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भारतीय समाज में, एक बड़ी उम्र के आदमी के साथ एक छोटी उम्र की महिला की शादी को पूरी तरह से स्वीकार्य माना जाता है । हालांकि, ऐसी स्थिती में कई तरह के नियम और शर्तें विशेष रूप से लागू होती हैं यदि दोनों के बीच की उम्र का अंतर काफी है । इस तरह की शादियां वैसे तो आम बात है लेकिन ये कई लोगों के लिए चर्चा का कारण भी बनती है । लव रंजन, जो विचित्र रॉम-कॉम फ़िल्मों को बनाने के लिए जाने जाते हैं, ने इस मुद्दे को बहुत ही स्मार्ट तरीके से उठाया है अपनी इस हफ़्ते रिलीज हुई फ़िल्म दे दे प्यार दे, में । लेकिन इस बार वह सिर्फ लेखक और निर्माता हैं क्योंकि इस फ़िल्म का निर्देशन डेब्यू डायरेक्टर अकिव अली ने किया है । तो क्या, दे दे प्यार दे, दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब होगी, ठीक उसी तरह जिस तरह लव रंजन हुए अपनी पिछली फ़िल्मों में ? या यह दर्शकों का मनोरंजन करने में विफ़ल होंगे ? आइए समीक्षा करते है ।

De De Pyaar De Movie Review: फ़ुल पैसा वसूल है अजय देवगन की दे दे प्यार दे

दे दे प्यार दे एक असामान्य प्रेम कहानी है । 50 वर्षीय आशीष (अजय देवगन) लंदन में अकेला रहता है । वह अपनी पत्नी मंजू (तब्बू) से अलग हो गया है । एक दिन एक कॉमन फ़्रेंड की शादी में, वह 26 साल की आयशा (रकुल प्रीत सिंह) से मिलता है । आयशा काफ़ी जिंदादिल और नए जमाने की लड़की है । आशीष को आयशा से प्यार हो जाता है । वहीं आयशा भी आशीष पर फ़िदा हो जाती है । कुछ ही समय में, दोनों एक दूसरे के बेहद करीब आ जाते है । जब शादी की बात आती है तो आशीष थोड़ा हिचकिचाता है लेकिन फ़िर उसे एहसास होता है कि वह आयशा के बिना रह नहीं सकता है और उससे बहुत प्यार करता है इसलिए वह शादी के लिए मान जाता है । और इसके बाद आशीष आयशा को अपने माता-पिता की मंजूरी लेने के लिए भारत में अपने होम टाउन, मनाली लेकर जाता है । वह अपने आने की सूचना किसी को नहीं देने का फ़ैसला करता है और जैसे ही वह वहां पहुंचता है , हंगामा मच जाता है । आशीष सालों से अपने परिवार के संपर्क में नहीं हैं और इसलिए उनके परिवार में मौजूद उनकी पत्नी मंजू, बेटी इशिता (इनायत), बेटा ईशान (भविन भानुशाली), पिता (आलोक नाथ) और मां (मधुलाल कपूर) शामिल हैं, उन्हें देखकर चौंक जाते हैं । इशिता ने अपने होने वाले ससुराल में बताया कि उसके पिता आशीष अब इस दुनिया में नहीं है । वहीं आशीष देखता है कि उसके आने से कितनी मुसीबत खड़ी हो गई है । इसके बाद आगे क्या होता है ये आगे की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

लव रंजन की कहानी मनोरंजक है और काफी प्रगतिशील और परिपक्व भी है । वह एक बहुत ही महत्वपूर्ण संदेश देते हैं लेकिन इसी के साथ वे इसे कई मनोरंजक और मजेदार दृश्यों के साथ दिलचस्प बनाए रखते है । लव रंजन, तरुण जैन और सुरभि भटनागर की पटकथा भी सही और बहुत प्रभावी है । फिल्म में हर मिनट इतना कुछ होता है कि 135 मिनट की अवधि के दौरान, कोई भी व्यक्ति ऊब नहीं पाता है । कुछ सीक्वंस समझ के परे हैं > तरुण जैन और लव रंजन के डायलॉग्स बहुत ही उम्दा, मजाकिया और मजेदार हैं । लिंगो आज की पीढ़ी का है और वह ताज़ा है । हालाँकि गालियों को म्यूट किया गया है ।

अकीव अली का निर्देशन काफी अच्छा है और एक फर्स्ट-टाइमर के रूप में, यह बहुत ही सराहनीय है कि उन्होंने फिल्म और इसके कथानक को संवेदनशीलता और कौशल के साथ संभाला है । असामान्य रूप से एक बड़े उम्र के अंतराल कॉंसेप्ट के कारण ये फ़िल्म भारतीय दर्शकों के लिए थोड़ी बोल्ड है । इसके अलावा रक्षा बंधन वाला सीन भी त्यौरियां चढ़ा सकता है । ऐसा ही कुछ क्लाइमेक्स से ठीक पहले होता है । इसके कारण सिनेप्रेमियों का एक वर्ग असहज हो सकता है । लेकिन अकीव के निर्देशन के साथ लेखन यह सुनिश्चित करता है कि इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा और इसे सही भावना से देखा जाएगा । साथ ही, यह बदलते समय को दर्शाता है ।

दे दे प्यार दे की शुरूआत काफ़ी जबरदस्त तरीके से होती है । आयशा की एंट्री हॉट स्मोकिंग है और जिस तरीके से वह आशीष के लिए फ़ीलिंग्स रखती हैं, यह समझने योग्य है । सनी सिंह (आकाश) का ट्रैक मज़ेदार है । फ़र्स्ट हाफ़ का सरप्राइज तब आता है जब फ़ि्ल्म से हंसी गायब हो जाती है और कहानी आगे बढ़ती है । हालांकि इससे फ़िल्म बोर नहीं होती है बल्कि दर्शकों को इस बात का एहसास कराया जाता है कि ये महज कॉमेडी फ़िल्म नहीं है । इंटरमिशन प्वाइंट ताली बजाने योग्य है जो अहम मोड़ पर आता है । और जब सेकेंड हाफ़ में आशिष आवेश में आता है, फ़िल्म अलग ही स्तर पर चली जाती है । साथ ही दर्शकों की आंखे भी नम हो जाती है । जब आशीष लिव-इन रिलेशनशिप के लिए शर्त लगाता है, यह बहुत अच्छा है । लेकिन सबसे अच्छा सीन क्लाइमेक्स से ठीक पहले के लिए बचाकर रखा जाता है । कुछ उम्मीद से परे सीन यहां देखने को मिलते है । फ़िल्म का अंत बहुत अच्छे नोट पर होता है और यहां इसके सीक्वल की एक हिंट भी मिलती है ।

अजय देवगन बेहद सुंदर परफ़ोरमेंस देते हैं और अपने किरदार को बहुत संतुलित तरीके से निभाते है । कॉमेडी फ़िल्मों में अजय [गोलमाल सीरिज] अपने बेहतरीन प्रदर्शन के लिए जाने जाते है । लेकिन दे दे प्यार दे, जो कॉमेडी और इमोशन से भरी है, में अजय इस बात को अच्छे से समझते हैं और संतुलित परफ़ोरमेंस देते है । शुरूआती सीन में वह बिना किसी डायलॉग के अपनी आंखों से बहुत कुछ बोलते है और यह जबरदस्त प्रभाव डालता है । सिंघम का ये प्यारा सा अवतार दर्शकों को जरूर पसंद आएगा । रकुल प्रीत सिंह एक स्टार की तरह छा जाती हैं और ये उनका सबसे पसंदीदा काम होगा बॉलीवुड में । वह हॉट बॉम्बशेल और परफॉर्मेंस के लिहाज से बहुत कॉन्फिडेंट दिखाई देती हैं । वास्तव में, वह फ़र्स्ट हाफ़ में पूरी तरह से छाई हुई रहती है । और सेकेंड हाफ़ में तब्बू पूरी तरह से छा जाती है । उन्होंने अपना किरदार बहुत ही अच्छी तरह से निभाया है और उनका हुनर उनके किरदार को और भी खूबसूरत बनाता है । अंधाधुन के बाद उनके किरदार को लोगों द्दारा खूब पसंद किया जाएगा । कुछ सीन में जिमी शेरगिल हंसी लेकर आते है हालांकि कुछ सीन में उनका किरदार जबरदस्ती का जो्ड़ा गया लगता है । लगता है आलोक नाथ लव की पिछली फिल्म सोनू के टीटू की स्वीटी [2018] के सेट से नींद में चलते हुए आ गए है । इसमें कोई शक नहीं कि वह फ़नी है । कुमुद मिश्रा फ़िल्म में बहुत कुछ जोड़ती है । इनायत थोड़ी लाउड लगती है लेकिन ये उनके किरदार की जरूरत थी । कहीं-कहीं वह बोर भी लगती है । भाविन भानुशाली प्यारी लगती है और उनका किरदार मैडनेस को जोड़ता है । जावेद जाफ़री (समीर) और सनी सिंह फ़र्स्ट हाफ़ में हँसी का योगदान करते हैं । मधुमालती कपूर और राजवीर सिंह ठीक हैं ।

गाने चार्टबस्टर किस्म के नहीं हैं लेकिन फिल्म में काम करते हैं । 'वड़ी शराबन' अपने चित्रांकन, स्थिति और कोरियोग्राफी (बॉस्को सीज़र) के कारण सभी में सबसे अच्छा है । 'दिल रोई जाए' इसके बाद अच्छा है और अरिजीत सिंह की आवाज में गाया गया गाना भी अच्छा है । 'मुखड़ा वे के' फुट-टैपिंग है, 'चले आना' मधुर है, जबकि 'तू मिला तो है' मधुर है । 'हाउली हूली' अंत में प्ले किया जाता है । हितेश सोनिक का पृष्ठभूमि स्कोर मनोरंजन को और बढ़ाता है ।

शशांक तेरे का प्रोडक्शन डिजाइन समृद्ध और आकर्षक है । निहारिका भसीन खान और अकी नरुला की वेशभूषा ग्लैमरस हैं, विशेष रूप से रकुल प्रीत द्वारा पहनी गई । यहां तक कि अजय और तब्बू को अच्छी तरह से स्टाइल किया गया है । चेतन एम सोलंकी का संपादन सराहनीय है क्योंकि फिल्म की गति न तो बहुत तेज है और न ही खींचने वाली है ।

दे दे प्यार दे रिव्यू :

कुल मिलाकर, दे दे प्यार दे हंसी के पलों व दमदार इमोशंस, जो इसकी यूएसपी है, के साथ पैसा वसूल फ़िल्म है । इस फ़िल्म में बॉक्सऑफ़िस पर अच्छा प्रदर्शन करने की पूरी क्षमता है और लोगों द्दारा की गई तारीफ़ इसके काफ़ी काम आएगी । इसे जरूर देखिए ।