फ़िल्म :- कांतारा : ए लीजेंड चैप्टर - 1

कलाकार :- ऋषभ शेट्टी, रुक्मिणी वसंत, गुलशन देवैया

निर्देशक :- ऋषभ शेट्टी

रेटिंग :- 4/5

Kantara: A Legend Chapter – 1 Movie Review: हर एंगल से मास्टरपीस है ऋषभ शेट्टी की कांतारा : ए लीजेंड चैप्टर - 1

संक्षिप्त में कांतारा : ए लीजेंड चैप्टर - 1 का प्लॉट :-

कांतारा: ए लीजेंड – चैप्टर 1 भक्ति और लालच की कहानी है। यह कहानी कांतारा [2002] की घटनाओं से हज़ार साल पहले की है। बरमे (ऋषभ शेट्टी) जंगल में रहता है, जहाँ गाँववाले दैवा की पूजा करते हैं। पास ही बंगरा नाम का राज्य है, जिस पर राजशेखर (जयराम) का राज है। बचपन में उसने देखा था कि उसके पिता ने जब जंगलवासियों की ज़मीन और दैवा की शक्ति हथियाने की कोशिश की थी, तो उनकी हत्या कर दी गई थी। इसी वजह से उसने सख्त नियम बना दिया था कि उसकी सेना कभी जंगल में जाकर वहाँ के लोगों को परेशान नहीं करेगी। लेकिन जब उसका बेटा कूलशेखर (गुलशन देवैया) राजा बनता है, तो वह इन नीतियों में बदलाव करता है। वह शिकार के लिए जंगल में जाता है। तभी उसकी सेना को किसी दिव्य शक्ति का आभास होता है और वे डरकर भाग जाते हैं। बरमे राजा के इस कृत्य से नाराज़ हो जाता है। वह राज्य में घुसपैठ करता है और वहाँ हड़कंप मचा देता है। इसी दौरान उसकी मुलाकात कूलशेखर की बहन कनकवती (रुक्मिणी वसंत) से होती है। कनकवती और बरमे के बीच एक खास रिश्ता पनपने लगता है। इसके बाद क्या होता है, यही फिल्म की आगे की कहानी है।

कांतारा: ए लीजेंड – चैप्टर 1 मूवी स्टोरी रिव्यू

ऋषभ शेट्टी की कहानी (अनिरुद्ध महेश, शनिल गौतम के साथ लिखी गई) काफ़ी डिटेल्ड है और बाकी पैन-इंडिया फिल्मों से बिल्कुल अलग नज़र आती है। उनकी स्क्रीनप्ले (अनिरुद्ध महेश और शनिल गौतम के साथ) बेहद आकर्षक है और धार्मिक तत्वों को बड़ी खूबसूरती से नैरेटिव में पिरोया गया है। ऋषभ शेट्टी के डायलॉग्स तेज़ और सटीक हैं। हालांकि, कन्नड़ डायलॉग्स के सबटाइटल्स का साइज़ बहुत छोटा है, जिससे पढ़ने में दिक्कत होती है। साथ ही, मेकर्स को हिंदी और इंग्लिश दोनों में सबटाइटल्स देने चाहिए थे। इसके अलावा, कुछ जगहों पर बैकग्राउंड स्कोर और गाने डायलॉग्स पर हावी हो जाते हैं।

ऋषभ शेट्टी का डायरेक्शन कमाल का है। इस बार फिल्म का स्केल पहले पार्ट से कहीं बड़ा है। अक्सर बड़े स्तर पर फिल्मकार कहानी से भटक जाते हैं और भव्यता पर ज़्यादा ध्यान देते हैं। लेकिन ऋषभ शेट्टी ने अपवाद पेश किया है। उनका फोकस पूरी तरह कहानी पर है और वे बजट का इस्तेमाल कहानी कहने को और प्रभावशाली बनाने में करते हैं। दर्शकों को आकर्षित करने के लिए वे बीच-बीच में हल्के-फुल्के और मज़ेदार सीन भी जोड़ते हैं। पहले हाफ में रथ वाला सीन बहुत प्रभावशाली है। लेकिन असली जादू दूसरे हाफ में है। प्री-क्लाइमेक्स का ट्विस्ट बिल्कुल अप्रत्याशित है और अंदाज़ा लगाना तकरीबन नामुमकिन है। जहां तक क्लाइमेक्स की बात है, यह एक मास्टरस्ट्रोक है। ऋषभ ने कांतारा के फिनाले से पहले ही बेंचमार्क सेट कर दिया था, लेकिन इस बार उन्होंने क्लाइमेक्स को कई गुना ऊंचा उठा दिया है। सिनेमाघरों में यह जबरदस्त क्रेज़ पैदा करेगा।

वहीं कमियों की बात करें तो, ट्रेलर, फिल्म की भव्यता और ताकत को दर्शाने में असफल रहा, जिससे चर्चा कम बनी । पहला हाफ बस ठीक-ठाक है और बेहतर असर के लिए इसे थोड़ा छोटा किया जा सकता था। गाने भी खास असर नहीं छोड़ते। अंत में, मेकर्स ने फिल्म को सिंपल बनाने की पूरी कोशिश की है, फिर भी कुछ सीन्स थोड़े कन्फ्यूज़िंग लगते हैं।

परफॉरमेंस :-

ऋषभ शेट्टी धमाकेदार परफॉर्मेंस देते हैं। जब भी वे स्क्रीन पर आते हैं, नज़रें उनसे हटती नहीं हैं। उनका प्रेज़ेंस इतना स्ट्रॉन्ग है। एक बार फिर उन्होंने चुनौतीपूर्ण किरदार को बड़ी आसानी से निभाया है। रुक्मिणी वसंत बेहद खूबसूरत लगती हैं और परफॉर्मेंस के मामले में सरप्राइज़ करती हैं। गुलशन देवैया ने एक ऐसे शाही किरदार को निभाया है जो खलनायक भी है और कहीं न कहीं विदूषक भी। उन्होंने इस पहलू को बखूबी पकड़ लिया है। जयराम हमेशा की तरह गहरा असर छोड़ते हैं। प्रकाश तुमिनाड (चेन्ना) जमकर हंसी बटोरते हैं। प्रमोद शेट्टी और बाकी कलाकार भी अच्छा काम करते हैं।

संगीत और तकनीकी पहलू


बी. अजनीश लोकनाथ का म्यूज़िक फिल्म में अच्छी तरह फिट बैठता है और थीम से मेल खाता है। हालांकि यह चार्टबस्टर लेवल का नहीं है। ‘ब्रहमाकलशा’ और ‘रेबल’ दो गाने अलग नज़र आते हैं। अजनीश लोकनाथ का बैकग्राउंड स्कोर गानों से कहीं बेहतर है।

अरविंद एस कश्यप की सिनेमैटोग्राफी लाजवाब है। बंगालन का प्रोडक्शन डिज़ाइन तारीफ़ के काबिल है । यह उस दौर के हिसाब से बिल्कुल सटीक है और साथ ही यह अन्य पीरियड फिल्मों का क्लोन भी नहीं लगता। प्रगति शेट्टी की कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग किरदारों को रस्टिक और रॉयल टच देती है। अर्जुन राज, टोडोर लाज़ारोव (जुजी), राम-लक्ष्मण, महेश मैथ्यू और मितुन सिंह राजपूत की ऐक्शन टीम ने फिल्म के असर को और मज़बूत किया है। सुरेश की एडिटिंग और स्मूद हो सकती थी, ख़ासकर पहले हाफ में।

क्यों देंखे कांतारा: ए लीजेंड – चैप्टर 1 ?

कुल मिलाकर, कांतारा: ए लीजेंड – चैप्टर 1 सिर्फ़ एक प्रीक्वल नहीं है; यह एक ऐसा अनुभव है जो ऋषभ शेट्टी द्वारा बनाई गई दुनिया को और भी गहराई देता है और उसे बड़े सिनेमाई स्तर तक ले जाता है। भक्ति, सत्ता और किस्मत को मिलाकर बुनी गई कहानी दर्शकों को प्री-क्लाइमेक्स की रोमांचक स्थिति और थंडरस क्लाइमेक्स के साथ बांध लेती है, जिससे यह फिल्म लंबे समय तक याद रहती है। बॉक्स ऑफिस पर, इसकी सफलता मजबूत वर्ड ऑफ माउथ के दम पर बढ़ सकती है और यह साल की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक बन सकती है।