फ़िल्म :- दे दे प्यार दे 2

कलाकार :- अजय देवगन, आर माधवन, रकुल प्रीत सिंह

निर्देशक :- अंशुल शर्मा

रेटिंग :- 4/5

De De Pyaar De 2 Movie Review: सॉलिड एंटरटेनमेंट देती है दे दे प्यार दे 2 ; अजय देवगन की फ़िल्म में आर माधवन बने हाईलाइट बिना स्पॉइलर के दे दे प्यार दे 2 का प्लॉट :-

दे दे प्यार दे 2, एक ऐसे आदमी की कहानी है जो अपनी गर्लफ्रेंड के माता-पिता को मनाने की कोशिश करता है। पहली फिल्म की घटनाओं के बाद आशीष मेहरा (अजय देवगन) लंदन में आयशा खन्ना (रकुल प्रीत सिंह) के साथ लिव-इन में रहने लगता है। छह महीने बाद आयशा अपने भाई रोहन (तरुण गहलोत) और उसकी पत्नी किट्टू (इशिता दत्ता) के बच्चे के जन्म के मौके पर चंडीगढ़ जाती है। आयशा को लगता है कि यह सही समय है जब वह अपने पिता राकेश (आर. माधवन) और मां अंजू (गौतम‍ी कपूर) को बता दे कि वह एक ऐसे व्यक्ति को डेट कर रही है जो उससे 24 साल बड़ा है। लेकिन इससे पहले कि वह खुद कुछ कहे, किट्टू जल्दबाज़ी में राकेश और अंजू को आयशा के रिलेशनशिप के बारे में बता देती है। आयशा बस इतना बताती है कि उसका बॉयफ्रेंड उससे बड़ा है। माता-पिता सोचते हैं कि उम्र का अंतर कुछ सालों का होगा और वे आशीष से मिलने के लिए तैयार हो जाते हैं। जैसा उम्मीद थी, उन्हें झटका तब लगता है जब उन्हें पता चलता है कि आशीष उनकी कल्पना से कहीं ज्यादा उम्रदराज़ है। यह बात आयशा और राकेश के बीच तनाव पैदा कर देती है। पिता के व्यवहार से नाराज़ आयशा अपना घर छोड़कर चली जाती है और अपने माता-पिता के बिना ही आशीष से शादी करने का सोचने लगती है। फिर इसके बाद आता है असली ट्विस्ट, जिसे देखने के लिए पूरी फ़िल्म देखनी पड़ेगी ।

दे दे प्यार दे 2 मूवी रिव्यू :

लव रंजन की कहानी ओरिजिनल है, और इसमें कई दिलचस्प ट्विस्ट और टर्न्स मौजूद हैं। साथ ही, उनकी ट्रेडमार्क स्टाइल भी साफ झलकती है। तरुण जैन और लव रंजन की स्क्रीनप्ले में हास्य और ड्रामा की भरपूर खुराक है, हालांकि दूसरा हाफ थोड़ा अविश्वसनीय सा महसूस होता है। तरुण जैन और लव रंजन के डायलॉग्स फिल्म की सबसे मजबूत कड़ियों में से एक हैं। कई जगहों पर पिछली फिल्मों और टीवी शोज़ के रेफरेंस दर्शकों को खूब हंसाएंगे।

अंशुल शर्मा का निर्देशन मनोरंजक है। वे फ्रेंचाइज़ी को अच्छी तरह आगे बढ़ाते हैं और यह भी सुनिश्चित करते हैं कि सीक्वल का टोन पहले पार्ट जैसा ही रहे। फिल्म कहीं भी खिंचती नहीं और न ही स्लो लगती है । हर सीन में कुछ न कुछ हो रहा होता है। दिलचस्प बात यह है कि पहले हाफ में कोई गाना नहीं है। आमतौर पर इंटरवल से पहले का हिस्सा हल्के-फुल्के मज़े के लिए होता है और बाद में ड्रामा आता है, लेकिन दे दे प्यार दे 2 का फर्स्ट हाफ कॉमेडी और कॉन्फ्रंटेशन का मिक्स है, जो इसे मज़ेदार बनाता है। इंटरवल प्वॉइंट भी अच्छा है। इंटरवल के बाद कहानी में आदि (मीज़ान जाफ़री) की एंट्री के साथ पागलपन कई गुना बढ़ जाता है। आशीष और राकेश के बीच की बातचीत यादगार है।

कमियों की बात करें, तो सेकेंड हाफ काफी ज़्यादा अविश्वसनीय लगता है। ट्विस्ट भले ही अनएक्सपेक्टेड है और मेकर्स ने दर्शकों को कुछ नया देने की कोशिश की है, लेकिन इसका असर बंटा-बंटा सा रहेगा । कुछ दर्शक प्रभावित होंगे, जबकि बाकी इसे बिल्कुल बचकाना मानेंगे। फाइनल भाग में फिल्म बेहतर होती है, लेकिन इस हिस्से पर भी कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है। एक और कमजोरी है म्यूज़िक। ऐसी फिल्म में चार्टबस्टर गानों का होना ज़रूरी था।

परफॉरमेंस :

अजय देवगन हमेशा की तरह भरोसेमंद हैं। उनका स्क्रीन टाइम भले ही कम है, लेकिन शुरुआत से अंत तक उनकी मौजूदगी महसूस होती है। कई सीन में वे सिर्फ आंखों से भावनाएं बयां करते हैं, जो काफ़ी प्रभावी है। आर. माधवन  पूरी फ़िल्म की जान है और अपनी एक्टिंग से छा जाते हैं । ऐसा किरदार इतनी परफेक्शन से वही निभा सकते थे। रकुल प्रीत सिंह कई अहम सीन्स में छा जाती हैं। वे शानदार दिखती हैं और अपने करियर की बेहतरीन या शायद सबसे बेहतरीन परफॉर्मेंस देती हैं। मीज़ान जाफ़री भी अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ काम लेकर आए हैं। गौतम‍ी कपूर ने अच्छा सपोर्ट दिया है। जावेद जाफरी (रोनक) कमाल के हैं और खूब हंसी लाते हैं। इशिता दत्ता पहले हाफ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और अच्छा काम करती हैं। तरुण गहलोत को ज्यादा मौका नहीं मिलता। सहासिनी मुलाय (नानी) सिर्फ एक सीन में आते हुए भी शो चुरा लेती हैं। ग्रेसी गोस्वामी (तिया) और अन्वेशा विज (दिया) ठीक-ठाक हैं। अंकुर नैय्यर (बब्बी) को बिल्कुल वेस्ट कर दिया गया है।

संगीत और अन्य तकनीकी पहलू:

फिल्म के गाने लंबे समय तक याद नहीं रहेंगे, लेकिन कहानी में अच्छे से फिट बैठते हैं।
‘रात भर’ सबसे अच्छा ट्रैक है, उसके बाद ‘बाबुल वे’ का नंबर आता है। ‘3 शौक़’ और ‘आख़िरी सलाम’ औसत हैं। ‘झूम बराबर झूम’ एंड-क्रेडिट्स में दिखाया गया है। हितेश सोनिक का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म में कमर्शियल टच जोड़ता है। सुधीर के. चौधरी की सिनेमैटोग्राफी ठीक-ठाक है। समिधा वांगनू के कॉस्ट्यूम्स ग्लैमरस हैं, खासकर रकुल के आउटफिट्स। सुमित बसु और मनीषा मिश्रा की प्रोडक्शन डिजाइन थोड़ी थिएट्रिकल है।
चेतन एम. सोलंकी की एडिटिंग क्रिस्प और स्मार्ट है।

क्यों देंखे दे दे प्यार दे 2 ?

कुल मिलाकर, दे दे प्यार दे 2 अपनी दमदार परफॉर्मेंसेज़, रिलेटेबल कहानी और कॉमेडी व ड्रामा के एंटरटेनिंग कॉम्बो से दिल जीतती है । बॉक्स ऑफिस पर फिल्म के पास वीकेंड और उसके बाद भी टिके रहने और आगे बढ़ने की मजबूत संभावनाएं हैं । खासकर तब, जब इसके इमोशनल पहलू और कॉमिक मोमेंट्स को लेकर पॉज़िटिव वर्ड-ऑफ-माउथ तेजी से बढ़े।