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Review: 83 पिच पर ही नहीं बल्कि स्क्रीन पर भी विजेता बनकर उभरी है । जिन लोगों ने भारत की ये जीत देखी है उन्हें पर्दे पर एक बार फ़िर से इसे देखने में खुशी होगी, इसे जरूर देखिए । रेटिंग : 4 स्टार्स

फ़िल्मी पर्दे पर भारतीय खेल इतिहास की उस ऐतिहासिक जीत को दर्शाना काफ़ी कठिन काम है । और जब ये ऐतिहासिक जीत कई दशकों पहले हुई हो, तब तो इसे फ़िल्माना और ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो जाता है । सटीक तथ्यों और कहानी के अलावा कहानीकार को उस युग को फ़िर से रीक्रिएट करने की जरूरत है साथ ही उन किरदारों के साथ भी न्याय होना चाहिए जिन्होंने इस जीत को दिलाने में अहम योगदान दिया है ।

83 Movie Review: रणवीर सिंह की 83 पिच पर ही नहीं बल्कि स्क्रीन पर भी विनर बनी

जब आप 83 देखते हैं तो आप उन पलों को फिर से जीते हैं । बेशक, अधिकांश दर्शकों को बैकस्टोरी या वास्तव में पर्दे के पीछे क्या हुआ, यह नहीं पता है । फिल्म उसी वजह से देखने लायक बनती है इसके अलावा अन्य कारण भी है फ़िल्म देखने के ।

83 की कहानी भारतीय क्रिकेट टीम और 1983 में विश्व कप जीतने से पहले खिलाड़ियों के साथ क्या हुआ और उनकी क्या मनोदशा रही, इसके पीछे की कहानी को बताने का एक प्रयास है ।

सबसे पहले आपको 83 के प्लॉट के बारें में संक्षिप्त में जानकारी दे देते हैं…1983 का विश्व कप यूके में आयोजित होगा । कपिल देव [रणवीर सिंह] के नेतृत्व में भारतीय क्रिकेट टीम जीरो उम्मीद के बीच भाग लेने के लिए तैयार है । अंतरराष्ट्रीय मीडिया ही नहीं, यहां तक कि क्रिकेट फ़ैंस को भी ये उम्मीद नहीं है कि भारतीय विजयी होंगे ।

निर्देशक कबीर खान और उनके लेखकों की टीम ने भारतीयों के चैंपियन बनने से पहले के अनसुने प्रासंगिक एपिसोड को फ़िल्म में शामिल किया है । अपमान, घबराहट, चिंता, पिच पर कई दिग्गज खिलाड़ियों का सामना करने का दबाव - 83 में यह सब बखूबी दिखाया गया है ।

फ़र्स्ट हाफ़ में कुछ मामूली सी कमियां है । कमेंट्री बॉक्स [बोमन ईरानी] में होने वाली पूरी बातचीत - जबकि सभी मैच खेले जा रहे हैं - अंग्रेजी में है । सहमत हूं, वास्तविकता दिखानी होगी, लेकिन बोमन द्वारा बोली जाने वाली पंक्तियाँ हिंदी में हो सकती थीं । इसे निश्चित रूप से उन लोगों के लिए समझना थोड़ा मुश्किल होगा जो अंग्रेजी बोल या समझ नहीं सकते हैं ।

फ़र्स्ट हाफ़ के कुछ सीन ट्रिम हो सकते हैं । कुछ सीक्वेंस खिंचे हुए लगते हैं, जिन्हें बेहतर प्रभाव के लिए एडिटिंग के दौरान और शार्प किया जाना चाहिए था ।

फ़िल्म में कुछ ऐसे पल हैं जो आपको इमोशनल कर आपकी आंखें नम कर देंगे । एक बच्चे का कपिल देव से यह कहने का एक स्पेशल सीक्वंस है कि वह भारतीयों को मैच खेलते नहीं देख रहा होगा । इसके अलावा एक और इमोशनल सीक्वंस है जो इंटरवल के दौरान आता है , जब भारतीयों को प्रतिद्वंद्वी टीम से अपमानजनक हार का सामना करना पड़ता है । ये दोनों ही सीक्वंस बेहद शानदार हैं ।

सही लेखन की वजह से सेकेंड हाफ़ में चीजे और निखर के सामने आती हैं । इस मोड़ पर दीपिका पादुकोण का परिचय सीन जान डाल देता है । फ़िल्म के क्लाइमेक्स तक ऐसी ही कसी हुई स्क्रीन राइटिंग देखने को मिलती है । फ़िल्म का क्लाइमेक्स उत्साहपूर्ण है और मुझे यकीन है कि दर्शक तालियों और सीटियों से इसका स्वागत करेंगे ।

फ़िल्म का सबसे बेहतरीन हिस्सा लास्ट के लिए रिजर्व रहता है । इस मौके पर कपिल देव की एंट्री होती है जो अब तक के कुछ अनसुने किस्से सुनाते हैं जो तारीफ़ के काबिल हैं ।

कबीर खान का निर्देशन बेहद शानदार है । 83 एक कठिन फिल्म है और सक्षम अभिनेताओं की उपस्थिति के बावजूद, अगर स्पोर्ट्स ड्रामा का निष्पादन कमतर होता तो फिल्म उतनी प्रभावशाली नहीं होती । कबीर अपना सर्वश्रेष्ठ शॉट देते हैं, दूसरे और तीसरे एक्ट में बाजी मार ले जाते हैं जिसे दर्शक थिएटर से बाहर निकलने के साथ याद के तौर पर अपने साथ लेकर जाते हैं । वह कुशलता से पिच से लेकर ड्रेसिंग रूम तक ड्रामा, आंसू और हंसी कुशलता संतुलित करते हैं ।

इस फ़िल्म में म्यूजिक का ज्यादा स्कोप नहीं है, लेकिन एक गाना जो आपके होठों पर रह जाता है और वो है 'लहरा दो' । बैकग्राउंड स्कोर प्रभावी है डीओपी फिल्म के मूड को सटीकता के साथ कैप्चर करता है ।

83 में कलाकारों की भरमार है और सभी कलाकार अपना-अपना किरदार ईमानदारी से बखूबी निभाते हैं, निश्चितरूप से फ़िल्म के लीड एक्टर रणवीर सिंह सभी में सबसे शानदार हैं । वह शानदार प्रदर्शन देते हैं । 83 उन फिल्मों में से एक है जो उनकी बहुमुखी प्रतिभा को साबित करती है । वह एक ऐसे किरदार में उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं जो उनके लिए तैयार किया गया है । दीपिका पादुकोण बेहतरीन हैं उनकी मौजूदगी फ़िल्म को और प्यारी बनाती है । पंकज त्रिपाठी शानदार फॉर्म में हैं । स्क्रीन पर उनकी मौजूदगी अच्छा फ़ील देती है ।

डायरेक्टर कबीर फ़िल्म के प्रमुख कलाकारों के प्रत्येक सदस्य को पर्याप्त फुटेज देते हैं । लेकिन इन सभी में जो सबसे ज्यादा शाइन करते हैं वो है जीवा, साकिब सलीम, जतिन सरना और अम्मी विर्क ।

कुल मिलाकर, 83 पिच पर ही नहीं बल्कि स्क्रीन पर भी विजेता बनकर उभरी है । जिन लोगों ने भारत की ये जीत देखी है उन्हें पर्दे पर एक बार फ़िर से इसे देखने में खुशी होगी । और जो लोग इस जीत के गवाह नहीं बने हैं, उन्हें ये देखने का मौका मिलेगा कि आखिर वो ऐतिहासिक जीत कैसे मिली । इसे जरूर देखिए ।