संजय लीला भंसाली की पहली वेब सीरीज हीरामंडी: द डायमंड बाजार को मिली-जूली प्रतिक्रिया मिल रही है । जहां दर्शकों का एक वर्ग हीरामंडी को मास्टरपीस बता रहा है वहीं एक वर्ग ऐसा भी है जो हीरामंडी में दिखाए गए तवायफ़ों की लाइफ़ से खुश नहीं है । हालाँकि भंसाली हीरामंडी को मिल रहे रिव्यूज से काफ़ी खुश हैं । लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि, आख़िर संजय लीला भंसाली की ज़्यादातर फ़िल्में तवायफ़ों की ज़िंदगी पर ही बेस्ड क्यों होती है ? संजय लीला भंसाली से लोगों का सवाल है कि क्या भंसाली अपनी फ़िल्मों में तवायफ़ों को ग्लोरिफ़ाई करते हैं ? इन सभी सवालों के जवाब फ़ाइनली दिग्गज फ़िल्ममेकर संजय लीला भंसाली ने बॉलीवुड हंगामा के साथ हुए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में दिए ।

EXCLUSIVE: संजय लीला भंसाली अपनी फ़िल्मों में तवायफ़ों को ग्लोरिफ़ाई करते हैं ? फ़ाइनली डायरेक्टर ने तोड़ी चुप्पी- “ये महिलाएं तहजीब-तमीज में बहुत सोफिस्टिकेटेड होती थी ; इनमें से कुछ तो स्वतंत्रता के लिए भी लड़ी हैं”

संजय लीला भंसाली अपनी फ़िल्मों में तवायफ़ों को ग्लोरिफ़ाई क्यों करते हैं ?

संजय लीला भंसाली ने अपनी फिल्मों के जरिये तवायफों की जिंदगी के कई रंग दिखाए हैं । देवदास में चंद्रमुखी के रोल में माधुरी दीक्षित, बाजीराव मस्तानी में मस्तानी उर्फ़ दीपिका पादुकोण, गंगूबाई काठियावाड़ी में आलिया भट्ट और अब हीरामंडी, में भंसाली ने तवायफों के संघर्ष को दर्शाया है । ऐसे में हीरामंडी की रिलीज़ के बाद जब भंसाली से बॉलीवुड हंगामा के साथ हुए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में पूछा गया कि, क्या वह अपनी फ़िल्मों में तवायफों को ग्लोरिफाई करते है ? तवायफों की जिंदगी में उन्हे क्या आकर्षित करता है ? तो इसके जवाब में भंसाली ने कहा, “ये महिलाएं बहुत सोफिस्टिकेटेड थीं । तहजीब-तमीज में काफी ट्रेंड थीं और वो जीवन को एक कविता की तरह जीने की कला जानती थीं । उन्हें ट्रेडिशन पता था । क्लासिकल डांसिंग और क्लासिकल म्यूजिक की कला से वाकिफ थीं । लेकिन इसके साथ ही उनके पास दर्द और पीड़ा की कहानियां भी थीं, जिससे वो गुजरी थीं । उन्हें खूबसूरत ड्रेसेस और डायमंड्स में पेश करना काफी मजेदार था । उनके अंदर अपनी एक अलग पॉलिटिक्स चलती थी । उन्हें जिंदगी जीने के लिए उतना ही संघर्ष करना पड़ता था, जितना एक मिडिल क्लास या लोअर क्लास महिला या आदमी को करना पड़ता है । उनके अपने संघर्ष होते थे ।

भंसाली ने आगे कहा, “इसलिए सीरीज में मैंने सिर्फ ग्लैमरस पार्ट ही नहीं दिखाया है, बल्कि संघर्ष भरी कहानियां भी दिखाई हैं । इसके अलावा कुछ ऐसी भी तवायफ़ हैं जिनकी बेटी तवायफ़ नहीं बनना चाहती और उसने इसका विरोध भी किया है । उनमें से कुछ ऐसी हैं जो हमने सुनी हैं और कुछ रियल कैरेक्ट्र्स से ली गई है ।

भंसाली ने अपनी फ़िल्मों को रिएलटी से दूर बताते हुए कहा, “लाहौर और हीरामंडी पर मेरे काम को इस तरह नहीं देखा जाना चाहिए जैसे कि वह रियलिटी से लिया गया हो । इसमें लाहौर की छाप है, हीरामंडी की छाप है । मैं समझ नही पा रहा हूं कि यह रियलिस्टिक कैसे हो सकता है, क्योंकि मैं उस युग में नहीं जिया हूं । मैंने वो दुनिया नहीं देखी है । मैं इसे 30 या 20 के दशक की हीरामंडी की तरह आज की हीरामंडी की तरह क्लियरली नहीं दिखा सकता । इसलिए जब आप कोई फिक्शन स्टोरी बनाते हैं, तो यह सिर्फ आपको एक ऐसा एक्सपीरियंस देने के लिए बनाया जाता है, जिससे पता चल सके कि शायद वो महिलाएं इन चीजों  से गुजरी होंगी । यही फिल्ममेकिंग का मजा है । मैं उस पल को जैसा समझता हूं वैसा माहौल और आपके दिमाग उस तरह की छाप छोड़ना पसंद करता हूं । इन सबके अलावा ये महिलाएँ भी स्वतंत्रता के लिए लड़ी हैं ।

संजय लीला भंसाली द्वारा डायरेक्ट की गईहीरामंडीद डायमंड बाज़ार एक 8-पार्ट वाली सीरीज हैजो 1 मई को नेटफ्लिक्स पर 190 देशों में रिलीज़ की जा चुकी है । इसमें मनीषा कोइराला, सोनाक्षी सिन्हा, अदिति राव हैदरी, शरमिन सहगल, ऋचा चड्ढा, ताहा शाह बदुशा, शेखर सुमन, अध्ययन सुमन और फ़रदीन ख़ान अहम रोल में नज़र आए हैं ।