फ़िल्म :- मस्ती 4

कलाकार :- रितेश देशमुख, विवेक ओबेरॉय, आफताब शिवदासानी

निर्देशक :- मिलाप मिलन ज़वेरी

रेटिंग :- 2/5

Mastiii 4 Movie Review: फूहड़ कॉमेडी और कमजोर राइटिंग ने किया मस्ती 4 का मजा खराब

बिना स्पॉइलर के मस्ती 4 का प्लॉट :-

मस्ती 4 की कहानी चार दोस्तों के इर्द-गिर्द घूमती है जो अपनी ही करतूतों की वजह से मुसीबत में फंस जाते हैं। अमर (रितेश देशमुख), प्रेम (आफ़ताब शिवदासानी) और मीत (विवेक ओबरॉय) यूके में रहते हैं। अमर एक ज़ू में काम करता है और जानवरों के प्रजनन में उनकी मदद करता है, यानी वह ‘मास्टर-मेयर’ है। प्रेम पेशे से डॉक्टर है, जबकि मीत ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री से जुड़ा है। तीनों की शादी हो चुकी है—अमर की बिंदिया (एलनाज़ नोरोज़ी) से, प्रेम की गीता (रूही सिंह) से और मीत की आंचल (श्रेय शर्मा) से। लेकिन तीनों मित्र अपनी-अपनी शादीशुदा ज़िंदगी से नाख़ुश हैं, हर किसी के अपने कारण हैं। इसी बीच, वे अपने दोस्तों कमराज (अरशद वारसी) और मेनका (नरगिस फाखरी) की दसवीं वेडिंग ऐनिवर्सरी में शामिल होते हैं। कमराज अपनी पत्नी से बेहद प्यार करता है और यही देखकर बिंदिया, गीता और आंचल को जलन होती है। अमर, प्रेम और मीत को शक होता है कि कमराज अपनी पत्नी को धोखा दे रहा है। जल्द ही उनका शक सच साबित होता है जब वे कमराज को दस लड़कियों के साथ रंगे हाथों पकड़ लेते हैं। तीन दोस्त मेनका को यह बात बताते हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि मेनका को इससे कोई आपत्ति नहीं होती। तभी कमराज खुलासा करता है कि उसे अपनी पत्नी से एक ‘लव वीज़ा’ मिला है—एक हफ्ते के लिए उसे एक्स्ट्रा-मैरेटल अफेयर करने की अनुमति है। मेनका मानती है कि लव वीज़ा की अवधि खत्म होने के बाद कमराज फिर वही वफादार और परफेक्ट पति बन जाता है। अमर, प्रेम और मीत इस ‘लव वीज़ा’ के आइडिया से बेहद प्रभावित होते हैं और फैसला करते हैं कि वे भी अपनी-अपनी पत्नियों से ऐसा ही वीज़ा मांगेंगे। इसके बाद क्या होता है—यही फिल्म की आगे की कहानी है।

मस्ती 4 मूवी स्टोरी रिव्यू :-

फ़र्रुख़ ढोंडी और मिलाप मिलन ज़वेरी की कहानी में ऐसे सभी एलिमेंट्स मौजूद हैं, जो इसे एक हँसी-ठहाकों से भरपूर फिल्म बना सकते थे। लेकिन मिलाप ज़वेरी और फ़र्रुख़ ढोंडी की स्क्रीनप्ले उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता है और इसमें बहुत कम जोक्स हैं जो वैसा असर छोड़ पाते हैं जैसा इरादा था। मिलाप मिलन ज़वेरी और अभिनव वैद्य के डायलॉग्स कुछ जगहों पर हँसी जरूर दिलाते हैं, हालांकि सेंसर बोर्ड की वजह से इनमें से कुछ डायलॉग्स में बदलाव किए गए हैं, जिससे प्रभाव थोड़ा कम हो जाता है।

निर्देशन की बात करें तो मिलाप मिलन ज़वेरी का डायरेक्शन ठीक-ठाक है। सकारात्मक पहलू ये है कि फिल्म विजुअली काफी फ्रेश लगती है और बड़े पैमाने पर शूट की गई है। ओपनिंग क्रेडिट्स भी आकर्षक हैं। फिल्म में बहुत कुछ लगातार होता रहता है, इसलिए कहीं भी बोरियत महसूस नहीं होती । हालाँकि गाने कमजोर हैं, लेकिन उनका फिल्मांकन अच्छा है। कुछ जोक्स वाकई दर्शकों को खूब हँसाते हैं और खासतौर पर मास ऑडियंस और फ्रंटबेंचर दर्शकों को खूब पसंद आएंगे।

वहीं कमियों की बात करें तो, सकारात्मक पक्षों के बावजूद, फिल्म दर्शकों को प्रभावित करने में नाकाम रहती है। ट्विस्ट भी अनुमानित है और पहले आई फिल्मों में देखे गए ट्विस्ट से काफी मिलता-जुलता लगता है। ज्यादातर जोक्स फ्लैट पड़ जाते हैं और इसका सीधा कारण कमजोर लेखन है। हैरानी और निराशा की बात यह है कि मैं तेरा हीरो (2014) की एक लोकप्रिय वन-लाइनर को बिना किसी झिझक के मस्ती 4 में ज्यों का त्यों उठा लिया गया है। यह देखकर लगता है कि शायद मेकर्स के पास नए आइडिया खत्म हो गए थे। कुछ जोक्स बेहद क्रूड और फूहड़ हैं, जिन्हें आम दर्शक भी नकार सकते हैं। प्री-क्लाइमैक्स में टॉयलेट ह्यूमर वाला एक सीन तो इतना भद्दा है कि हैरानी होती है कि इसे पास कैसे कर दिया गया।

परफॉरमेंस :-

रितेश देशमुख ईमानदारी से अपना किरदार निभाते हैं और इंप्रेस करते हैं। विवेक ओबेरॉय कई दृश्यों में ज़रूरत से ज्यादा ओवर हो जाते हैं। आफ़ताब शिवदासानी भी ओवर-द-टॉप नज़र आते हैं, लेकिन किसी तरह अपने रोल के साथ न्याय कर जाते हैं। एलनाज़ नोरोज़ी, रूही सिंह और श्रेया शर्मा का काम औसत है। शाद रंधावा (विराट) भरोसेमंद दिखते हैं। तुषार कपूर (डॉन पाब्लो पुतिनवा) को एक मज़ेदार किरदार मिला है, लेकिन कमजोर लेखन उन्हें सीमित कर देता है—निर्माता इस किरदार के साथ और भी खेलने की गुंजाइश रखते थे। निशांत सिंह मलकानी (सिड वालिया) ठीक-ठाक हैं, जबकि जेनेलिया देशमुख अपनी कैमियो उपस्थिति में बेहद प्यारी लगती हैं।

मस्ती 4 मूवी का म्यूज़िक और दूसरे टेक्निकल पहलू:

फिल्म के गाने प्रभाव नहीं छोड़ते चाहे वह टाइटल ट्रैक हो, ‘पकड़ पकड़’, ‘वन इन करोड़’ या प्री-क्लाइमैक्स वाला गाना। विशाल शेलके का बैकग्राउंड स्कोर परिस्थितियों के अनुसार ठीक बैठता है।

संकेत शाह की सिनेमैटोग्राफी फिल्म को एक फ्रेश, आकर्षक लुक देती है। तजमुल इस्माइल शेख और अंशिता मनोत का प्रोडक्शन डिज़ाइन समृद्ध और प्रभावशाली है। अवनि गुम्बर की कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग स्टाइलिश है। व्हाइट एप्पल का VFX स्तरहीन लगता है। संजय संकला की एडिटिंग ठीक-ठाक कही जा सकती है।

क्यों देंखे मस्ती 4 ?

कुल मिलाकर, मस्ती 4 में कहीं-कहीं हंसी के पल जरूर आते हैं, लेकिन अधिकांश हिस्सों में फिल्म थके हुए, बेतुके और जरूरत से ज़्यादा भद्दे हास्य के कारण ऑफ़ ट्रेक हो जाती है। नतीजतन, बॉक्स ऑफिस पर भी इसका प्रदर्शन काफी कमजोर रहने की ही संभावना है।