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NOTE: दिल बेचारा के दिवंगत लीड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के सम्मान में बॉलीवुड हंगामा ने इस फ़िल्म को किसी भी रेटिंग से नहीं आंकने का फ़ैसला किया है ।

सुशांत सिंह राजपूत का आक्समिक निधन हर किसी की आंखों को नम कर गया । उनके फ़ैंस आज भी ये सच स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं । सुशांत के निधन के ठीक 40 दिन बाद उनकी आखिरी फ़िल्म दिल बेचारा आज Disney+ Hotstar पर रिलीज हुई । क्योंकि ये सुशांत की आखिरी फ़िल्म है इसलिए इससे लोगों के इमोशन का जुड़ना लाजिमी है । इसलिए Disney+ Hotstar ने भी सुशांत की फ़िल्म दिल बेचारा को फ़्री में सभी के लिए उपलब्ध करवाया । आइए जानते हैं कि सुशांत की आखिरी फ़िल्म दिल बेचारा कैसी है ।

Dil Bechara Movie Review: खुश होकर जिंदगी जीना सीखाती है सुशांत सिंह राजपूत की फ़िल्म दिल बेचारा

दिल बेचारा ऐसे दो बीमार यंगस्टर की कहानी है जो लास्ट स्टेज में हैं । किज़ी बसु (संजना सांघी) अपने माता-पिता (सास्वता चटर्जी और स्वस्तिका मुखर्जी) के साथ ज़ाम्बिया से जमशेदपुर शिफ्ट हो गए हैं । किज़ी को थायरॉइड कैंसर है इसलिए उसे हमेशा अपने साथ ऑक्सिजन सिलेंडर रखना होता है नाक के चारों और पाइप पहनना होता है जो सिलेंडर से कनेक्ट है । एक दिन अपने कॉलेज में उसकी मुलाकात मैनी (सुशांत सिंह राजपूत) से होती है । लेकिन पहली मुलाकात में मैनी उसे घमंडी और बेकार लगता है । लेकिन फ़िर उसे एक दिन पता चलता है कि मैनी भी कैंसर (ऑस्टियोसारकोमा) से पीड़ित है जिसकी वजह से उसके एक पांव को काटना पड़ा । लेकिन फ़िर भी किज़ी काफ़ी खुशी-खुशी अपनी जिंदगी जीता है । इसके बाद किज़ी और मैनी की मुलाकात बढ़ने लगती है । इसी दौरान किज़ी मैनी को बताती है कि उसे अभिमन्यु वीर (सैफ अली खान) की एक एलबम 'मैं तुम्हारा' बहुत पसंद है । लेकिन उसकी एलबम अधूरी है ये बात किज़ी को परेशान करती है । इसलिए वह अभिमन्यु से मिलना चाहती है । मैनी को समझ आ जाता है कि किज़ी के लिए अभिमन्यु से मिलना बहुत मायने रखता है इसलिए वह कहीं से भी अभिमन्यु का ईमेल और एड्रेस पता कर लेता है और पेरिस में किज़ी को उससे मिलाने ले जाने की तैयारी करता है । किज़ी, उसकी मां और मैनी तीनों पेरिस जाते हैं जहां उनकी मुलाकात अभिमन्यु से होती है । इसके बाद आगे क्या होता है ये आगे की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

दिल बेचारा, साल 2014 में आई हॉलीवुड फ़िल्म THE FAULT IN OUR STARS का ऑफ़िशियल हिंदी रीमेक है । सुप्रोतिम सेनगुप्ता की अनुकूलित कहानी सरल और साफ़ है। सुप्रोतिम सेनगुप्ता की रूपांतरित पटकथा मनोरंजक है और पात्रों और उनकी यात्रा को अच्छी तरह से दर्शाया गया है । शशांक खेतान के अनुकूलित संवाद मजाकिया और संवादात्मक हैं और इसमें मैनी के दृश्यों फ़िल्मी टच लिए हुए है । वहीं अभिमन्यू वीर के सीन काफ़ी शार्प हैं ।

मुकेश छाबड़ा का निर्देशन पहली फ़िल्म होने के नाते अच्छा है । वह किरदारों से आसानी से प्यार कराने के लिए तारीफ़ के हकदार हैं । हालांकि सेकेंड हाफ़ में फ़िल्म थोड़ी बिखर जाती है । लेकिन यह छोटी सी कमी है क्योंकि क्लाइमेक्स से ठीक पहले फ़िल्म अपनी रफ़्तार फ़िर पकड़ लेती है । लेकिन निश्चितरूप से यहां से आपको एक टिश्यू बॉक्स की जरूरत होगी आपकी गीली आंखों को पोंछने के लिए ।

दिल बेचारा महज 1 घंटा 41 मिनट लंबी है और यह जरा भी आपका समय बर्बाद नहीं करती है । फ़र्स्ट सीन से ही किरदारों पर फ़ोकस सेट हो जाता है और कैंसर पर भी । शुरूआती 8-10 मिनट ठीक है लेकिन फ़िल्म में दिलचस्पी तब बढ़ती है जब किज़ी और मैनी की मुलाकात होती है । मैनी का किरदार काफ़ी फ़नी और शरारती है जो फ़िल्म में मनोरंजन जोड़ता है । दो सीन तो फ़िल्म की जान बन जाते हैं एक तो वो जब किज़ी और मैनी के बीच ‘सीरियल किलर, सीरियल किसर’ वाली बात होती है और दूसरा जब किज़ी की फ़ैमिली के साथ मैनी नेशनल ज्यॉग्राफ़ी चैनल देख रहा होता है । सेकेंड हाफ़ में मैनी और किज़ी के पिता का सीन दिल को छू लेने वाला है । पेरिस सीक्वंस थोड़ा अप्रत्याशित है, लेकिन इसमें कई अच्छे सीन है । फ़िल्म का फ़िनाले सीन दिल तोड़ देने वाला है । यह सुशांत की असल जिंदगी और रील लाइफ़ दोनों की हकीकत दर्शाता है और वो ये कि सुशांत अब हमारे बीच नहीं है । किज़ी का मैनी के सामने उसके ही अंतिम संस्कार के भाषण का प्रिव्यू देना हृदरविदारक है ।

दिल बेचारा सुशांत सिंह राजपूत की फ़िल्म है, इसलिए नहीं कि वह अब इस दुनिया में नहीं है बल्कि इसलिए कि इसमें उन्होंने प्रतिभा का एक अलग स्तर छू लिया है । उनका किरदार काफ़ी अच्छे से लिखा गया है जिससे उनका चार्म और बढ़ जाता है । वह कई सीन में आपको हंसाते हैं लेकिन फ़िनाले में वह हर किसी की आंखों को नम कर देते हैं । सुशांत के कई फ़ैंस के लिए इस पल को देखना काफ़ी मुश्किल होगा । संजना सांघी अपने डेब्यू के लिए बेहतरीन है । वह अपनी एक दमदार छाप छोड़ती हैं । और कई सीन में तो उनके हाव-भाव और अभिनय देखने लायक है, खासकर फ़िनाले में । सास्वत चटर्जी प्यारे लगते हैं । स्वस्तिका मुखर्जी बहुत अच्छी लगती हैं और अपने हिस्से को अच्छे से निभाती हैं । हालांकि, मैनी के प्रति उसका हृदय परिवर्तन थोड़ा असंबद्ध लगता है । साहिल वैद (जे पी) हमेशा की तरह भरोसेमंद है । सैफ अली खान कैमियो में काफी कूल लगते हैं । सुभलक्ष्मी (मैनी की नानी) प्यारी लगती है और इच्छा होती है कि काश उनके हिस्से में थोड़ा और स्क्रीन टाइम आता तो उनके और मैनी के संबंध को जानना दिलचस्प होता । सुनीत टंडन (डॉ झा ) अपने रोल में जंचते हैं । माइकल मुथु (मैनी के पिता) और राजी विजय सारथी (मैनी की मां) के पास करने के लिए कुछ नहीं है। दुर्गेश कुमार (रिक्शा चालक) ठीक है ।

ए आर रहमान का संगीत फिल्म और उसके बदलते मूड के साथ मेल खाता है । फ़िल्म का टाइटल ट्रेक बहुत अच्छा है और एक ही शॉट में होना इसे और भी खास बना देता है । 'मैं तुमारा' फिल्म का एक महत्वपूर्ण गीत है और किसी की भी जुबां पर आसानी से चढ़ जाएगा ।'तारे गिन' खूबसूरती से बनाया हुआ और शॉट किया गया है । 'अफ़रीदा' सिर्फ कुछ मिनट के लिए बजाया जाता है, लेकिन एक आकर्षक अहसास करा देता है। 'मसखरी', 'खुलके जीना का' और 'मेरा नाम किजी' भी अच्छा है । ए आर रहमान का बैकग्राउंड स्कोर बेहतर है और अपना प्रभाव छोड़ता है ।

सेतु की सिनेमैटोग्राफी इतनी शानदार है कि जमशेदपुर और पेरिस को अच्छे से कैप्चर करती है । अमित रे और सुब्रत चक्रवर्ती का प्रोडक्शन डिजाइन आकर्षक है । झील के पास टूटी-फ़ूटी पुरानी गाड़ियों का जमावड़ा फ़िल्म की कहानी को एक अच्छा टच देता है । नताशा चरक और निकिता रहेजा मोहंती की वेशभूषा आकर्षक है । आरिफ शेख का संपादन में कोई कमी नहीं है ।

कुल मिलाकर, दिल बेचारा दमदार भावनाओं से भरी एक फ़िल्म है जिसके पास एक तुरुप का पत्ता है जो पूरी तरह से इसके फ़ेवर में जाता है । यह फ़िल्म आपकी आंखों में आंसू ले आएगी । हिंदी सिनेमा के शौकीन और सुशांत सिंह राजपूत के फ़ैंस के लिए दिल बेचारा को हमारी ओर से थम्स अप । इसे जरूर देखिए ।

NOTE: दिल बेचारा के दिवंगत लीड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के सम्मान में बॉलीवुड हंगामा ने इस फ़िल्म को किसी भी रेटिंग से नहीं आंकने का फ़ैसला किया है ।