प्लॉट्स एक साथ चलने लगते है । शुक्र है फ़िल्म के क्लाइमेक्स खूबसूरती से फ़िल्म को आगे ले जाता है । फ़िल्म की सम्पाति दिल जीत ले जाती है ।

रणवीर सिंह पूरी तरह से अपने किरदार में समाए हुए नजर आते है । वह वास्तविक जीवन में मुराद से दस साल बड़े हैं और फिर भी वह एक कॉलेज स्टूडेंट की भूमिका निभाने में सफ़ल होते है । यहां तक की रैपर के रूप में वह छा जाते है और एक बार भी ऐसा नहीं लगता है कि वह महज इसकी भूमिका निभा रहे है । वह सीन देखने लायक है जहां वह फ़र्स्ट हाफ़ में वह एमसी शेर के साथ फ़िडिल प्ले करते है । एल लीड एक्टर के लिए ऐसा करना काफी सराहनीय है । आलिया भट्ट बहुत ही ज्यादा फ़ोर्म में नजर आती है । उनका रोल पसंद किया जाएगा और उनके रोल को देखकर लगता है कि काश उन्हें और ज्यादा स्क्रीन टाइम मिलता । सिद्धान्त चतुर्वेदी दमदार शुरुआत करते हैं । वह महत्वपूर्ण किरदार निभाते हैं और निश्चिततौर पर वह चर्चा का विषय बनेंगे । कल्कि कोचलिन एक छोटी सी भूमिका में एक जबरदस्त छाप छोड़ती हैं । विजय वर्मा (मोइन) संतोषजनक है । विजय राज काफी अच्छे हैं और प्रभाव छोड़ते है, विशेष रूप से क्लाइमेक्स से पहले । अमृता सुभाष अच्छी है । श्रृष्टि श्रीवास्तव (अल्बिना) मजेदार है । ज्योति सुभाष (मुराद की दादी) सेकेंड हाफ़ में एक महत्वपूर्ण दृश्य में अपनी उपस्थिति महसूस कराती है । अन्य ठीक हैं ।

फिल्म में बहुत अधिक गाने हैं और फिल्म की थीम को ध्यान रखते हुए उनमें से कोई भी पारंपरिक चार्टबस्टर नहीं है । लेकिन कुछ गाने वाकई बहुत अच्छे हैं । 'अपना टाइम आएगा' सबसे शानदार है और फ़िल्म को एक अलग स्तर पर ले जाता है । 'मेरी गली में" पेपी नंबर है जबकि 'आज़ादी' दिलचस्प है । 'दूरी' दिल छूनेवाला है । 'शेर आया शेर' अच्छा है । बैकग्राउंड स्कोर फिल्म के अनुरूप है ।

जय ओझा की सिनेमैटोग्राफी शानदार है और फिल्म को बेहतरीन लुक देती है । फिनाले में भी, लेंसमैन का बढ़िया काम फ़िल्म के प्रभाव को बढ़ाता है । अर्जुन भसीन और पूरनमृता सिंह की पोशाक स्टाइलिश और यथार्थवादी हैं । मनोहर वर्मा और सुनील रोड्रिग्स के एक्शन भी काफी वास्तविक है । इसके बाद, आलिया भट्ट के एक्शन सीन को कोरियोग्राफ किया है और यह फिल्म के हाईप्वाइंट्स में से एक है । Suzanne Caplan Merwanji का उत्पादन डिजाइन प्रामाणिक है । नितिन बैद का संपादन स्टाइलिश है, लेकिन सेकेंड हाफ में और क्रिस्प हो सकती थी ।

कुल मिलाकर गली बॉय, एक मजेदार और दिल को छूने लेने वाली मनोरंजक फ़िल्म है । यह निश्चिततौर पर युवाओं और शहरी सिनेप्रेमियों को आकर्षित करेगी । बॉक्सऑफ़िस पर, इस फ़िल्म को मिला चार दिवसीय सप्ताहांत निश्चिततौर पर इसके मेकर्स के लिए फ़ायदे का सौदा बनकर सामने आएगा ।