साइना एक महान बैडमिंटन खिलाड़ी के बनने की एक प्रेरणादायक कहानी है । साइना नेहवाल (परिणीति चोपड़ा) एक युवा लड़की है जो अभी हिसार, हरियाणा से हैदराबाद शिफ्ट हुई है । उनकी मां उषा रानी (मेघना मलिक) हरियाणा में जिला स्तर की बैडमिंटन खिलाड़ी रही हैं और वह साइना में भी वही जज्बा देखती हैं । वह अपनी छोटी बेटी साइना का बैडमिंटन प्रशिक्षण के लिए नामांकन करने का फैसला करती है । उषा यह स्पष्ट कर देती है कि वह चाहती है कि साइना स्पोर्ट में आगे जाए । स्टेडियम में, एक कोच का कहना है कि बैच भरा हुआ है और इसलिए, उसे नामांकित नहीं किया जा सकता है । लेकिन साइना ने अपने कौशल का प्रदर्शन किया और सभी को चौंका दिया । इसलिए, उसे एक मौका दिया जाता है । अपने कोच से मार्गदर्शन और अपनी मां से प्रेरणा के तहत, साइना के खेल में सुधार होता है । उषा कोच को कहती हैं कि वह साइना को  जिला स्तर और इस तरह के अन्य टूर्नामेंटों के लिए कंसीडर करें और ये न देखें कि वह नई है । साइना, इन टूर्नामेंट्स में विजयी बनकर उभरती है । अंत में, एक दिन, उसे भारतीय राष्ट्रीय टीम के लिए खेलने का मौका मिलता  है। एक दिन पहले तक सब ठीक चल रहा है, विदेश में अपने पहले मैच से ठीक पहले, उषा रानी के साथ एक सड़क दुर्घटना हो जाती है । उसे गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया जाता है । साइना के पास अपने अभ्यास को जारी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है । प्राग में, वह गेम जीतने में सफल रही और जल्द ही उसे पता चला कि उषा रानी खतरे से बाहर है । बाद में, उसके मेंटर उसे एक बेहतर कोच के साथ ट्रेनिंग लेने के लिए कहते हैं क्योंकि अब एक बड़ी लीग में साइना को उतरन है । इसलिए साइना एक अनुशासनात्मक, सर्वधर्म राजन (मानव कौल) द्वारा संचालित राजन अकादमी से जुड़ती है । राजन एक समय में एक प्रसिद्ध टेनिस खिलाड़ी थे । उनके पास बहुत सारे एंडोर्समेंट ऑफ़र्स थे जिसे उन्होंने ठुकरा दिया क्योंकि यह उनके खेल को खराब करते । वह यह क्लीयर करते हैं कि वह अपने छात्रों से उसी तरह की अपेक्षा रखता है और यदि वे उसकी शैली और कोचिंग का अनुसरण करते हैं, तो वे शीर्ष खिलाड़ी बन सकते हैं । सायना राजन के सभी निर्देशों का पालन करती है । वह राजन के आग्रह पर अपना आहार भी काफी बदल देती है । हालांकि, जल्द ही उसके और राजन के बीच एक मनमुटाव पैदा हो जाता है । आगे क्या होता है यह बाकी की फिल्म देखने के बाद पता चलता है ।

Saina Movie Review: दिल को छू जाती है परिणीति चोपड़ा और अमोल गुप्ते की साइना

अमोल गुप्ते की कहानी प्रेरणादायक है । उनकी पटकथा प्रभावी है और वह अपनी बायोपिक को दर्शकों के लिए बनाने की पूरी कोशिश करते हैं । अमोल गुप्ते के संवाद (अमितोष नागपाल के अतिरिक्त संवाद) सरल और संवादी हैं । मानव कौल के वन-लाइनर्स काफ़ी शार्प हैं ।

अमोले गुप्ते का निर्देशन काफ़ी साफ-सुथरा है । उन्होंने निष्पादन काफ़ी सरल रखा है और पूरा फ़ोकस सायना नेहवाल के जीवन पर रखा है । उन्होंने कुछ दृश्यों को तो बहुत ही खूबसूरती के साथ हैंडल किया है । साइना का अपनी मां के साथ संबंध और कोच राजन के साथ उनका सहयोग विशेष रूप से दो ट्रैक हैं जो काबिलेतारिफ़ हैं । वहीं इसके विपरीत, हालांकि साइना की जर्नी प्रभावशाली है लेकिन सिनेमाई रूप से इसमें रोमांच का अभाव है ।

साइन की शुरूआत साइना नेहवाल की हालिया जीत के साथ शुरू होती है और यह फिल्म शुरू करने का एक बहुत ही अपरंपरागत तरीका है। फ्लैशबैक के हिस्से बांधे रखने वाले हैं और वह सीन जिसमें उषा रानी साइना को नीचे पड़े रैकेट को चुनने और कोचों का विश्वास जीतने के लिए खेलने का सुझाव देती है, फ़िल्म के लिए मूड सेट करता है । एक और सीन जिसमें साइना राजन के साथ अपनी डाइट पर चर्चा करती है, चेहरे पर स्माइल लेकर आता है । फ़र्स्ट हाफ़ में दो सीन निश्चितरूप से दर्शकों को हैरान कर देंगे । पहला सीन तो वो जिसमें उषा रानी साइना को थप्पड़ मारती है सेकेंड आने पर और दूसरा सीन वो जिसमें उषा देवी का एक्सीडेंट हो जाता ह ऐ । लेकिन कुल मिलाकर, फ़र्स्ट हाफ़ ज्यादातर साइना की जीत के बारे में है । इंटरमिशन के बाद मुकाबला मुख्य केंद्र बनता है । कोच के साथ साइना का झगड़ा अच्छे से बनाया गया है । क्लाइमेक्स मैच बहुत ही शानदार है और यह काफ़ी रोमांचक है । फ़िल्म का अंत एक प्यारे से नोट पर होता है ।

प्रदर्शनों की बात करें तो परिणीति चोपड़ा शानदार फॉर्म में हैं और वह मुश्किल भूमिका को आसानी से पूरा कर लेती हैं। वह एक विशेषज्ञ बैडमिंटन खिलाड़ी के रूप में आश्वस्त दिखती हैं, लेकिन यह अदालत के दृश्य हैं जहां वह वास्तव में चमकती है। मेघना मलिक को एक बहुत ही महत्वपूर्ण किरदार निभाना है। मानव कौल स्वाभाविक है। ईशान नकवी (कश्यप) साइना के प्यार के रूप में प्यारा है। सुभ्रज्योति बारात (साइना के पिता, डॉ। हरवीर सिंह नेहवाल) भरोसेमंद हैं और दृश्य में बहुत अच्छे हैं, जिसमें उन्होंने साइना के लिए अनगिनत शटल-लंड पाने के बाद डींग मारी।

अभिनय की बात करें तो, परिणीति चोपड़ा शानदार फॉर्म में हैं और वह मुश्किल रोल्स को भी सहजता के साथ निभा जाती हैं । वह एक एक्सपर्ट बैडमिंटन खिलाड़ी के रूप में जंचती हैं लेकिन एक सीन जहां वह बैडमिंटन कोर्ट के बाहर होती हैं, छा जाती हैं । मेघना मलिक एक बहुत ही महत्वपूर्ण किरदार निभाती है । मानव कौल नैचुरल लगते है । ईशान नकवी (कश्यप) साइना के प्यार के रूप में प्यारे लगते हैं । सुभ्रज्योति बारात (साइना के पिता, डॉ हरवीर सिंह नेहवाल) भरोसेमंद हैं और एक दृश्य में तो बहुत अच्छे लगते हैं । अंकुर विकल (कोच जीवन कुमार) फिल्म में एक बहुत ही भावनात्मक मोड़ पर आते हैं । वह बाद में अच्छा करते हैं लेकिन एंट्री सीन में वह कुछ ज्यादा कर देते हैं । नायशा कौर भटोय (छोटी साइना) अपने रोल में जंचती है । साइना की बहन का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री को ज्यादा करने के लिए नहीं मिलता । रोहन आप्टे (रोहन) और शरमन डे (दामोदर) साइना के दोस्त के रूप में जंचते हैं ।

गानों की बात करें तो, 'परिंदा' अच्छा है और फ़िल्म के लिए मूड सेट करता है । 'चल वहीं चलें' आत्मीय है । 'मैं हूं ना तेरे साथ' इतना आकर्षित नहीं करता है । अमाल मल्लिक का बैकग्राउंड स्कोर अच्छी तरह से बुना हुआ है ।

पीयूष शाह की सिनेमैटोग्राफी मनोरम है, खासकर बैडमिंटन के सीन्स में । अमित रे और सुब्रत चक्रवर्ती का प्रोडक्शन डिज़ाइन एक स्पोर्ट्स फिल्म का एहसास देता है । Red Chillies VFX का VFX सराहनीय है । दीपा भाटिया का संपादन सही है और फिल्म की गति उपयुक्त है ।

कुल मिलाकर, साइना हमारे देश की बेहतरीन खिलाड़ी का एक शानदार ओवरव्यू देती है । परिणीति चोपड़ा का अभिनय, नाटकीय और इमोशनल पल और फ़िल्म की सही गति फ़िल्म को देखने लायक बनाती है । इसे जरूर देखिए ।