द ग्रेट इंडियन फ़ैमिली एक भजन सिंगर की कहानी है। वेद व्यास त्रिपाठी (विक्की कौशल) अपने धार्मिक परिवार पंडित सिया राम त्रिपाठी (कुमुद मिश्रा), बुआ सुशीला कुमारी (अलका अमीन), चाचा बालक राम (मनोज पाहवा), चाची हेमा (सादिया सिद्दीकी) और जुड़वां बहन गुंजा (सृष्टि दीक्षित) के साथ बलरामपुर में रहते हैं । वेद को भजन कुमार के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि वह शहर में एक प्रतिष्ठित भक्ति गायक है । वेद के सबसे अच्छे दोस्त भाटा (भुवन अरोड़ा) और सर्वेश्वर (आशुतोष उज्ज्वल) हैं। सर्वेश्वर को जसमीत (मानुषी छिल्लर) से प्यार हो जाता है और जसमीत उसे प्रभावित करने के लिए भाटा और वेद से मदद मांगती है। ऐसा करते समय वेद को जसमीत से प्यार हो जाता है। इससे वेद और सर्वेश्वर के बीच दरार पैदा हो जाती है। यदि यह पर्याप्त नहीं है, तो वेद को एक और झटका मिलता है। एक अजनबी उनके घर आता है और एक पत्र छोड़ कर उन्हें सूचित करता है कि वेद एक मुस्लिम पैदा हुआ था। आगे क्या होता है इसके लिए पूरी फ़िल्म देखनी होगी ।
विजय कृष्ण आचार्य की कहानी बहुत आशाजनक है और इसमें एक कमर्शियल मनोरंजन की सभी खूबियाँ हैं। लेकिन विजय कृष्ण आचार्य की पटकथा उस लेवल की नहीं है । लेखक-निर्देशक नाटकीय क्षणों को जोड़ने की पूरी कोशिश करते हैं लेकिन ये दृश्य प्रभाव पैदा करने में विफल रहते हैं। विजय कृष्ण आचार्य के डायलॉग जगह-जगह शार्प हैं ।
कमज़ोर स्क्रिप्ट के कारण विजय कृष्ण आचार्य का निर्देशन प्रभावित होता है। हालाँकि कुछ जगह उनका निर्देशन अच्छा भी है, जैसे- उन्होंने वेद के बचपन का ट्रैक, वेद की अब्दुल और उसके परिवार से पहली बार मुलाकात, क्लाईमेक्स मोनोलॉग आदि जैसे कुछ क्षणों को बहुत ही शानदार ढंग से हैंडल किया है। एक महत्वपूर्ण निर्णय से पहले परिवार द्वारा मतदान करने का विचार और साथ ही साँप-सीढ़ी का पहलू रचनात्मक है । सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश भी बखूबी मिलता है ।
हालाँकि, इस तरह की फिल्म में आदर्श रूप से अधिक हास्य और अधिक कठोर दृश्य होने चाहिए थे । द ग्रेट इंडियन फ़ैमिली में ऐसा कुछ भी नहीं है । वेद की मुस्लिम पहचान उजागर होने के बाद जो चल रहा है, वह वांछित प्रभाव पैदा नहीं करता है । रोमांटिक ट्रैक भी कमजोर है ।
एक्टिंग की बात करें तो, विक्की कौशल हमेशा की तरह बहुत ही ईमानदार अभिनय करते हैं। सेकेंड हाफ़ में वह दृश्य जहां वह रोते हुए बोलते हैं, बहुत अच्छा है और ये उनकी अभिनय प्रतिभा को दर्शाता है । मानुषी छिल्लर की स्क्रीन उपस्थिति आकर्षक है। लेकिन वह वैस्ट हो जाती हैं । दरअसल, शुरुआती 45 मिनट के बाद वह मुश्किल से ही फिल्म में नजर आती हैं । कुमुद मिश्रा छाप छोड़ते हैं । एक प्रभावशाली शहरवासी के रूप में भी वह प्रभावशाली हैं। मनोज पाहवा भी अच्छा प्रदर्शन करते हैं । अलका अमीन, सादिया सिद्दीकी और सृष्टि दीक्षित ने सक्षम सहयोग दिया । भुवन अरोरा और आशुतोष उज्जवल ठीक हैं। यशपाल शर्मा (पंडित जगन्नाथ मिश्रा) और आसिफ खान (तुलसीदास मिश्रा) प्रतिपक्षी के रूप में अच्छे हैं । हितेश अरोरा (अब्दुल) और देवांग तन्ना (पिंटू) पसंद किये जाने योग्य हैं। सलोनी खन्ना (ऐश्वर्या) और पारितोष सैंड (जय प्रकाश मालपानी) के पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं है ।
प्रीतम के संगीत की शेल्फ लाइफ लंबी नहीं होगी । तीनों गाने - 'कन्हैया ट्विटर पे आजा', 'साहिबा' और 'की फर्क पैंदा है' - खूबसूरती से शूट और कोरियोग्राफ किए गए हैं, लेकिन उतने आकर्षक नहीं हैं । किंगशुक चक्रवर्ती का बैकग्राउंड स्कोर ठीक है ।
अयानंका बोस की सिनेमैटोग्राफी साफ-सुथरी है। सुमित बसु, स्निग्धा बसु और रजनीश हेडाओ का प्रोडक्शन डिजाइन बहुत प्रामाणिक है और एक आम आदमी यह महसूस नहीं कर पाएगा कि पूरी फिल्म एक सेट पर शूट की गई है, न कि रियल लोकेशन पर। शीतल शर्मा की वेशभूषा वास्तविक फील देती है । वाईएफएक्स का वीएफएक्स शीर्ष श्रेणी का है। चारु श्री रॉय की एडिटिंग बढ़िया है।
कुल मिलाकर, द ग्रेट इंडियन फ़ैमिली एक अच्छी कहानी पर टिकी हुई है, लेकिन प्रभावित करने में विफल रहती है क्योंकि स्क्रिप्ट और घटनाक्रम में दम नहीं है । जागरूकता की कमी के कारण बॉक्स ऑफिस पर फिल्म को संघर्ष करना पड़ेगा।