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कई वर्षों से, राष्ट्रवाद से संबंधित वीरता और शौर्य की असाधारण कहानियां पर्दे पर पेश की जाती रही है । लेकिन कुछ ऐसी भी वीर गाथाएं हैं जो अखबार की सुर्खियां तो बनीं लेकिन ज्यादा चर्चा नहीं बटोर पाई या कहें कि कभी-कभी तो सामने ही नहीं आ पाई । निर्देशक राज कुमार गुप्ता ने पिछले साल एक फिल्म बनाई थी, रेड जो इसके बाद की श्रेणी की फ़िल्म थी । और अब राजकुमार गुप्ता लेकर आए हैं इस श्रेणी के पहले की फ़िल्म इंडियाज मोस्ट वॉंटेड । तो क्या इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई फ़िल्म इंडियाज मोस्ट वॉंटेड दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब हो पाएगी, या यह अपने प्रयास में विफ़ल होती है । आइए समीक्षा करते है ।

India’s Most Wanted Movie Review: अर्जुन कपूर फ़ॉर्म में है लेकिन फ़िल्म से जोश गायब है

इंडियाज मोस्ट वॉंटेड, एक आतंकवादी को सनसनीखेज तरीके से पकड़ने की कहानी है । प्रभात कपूर (अर्जुन कपूर) बिहार में स्थित एक खुफिया अधिकारी है और उसके नाम कई हाई-प्रोफाइल अपराधियों को पकड़ने के रिकॉर्ड दर्ज है । उसे एक दिन नेपाल में एक खूंखार आतंकवादी के ठिकाने के बारे में एक रहस्यमय स्रोत (जितेंद्र शास्त्री) से एक टिप मिलती है । यह आतंकवादी कोई और नहीं बल्कि यूसुफ (सुदेव नायर) है, जो भारत में कई आतंकवादी हमलों का मास्टरमाइंड है । उसके ट्रैक रिकॉर्ड की बदौलत उसे भारत का ओसामा बिन लादेन करार कर दिया गया है । अनाधिकृत रूप से अपने वरिष्ठ राजेश सिंह (राजेश शर्मा) से अनुमति मिलने के बाद, प्रभात पिल्लई (प्रशांत अलेक्जेंड्र), अमित (गौरव मिश्रा) और आसिफ खान (बिट्टू) के साथ नेपाल के लिए रवाना हो जाता है । राजेश को सूचित किए बिना, प्रभात रवि (बजरंगबली सिंह) से वित्तीय और कुछ आदमियों की मदद लेता है और फ़िर अपनी टीम को नेपाल की राजधानी काठमांडू लेकर पहुंचता है । वे उस सूत्र से मिलते हैं जिसने उन्हें यूसूफ़ की टिप दी थी, वह उन्हें बताता है कि यूसुफ ने सऊदी अरब में पैसा भेजने के लिए अपने परिचित नदीम के माध्यम से उससे मुलाकात की थी । लेकिन उस सूत्र को ये नहीं पता कि यूसुफ वास्तव में कहां रहता है । इसके बाद प्रभात और उसकी टीम यूसुफ़ की खोज में निकल जाती है । हालांकि, उनके सामने चुनौतियां बहुत बड़ी हैं । हथियारों का उपयोग करने के लिए उनकू परमिशन नहीं है क्योंकि वह एक अवैध मिशन पर है । इसके अलावा, पाकिस्तान की ISI की नेपाल में भारी उपस्थिति है और वे यूसुफ को टीम प्रभात के चंगुल से बचाने के लिए कुछ भी करते हैं । आगे क्या होता है यह बाकी की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

राज कुमार गुप्ता की कहानी सख्ती से ठीक है और अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म बेबी [2015] के सेकेंड हाफ़ की याद दिलाती है । उन्होंने वास्तविक घटना के प्रति प्रामाणिक रहने का प्रयास किया है । ऐसा करने में, राज कुमार गुप्ता की पटकथा मात खा जाती है । आतंकवादी को कैसे पकड़ा गया, यह एपिसोड सनसनीखेज था, विशेष रूप से एक भी गोली दागे बिना उसे पकड़ना थोड़ा समझ के परे है । लेकिन दूसरे शब्दों में, इसका मतलब यह भी है कि फिल्म एक्शन और कुछ वास्तविक मनोरंजन से रहित है । राज कुमार गुप्ता के संवाद कुछ खास नहीं हैं ।

राज कुमार गुप्ता का निर्देशन इतना शानदार नहीं है, क्योंकि उन्होंने अतीत में आमिर [2008], नो वन किल्ड जेसिका [2011] और रेड [2018]जैसी बेहतरीन फ़िल्में बनाई है । लेखन निश्चित रूप से यहां सबसे बड़ा दोषी है, लेकिन राजकुमार के निर्देशन ने उसे संभलाने की जरा भी कोशिश नहीं की है । फ़िल्म में कुछ सीन बहुत ही अच्छे हैं लेकिन ये सिर्फ़ गिने-चुने ही है । फ़िल्म में से रोमांच नदारद है । इसके अलावा, नियमित अंतराल पर यूसुफ के औचित्य के बाद विभिन्न सीरियल धमाकों के शॉट्स डालने का विचार बहुत ही निरुद्देश्य/बेतरतीब है और फिल्म की कहानी को खराब करता है ।

इंडियाज मोस्ट वॉंटेड औसत नोट पर शुरू होती है । प्रभात की एंट्री वास्तव में एक हीरो के तौर पर होती है लेकिन ये अच्छी तरह से पर्दे पर नहीं उभरती । वो सीन जिसमें प्रभात के सदस्य अपनी खुद की जेब से नेपाल यात्रा के लिए पैसे जमा करते हैं, वह विशेष रूप से इस बात पर विचार करता है कि उन सभी के पास उनकी शायद ही कोई बचत हो । यहां उनकी स्थिती फ़ील की जा सकती है । इसके अलावा पूरी फ़िल्म में ऐसा कोई पल नहीं है जिससे जुड़ा हुआ महसूस किया जा सके और यह भी कि वे अतीत में कुछ महत्वपूर्ण मिशनों को सफलतापूर्वक निष्पादित करने के अपने रिकॉर्ड के बारे में आश्वस्त नहीं हैं । फिल्म की गति धीमी है और कुछ दृश्य सिर्फ भ्रम और लंबाई को जोड़ते हैं । भारत के मोस्ट वांटेड आतंकवादी का किरदार भी कमजोर है । वह इतना भी खतरनाक नहीं दिखाया गया है और इसकी बैकग्राउंड कहानी को भी दिखाने का कोई प्रयास नहीं किया गया है । सूत्र से पूछताछ अच्छी तरह से निष्पादित की गई है । इंटरमिशन प्वाइंट काफ़ी नाटकीय है । इसके अलावा क्लाइमेक्स तब होता है जब आपकी फ़िल्म को लेकर खीझ बढ़ जाती है । लेकिन फिर, प्रभात की टीम की नेपाल से भारत की जर्नी काफ़ी उपयुक्त लगती है । समापन थोड़ा प्राणपोषक है और यह फिल्म को कुछ हद तक अच्छे नोट पर समाप्त करने में मदद करती है ।

अर्जुन कपूर का परफ़ोरमेंस काम चलाऊ कहा जा सकता है । उनका अभिनय एकरूप नहीं है-कुछ सीन में वह शानदार करते हैं जबकि कुछ सीन में वह फ़ॉर्म में नजर नहीं आते है । उनका सबसे अच्छा अभिनय तब नजर आता है जब वह पहली बार आतंकवादी पर अपनी नजरें गड़ाते हैं । राजेश शर्मा काफी विश्वसनीय हैं । जितेंद्र शास्त्री मनोरंजक हैं, खासकर उनका लुक और किरदार । प्रशांत अलेक्जेंड्र, गौरव मिश्रा और आसिफ खान सख्ती से ठीक हैं । बजरंगबली सिंह भी अपने किरदार में जंचते है । सुदेव नायर एक बुरे व्यक्ति के रूप में अभिनय करने की पूरी कोशिश करते हैं ।

अमित त्रिवेदी का संगीत भूलने योग्य है । 'वंदे मातरम' देशभक्ति की भावना को नहीं जगाता है । क्लब गीत 'दिल जानी' को जबरदस्ती जोड़ा गया है, हालांकि यह बहुत ही अच्छा है । अमित त्रिवेदी का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म की मनोदशा के अनुरूप है ।

डडले की सिनेमैटोग्राफी कुछ खास नहीं है । बहुत सारे एरियल शॉट्स का इस्तेमाल किया गया है । रीता घोष का प्रोडक्शन डिजाइन यथार्थवादी है । रोहित चतुर्वेदी की वेशभूषा भी काफी प्रामाणिक है । परवेज शेख के एक्शन में उत्साह का अभाव है । बोधादित्य बनर्जी का संपादन त्रुटिपूर्ण है क्योंकि ये फिल्म और छोटी हो सकती थी ।

इंडियाज मोस्ट वॉंटेड रिव्यू :

कुल मिलाकर, इंडियाज मोस्ट वॉंटेड अपने खराब लेखन और निर्देशन के कारण औसत दर्जे की फ़िल्म है । उत्साह और चर्चा की कमी के कारण बॉक्सऑफ़िस पर इस फ़िल्म के लिए दर्शक जुटाना थोड़ा कठिन होगा ।