परिणीति चोपड़ा ने चुलबुली और हल्की-फुल्की भूमिकाओं के साथ अपनी शानदार शुरुआत की और यह उनका ट्रेडमार्क बन गया । और अब एक अंतराल के बाद, वह उन्होंने अपना एक अलग तरह का कमबैक किया है जो उनकी पहले की छवि के ठीक विपरीत है । इस हफ़्ते रिलीज हुई फ़िल्म द गर्ल ऑन द ट्रेन में परिणीति चोपड़ा का अनदेखा अवतार देखने को मिला । परिणीति चोपड़ा की यह फ़िल्म आज नेटफ़्लिक्स पर रिलीज हुई है । तो क्या यह दर्शकों को रोमांचित करने में कामयाब हो पाएगी, या यह अपने प्रयास में विफ़ल होती है । आईए समीक्षा करते हैं ।
द गर्ल ऑन द ट्रेन, एक परेशान शराबी लड़की की कहानी है जो एक लड़की की हत्या के केस में फ़ंस जाती है जिसे वह जानती तक नहीं है । मीरा कपूर (परिणीति चोपड़ा), जो लंदन में है, खुशी से शेखर (अविनाश तिवारी) से शादी करती है । मीरा एक अफ्रीकी व्यक्ति का केस हाथ में लेती है जो एक गोलीबारी में मारा जाता है । जिसके बाद मीरा को आरोपी जिमी बैगा के परिवार से धमकियां मिलती हैं । फिर भी, वह अदालत में साबित करती है कि जिमी हत्यारा है । जिमी बागा को जेल भेज दिया जाता है। उसी दिन, मीरा को पता चला कि वह गर्भवती है । 6 महीने बाद, मीरा अच्छा फ़ील करती है क्योंकि वह मां बनना चाहती है । दुर्भाग्य से, मीरा और शेखर एक कार दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं जिससे मीरा का गर्भपात हो जाता है । उसकी डॉक्टर उसे बताती है कि वह दोबारा गर्भधारण करने के लायक नहीं है । मीरा ये सुनकर टूट जाती है और शराब पीना शुरू कर देती है । वह इतनी शराबी हो जाती है कि वह हिंसक हो जाती है । जिसकी वजह से उसे पिछले दिन क्या हुआ कुछ भी याद नहीं रहता है । शेखर भी मीरा को तलाक दे देता है वहीं मीरा भी अपना जॉब खो देती है । जीवन में कुछ नहीं करने के लिए नहीं होता है तो वह लंदन से ट्रेन यात्रा करना शुरू कर देती है । उसकी ट्रेन वहां से गुजरती हैं जहां वह और शेखर रहते थे । हालांकि, शेखर के घर के बगल में, मीरा नुसरत जॉन (अदिति राव हैदरी) को देखती है । जब भी उसकी ट्रेन उसके घर के पास से गुजरती है तो मीरा उसे देखना शुरू कर देती है । मीरा देखती है कि नुसरत आनंद जोशी (शमुन अहमद) के साथ एक प्यारी शादीशुदा ज़िंदगी बिता रही है । वह नुसरत को दुनिया में बिना किसी परवाह के नाचते हुए भी देखती है । मीरा की इच्छा है कि अगर उनके पास नुसरत जैसा जीवन हो । हालांकि, एक दिन, मीरा देखती है कि नुसरत किसी ऐसे व्यक्ति को गले लगा रही है जो उसका पति नहीं है । नुसरत की अच्छी छवि उसके सामने बिखर जाती है । मीरा को लगता है कि उसे अपने पति को धोखा नहीं देना चाहिए क्योंकि वह इस दर्द को जानती है । इसका कारण यह है कि शेखर ने अंजलि (नताशा बेंटन) के साथ भी एक रिश्ता शुरू किया, जिसके साथ उसने अब खुशी-खुशी शादी कर ली । इसलिए मीरा नुसरत को सबक सिखाने का फैसला करती है । वह बाद के घर में जाती है लेकिन घर पर ताला लगा हुआ है । इसके बा मीरा को नुसरत जंग़ल में मिलती है । इसके बाद मीरा अपनी सुधबुध खो देती है और अगली सुबह उसे कुछ भी याद नहीं है । फ़िर उसे पता चलता है नुसरत लापता है । अधिकारी कौर (कीर्ति कुल्हारी) इस केस की जांच के लिए नियुक्त होती है । अपनी जांच के दौरान, उसे पता चला कि मीरा नुसरत से मिलने के लिए गुस्से में आई थी और इसलिए, मीरा मुख्य संदिग्ध बन गई । कुछ दिनों बाद नुसरत का शव उसी जंगल में मिला । आगे क्या होता है ये बाकी की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।
द गर्ल ऑन द ट्रेन 2016 में आई इसी नाम की हॉलीवुड फ़िल्म पर अधारित है । लेकिन इसके हिंदी रीमेक को सीन-द-सीन सेम नहीं रखा गया है बल्कि हिंदी दर्शकों ने अनुसार इसमें बदलाव किए गए हैं । मेकर्स ने अपने तरीके से भी फ़िल्म में कई नए पहलू जोड़े हैं । रिभु दासगुप्ता की पटकथा (विदिश मलंदकर की अतिरिक्त पटकथा) औसत है । हालांकि यह बांधे रखने वाली और तेज गति की कहानी है । सहायक पात्रों का कोई चरित्र विकास नहीं हुआ है । गौरव शुक्ला और अभिजीत खुमान के डायलॉग सभ्य हैं ।
रिभु दासगुप्ता का निर्देशन कुछ खास नहीं है । फ़िल्म के अच्छे बिंदुओं की बात करें तो, वह दर्शकों को बांधे रखने में कामयाब होते हैं । फ़िल्म में देखने लायक बहुत कुछ है जिससे दर्शक एक सेकेंड भी अपना ध्यान नहीं भटकाते । ऑरिजनल फ़िल्म में काफ़ी भारी-भरकम लाइन्स थी लेकिन रिभु ने इसे सरल करके दिखाया । कुछ सीन्स वाकई लाजवाब हैं और वह कलाकारों से बेहतरीन अभिनय निकलवाने में कामयाब होते हैं । अब फ़िल्म की कमियों के बारें में बात करते हैं- फ़िल्म का पूरा फ़ोकस परिणीति के किरदार पर रहता है जबकि ऑरिजनल फ़िल्म में सपोर्टिंग किरदारों और उनकी बैकग्राउंड स्टोरीज पर भी फ़ोकस किया गया था जिससे फ़िल्म समझने लायक बनी थी । यहां तक की जिन लोगों ने ऑरिजनल फ़िल्म नहीं भी देखी है वो भी इन कमियों पर गौर करेंगे । इसके अलावा ऑरिजनल फ़िल्म के अंत को भी इसमें बदल दिया गया है । रिभु ने इसमें दो ट्विस्ट जोड़े हैं । लेकिन ये अच्छे से काम नहीं करता है ।
द गर्ल ऑन द ट्रेन एक पेचीदा नोट पर शुरू होती है । पहले 20 मिनट, निर्माताओं ने मीरा के रोलरकोस्टर जीवन को रूपरेखा के रूप में दर्शाया है । इसी के साथ-साथ नुसरत के लापता होने का ट्रैक भी दिलचस्प है । जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, अधिक से अधिक किरदार फ़िल्म की कहानी से जुड़ते जाते हैं । लेकिन फ़िर लगता है कि उनके पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं होता है । यह एक हद तक प्रभाव को कम करता है । फिर भी, पिछले 45 मिनट के विभिन्न घटनाक्रम बांधे रखते हैं । फ़िल्म का अंत सबसे अच्छा होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं होता है । यह तर्क से रहित है ।
परिणीति चोपड़ा शानदार प्रदर्शन करती हैं और निश्चितरूप से इसका फ़ायदा उन्हें होगा । वह अपने अभिनय से दर्शकों को हैरान करती हैं क्योंकि इस तरह का अभिनय और किरदार उन्होंने इससे पहले कभी नहीं किया । एक पुरानी शराबी के किरदार में वह जंचती हैं । कीर्ति कुल्हारी अपनी डायलॉग डिलीवरी और मौजूदगी से छा जाती हैं । अदिति राव हैदरी प्यारी लगती हैं और लगता है कि उनका रोल थोड़ा और बड़ा होना चाहिए था । क्योंकि फ़िल्म की कहानी में उनका किरदार अहम मोड़ लाता है । अविनाश तिवारी हमेशा की तरह भरोसेमंद लगते हैं । नताशा बेंटन और शमुन अहमद के पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है । तोता रॉय चौधरी (डॉ हामिद) के साथ भी कुछ ऐसा ही है । विशाख वडगामा (कुणाल; जूनियर पुलिस अधिकारी), दिलजोन सिंह (राजीव), मोनिशा हसीन (ज़हरा; शेखर का बॉस) और सुरेश सिप्पी (मीरा के डॉक्टर) ठीक हैं ।
संगीत आश्चर्यजनक रूप से अच्छा है, लेकिन इसे याद नहीं रखा जा सकता । 'छल्ला गया छल्ला' काफी आकर्षक है । 'मतलबी यारियां' कथा के साथ अच्छी तरह से बुना गया है । 'तू मेरी रानी' भूलाने योग्य है। गिल्ड बेनामराम का बैकग्राउंड स्कोर रोमांच में इजाफा करता है ।
त्रिभुवन बाबू सादिनेनी की सिनेमैटोग्राफी सरल लेकिन प्रभावी है । सुनील निगवेकर का प्रोडक्शन डिजाइन समृद्ध है । सुबोध श्रीवास्तव और सनम रतनसी की वेशभूषा बहुत आकर्षक और यथार्थवादी है जो किरदारों के संबंधित व्यक्तित्व के साथ मेल खाती है । प्रताप बोरहडे का मेकअप सराहनीय है, विशेष रूप से परिणीति के माथे पर घाव । संगीथ प्रकाश वर्गीस का संपादन धीमा है ।
कुल मिलाकर, द गर्ल ऑन द ट्रेन एक औसत फ़िल्म है । यह विशेष रूप से परिणीति चोपड़ा के शानदार प्रदर्शन और तेज गति की कहानी के कारण प्रभावित करती है । लेकिन किरदारों का विकास और कमियों से भरा क्लाइमेक्स फ़िल्म के लिए नुकसानदायक साबित होता है ।