महिला केंद्रित फ़िल्मों को बमुश्किल ही बॉक्सऑफ़िस पर अपार सफ़लता मिलती है । लेकिन पिछले कुछ सालों में इसमें एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है । न केवल बॉलीवुड में बल्कि साउथ फ़िल्म इंडस्ट्री में भी इसमें बदलाव देकख्ने को मिला । इसी बदलाव की सबूत रही अनुष्का शेट्टी की हॉरर ड्रामा भागमती, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा और कमाई के मामले में भी यह फ़िल्म मेकर्स के लिए फ़ायदे का सौदा साबित हुई । इस फ़िल्म को अनुष्का की शानदार परफ़ोर्मेंस, कसी हुई स्क्रिप्ट, और अप्रत्याशित क्लाइमेक्स की वजह से पसंद किया गया । और अब इसी फ़िल्म का हिंदी रीमेक आया है दुर्गामती जिसमें अनुष्का वाला किरदार भूमि पेडनेकर ने निभाया है । तो क्या दुर्गामती अपनी ऑरिजनल फ़िल्म जैसा जादू चलाने में कामयाब हो पाएगी, या यह अपने प्रयास में विफ़ल होती है ? आइए समीक्षा करते हैं ।
दुर्गामती एक कैद की गई IAS ऑफ़िसर की कहानी है जिससे एक डरावने घर में पूछताछ की जाती है । भारत का एक राज्य विभिन्न मंदिरों से बेशकीमती मूर्तियों की कई लूटों का गवाह है । सत्तारूढ़ पार्टी के एक मंत्री ईश्वर प्रसाद (अरशद वारसी) लोगों का दिल जीतकर यह दावा करते हैं कि यदि सरकार 15 दिनों के भीतर मूर्तियों को वापस लाने में विफल रहती है, तो वह हमेशा के लिए राजनीति छोड़ देंगे । उनकी पार्टी के सदस्य उनके इस वादे से हैरान रह जाते हैं । इसलिए उनकी पार्टी के सदस्य उन्हें भ्रष्टाचार के मामले में फंसाकर उन्हें सत्ता से उतारने का फ़ैसला करते हैं । सीबीआई अधिकारी सताक्षी गांगुली (माही गिल) की पोस्टिंग इस गांव में होती है । वह सहायक पुलिस आयुक्त अभय सिंह (जीशु सेनगुप्ता) से स्थानीय मदद लेती है । अपने ऑपरेशन के एक भाग के रूप में, साक्षी चंचल चौहान (भूमि पेडनेकर), जो एक आईएएस अधिकारी है, जिसने एक दशक के लिए ईश्वर के साथ काम किया है, से पूछताछ करने का फैसला करती है । लेकिन चंचल अपने मंगेतर शक्ति (करण कपाड़िया) की हत्या के लिए जेल की सजा काट रही है । अब क्योंकि शक्ति अभय सिंह का भाई होता है तो चंचल को माफ़ी मिलना तो दूर की बात है । चंचल से पूछताछ एक टॉप-सीक्रेट ऑपरेशन माना जाता है । जेल में चंचल से पूछताछ नहीं हो सकती, इसलिए अभय उसे एक सूनसान डरावनी हवेली में शिफ़्ट किया जाता है । जूनियर अधिकारी, जो ऑपरेशन का एक हिस्सा भी हैं, भयभीत हो जाते हैं क्योंकि उन्होंने सुना है कि वो हवेली भूतिया है । वे अभय और सोनाक्षी को चंचल को कहीं और शिफ्ट करने के लिए कहते हैं । हालांकि, सताक्षी और अभय अधिकारी भूतों में विश्वास करने से इनकार करते हैं । पूछताछ शुरू होती है और सताक्षी चंचल से कोई भी विश्वसनीय जानकारी प्राप्त करने में विफल रहती है । चंचल लगातार ये कहती है कि वह एक साफ छवि वाला व्यक्ति है और भ्रष्टाचार से दूर है । चंचल की सुरक्षा में तैनात पुलिस बल के लोग डर के कारण अपनी ड्यूटी से पीछे हट जाते हैं और चंचल को अकेली ही उस भूतहा हवेली में रहने के लिए कहते हैं । इस दौरान चंचल के शरीर में रानी दुर्गामती प्रवेश कर जाती है । शुरूआत में सताक्षी और अभय इसे चंचल की एक्टिंग बताते हैं लेकिन बाद में उन्हें महसूस हो जाता है कि विज्ञान से परे भी कुछ चीजें होती हैं । इसके बाद आगे क्या होता है, ये आगे की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।
जी अशोक की कहानी काफी अनूठी है । एक डरावने घर की कहानी में राजनीतिक टच देना, काफ़ी दिलचस्प कॉम्बिनेशन है । कागजों पर यह विचार काफ़ी आकर्षक लगता है लेकिन जी अशोक की पटकथा कई इच्छाएं अधूरी छोड़ देती है । कुछ सीन्स असाधारण हैं और दिलचस्पी बनाए रखते हैं लेकिन ज्यादातर ये फ़िल्म डरावनी ज्यादा लगती है । रविंदर रंधावा के डायलॉग्स सरल हैं और कुछ स्थानों पर तीखे भी हैं ।
जी अशोक का निर्देश सरल और कमर्शियल है । यह फ़िल्म ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए बनाई गई है और ये फ़िल्म में शुरू से आखिर तक नजर आता है । कुछ सीन काफ़ी अच्छे से सोचे और निष्पादित किए गए हैं । इसके अलावा उन्होंने भव्यता और डर का माहौल दोनों बखूबी संभाला है । लेकिन इसके विपरीत, फ़िल्म में कई सारी सिनेमाई स्वतंत्रताएं है । ऑरिजनल फ़िल्म में भी कई सारी कमियां थी लेकिन उन कमियों को अनुष्का शेट्टी के बेहतरीन परफ़ोर्मेंस ने कवर कर दिया । ऐसा परफ़र्मोंस यहां मिसिंग हैं । निर्देशक ऑरिजनल फ़िल्म से कुछ अलग करने की कोशिश करते हैं जिसका सबूत फ़िल्म के अंत में मिलता है । काश कि वह फ़िल्म की कमियों को समझ पाते । इसके अलवा भागमती सिर्फ़ 2 घंटे 17 मिनट लंबी थी लेकिन दुर्गामती 2 घंटे 35 मिनट लंबी है । निर्माताओं को आदर्श रूप में फ़िल्म की अवधि को मूल रूप में रखना चाहिए ।
दुर्गामती का पहला सीन, जिसमें गांववाले रहस्यमयी तरीके से मर रहे हैं, ये देखना बी-ग्रेड फ़िल्म जैसा लगता है । जब ईश्वर प्रसाद की एंट्री होती है, तब फ़िल्म बेहतर होती है । चंचल का परिचय और अभय सिंह के साथ उनका तालमेल फ़िल्म में ड्रामा जोड़ता है । इंटरमिशन प्वाइंट जहां चंचल दुर्गामती बनती है, और वो सीन जिसमें दुर्गामती मनोचिकित्सक (अनंत नारायण महादेवन) से बात करती है, काफ़ी बांधे रखने वाला है । लेकिन यहां से फ़िल्म बिखरने लगती है । फ़िल्म में डर का मंजर काफ़ी खींचा जाता है । क्लाइमेक्स में एक जबरद्स्त मोड़ आता है जिसका अंदाजा शायद ही कोई लगा पाएगा । इसी के साथ यह कई सवाल भी उठाता है । फ़िल्म एक हिंट के साथ खत्म होती है कि इसका अगला भाग भी आ सकता है ।
भूमि पेडनेकर अपना बेस्ट करने की पूरी कोशिश करती हैं और उन दृश्यों में छा जाती हैं जहां वह आईएएस अधिकारी की भूमिका निभा रही हैं । लेकिन जब वह भूत के रूप में बदला लेती हैं तो उनका अभिनय निराश करता है । ऑरिजनल फ़िल्म भागमती में अनुष्का शेट्टी ने इस मामले में काफ़ी बेहतरीन प्रदर्शन दिया था । लेकिन भूमि का अभिनय उनके आस-पास भी नहीं दिखता । अरशद वारसी अपने हिस्से को बखूबी निभाते हैं । उन्हें अलग-अलग अवतार में देखना अच्छा लगता है । माही गिल काफ़ी प्रभावशाली है । हिंदी बोलते समय जिस तरह से उनका व्याकरण गलत लगता है उसे देखना मनोरंजक है । करण कपाड़िया आमना-सामना वाले सीन में अच्छा प्रदर्शन करते हैं लेकिन कहीं कहीं वह निराश करते हैं । जिशु सेनगुप्ता भरोसेमंद हैं । अनंत नारायण महादेवन सिर्फ एक सीन के लिए हैं लेकिन इसके बावजूद अपनी छाप छोड़ते हैं ।
फिल्म में बस एक ही गाना है, 'बरस बरस' जो काफ़ी अच्छा है । जेक्स बेजॉय का बैकग्राउंड स्कोर नाटकीय है और थीम सॉन्ग डरावना हैं ।
कुलदीप ममानिया की सिनेमैटोग्राफी प्रभावशाली है । कैमरामैन भव्यता को बहुत अच्छी तरह से दर्शाता है। तारिक उमर खान का प्रोडक्शन डिजाइन शानदार है । हवेली बहुत अच्छी तरह से बनाई गई है । प्रियंका मुंदडा की वेशभूषा परफ़ेक्ट है । निशांत अब्दुल खान के एक्शन थोड़े खून-खराबे वाले हैं खासकर सेकेंड हाफ़ में । ixelloid Studios का VFX ठीक है । उन्नीकृष्णन पी पी का संपादन बेहतर हो सकता था क्योंकि फिल्म बहुत लंबी है ।
कुल मिलाकर, दुर्गामती एक दिलचस्प कहानी से सजी फ़िल्म है जिसमें कई अप्रत्याशित ट्विस्ट और मनोरंजक सीन्स देखने को मिलते हैं खासकर सेकेंड हाफ़ में । लेकिन सिनेमाई स्वतंत्रता फ़िल्म के प्रभाव को कम कर दे्ती है । इसके अलावा भूमि पेडनेकर का अभिनय ऑरिजनल फ़िल्म भागमती की लीड एक्ट्रेस अनुष्का शेट्टी के आसपास भी नजर नहीं आता । यह आलोचना का अहम कारण हो सकता है ।