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Review: बेल बॉटम बड़े पर्दे पर मनोरंजन करने के लिए परफ़ेक्ट फ़िल्म है । अक्षय कुमार, वाशु भगनानी और बेल बॉटम की पूरी टीम, महामारी के इस दौर में इतने बड़े स्केल की फ़िल्म बनाने और उसे सिनेमाघरों में रिलीज करने के लिए जबकि हर जगह सिनेमाघर खुले भी नहीं है, के लिए तारीफ़ के काबिल है । रेटिंग : 4 स्टार्स

बेल बॉटम एक जासूसी थ्रिलर फ़िल्म है, जो सच्ची घटना से प्रेरित है । 24 अगस्त 1984 को, ICC 691 फ्लाइट दिल्ली से उड़ान भरती है और हाईजैक हो जाती है । यह 7 साल में 5वां अपहरण है । अतीत में, अपहर्ताओं ने उनके विमान को लाहौर, पाकिस्तान में उतारा, जिसके बाद पाकिस्तानी अधिकारियों ने बातचीत की और यात्रियों के लिए एक सुरक्षित रिहाई प्राप्त करने में कामयाब रहे । इस बार भी फ्लाइट को अपहरण करके लाहौर ले जाया गया है । भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (लारा दत्ता) बातचीत के लिए पूरी तरह तैयार हैं । लेकिन उसे एक रॉ एजेंट अंशुल मल्होत्रा उर्फ बेल बॉटम (अक्षय कुमार) द्वारा रोक दिया जाता है । बेल बॉटम ने पिछले अपहरण की घटनाओं पर काफ़ी रिसर्च की है । उसे पूरा भरोसा है कि आईएसआई हाईजैक कांड का मास्टरमाइंड है । इंदिरा गांधी और उनकी कोर टीम पहले तो उन पर विश्वास नहीं करती । लेकिन वह उन्हें सच साबित करता है । इंदिरा गांधी को तब पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया-उल-हक का फोन आता है कि वे इंदिरा से पूछें कि क्या वह बातचीत को आगे बढ़ा सकते हैं । बेल बॉटम की सलाह पर इंदिरा जिया-उल-हक से बातचीत न करने को कहती हैं । पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस आचरण से बौखला जाते हैं । इसके बाद आईएसआई अपने सबसे अच्छे लोगों में से एक दलजीत सिंह उर्फ डोडी (ज़ैन खान दुर्रानी) को लाहौर से हाईजैक ऑपरेशन को संभालने के लिए भेजता है । बेल बॉटम के लिए, डोडी वह व्यक्ति है जिससे वह व्यक्तिगत रूप से घृणा करता है और जिसके साथ उसका एक अतीत भी रहा है । आगे क्या होता है, यह पूरी फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

Bellbottom Movie Review: मनोरंजन का फ़ुल डोज है अक्षय कुमार की बेल बॉटम

असीम अरोरा और परवेज शेख की कहानी शानदार और अच्छी तरह से रिसर्च की गई है । यह इतिहास की उस महत्वपूर्ण घटना को दर्शाती है जिसके बारे में बहुत से लोग नहीं जानते होंगे । असीम अरोरा और परवेज शेख की पटकथा प्रभावी और कसी हुई है । हालांकि फ़र्स्ट हाफ़ में फिल्म और भी टाइट हो सकती थी । डायलॉग सरल हैं जिसमें से कुछ सिनेमाघरों में उन्माद पैदा कर देंगे । लेकिन कुछ तकनीकी डायलॉग बड़े पैमाने पर दर्शकों के सिर के ऊपर से निकल सकते हैं ।

रंजीत एम तिवारी का निर्देशन बेहतरीन है और वह अपनी पिछली फिल्म लखनऊ सेंट्रल [2017] की तुलना में इस फ़िल्म में शानदार फॉर्म में लगते हैं । वह फिल्म को यथासंभव सरल और मनोरंजक रखने की पूरी कोशिश करते हैं । वह यह भी ध्यान रखते हैं कि यह एक कमर्शियल फिल्म है जिसे पूरे भारत के दर्शकों को देखने की जरूरत है । इस लिहाज से वह सफ़ल होते हैं। फर्स्ट हाफ में फिल्म एक्शन या तनावपूर्ण क्षणों से रहित है । फिर भी, वह यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि दर्शक फ़िल्म से बंधे रहें । फ़िल्म का सबसे बेहतरीन हिस्सा सेकेंड हाफ़ के लिए रिजर्व रहता है और क्लाइमेक्स फ़िल्म का सबसे अच्छा हिस्सा है । फ़िल्म की कमियों की बात करें तो, फ़र्स्ट हाफ़ हालांकि दिलचस्प है लेकिन यह थोड़ा और बेहतर हो सकता था । साथ ही, यह एक 3D फिल्म है लेकिन इसमें टिपिकल 3डी इफ़ैक्ट्स नहीं है ।

बेल बॉटम की शुरुआत हाईजैक की घटना से होती है । अक्षय कुमार की एंट्री शानदार है । फ्लैशबैक वाला हिस्सा ठीक है; ऐसा लग सकता है कि कहानी रुकी हुई है लेकिन यह दर्शकों को बेल बॉटम के अतीत को समझने में मदद करती है और वह रॉ में क्यों शामिल हुए इन सब सवालों के जवाब भी मिलते हैं । इंटरमिशन प्वाइंट ताली बजाने योग्य है । सेकेंड हाफ वह जगह है जहां एजेंट दुबई हवाई अड्डे पर पहुंचते हैं और अपने मिशन में सफल होने की पूरी कोशिश करते हैं । कुछ जगहों पर फिल्म फिसलती और खिंचती हुई सी लगती है लेकिन दूसरे घंटे के मध्य में यह फ़िर से रफ़्तार पकड़ लेती है । इस दौरान कहानी में दो ट्विस्ट आते हैं जो फ़िल्म के मजे को दोगुना कर देते हैं ।

उम्मीद के मुताबिक अक्षय कुमार बेहतरीन परफ़ोर्मेंस देते हैं । वह डैशिंग दिखते हैं और शानदार तरीके से अपना किरदार निभाते हैं । लारा दत्ता को शुरुआती क्रेडिट में श्रेय दिया जाता है और वह निश्चित रूप से फिल्म की ताकत में से एक है । उनके दृश्य नाटकीय हैं और जिसमें वह अपना सर्वश्रेष्ठ देती है । छोटे लेकिन अहम रोल में वाणी कपूर प्यारी लगती हैं । हुमा कुरैशी ठीक हैं, लेकिन उनका किरदार बिना बैक स्टोरी के आधा-अधूरा लगता है । ज़ैन खान दुर्रानी निगेटिव रोल में जंचते हैं । आदिल हुसैन शानदर लगते हैं, जबकि डेन्ज़िल स्मिथ को ज्याद स्कोप नहीं मिलता । डॉली अहलूवालिया (बेल बॉटम की मां) प्यारी लगती हैं । मामिक सिंह (आशु) अपने रोल में ठीक है ।

संगीत फिल्म में फिट नहीं बैठता । 'खैर मांग दे' और 'मरजावां' देखने में बहुत अच्छे हैं । फिल्म में 'सखियां 2.0' है ही नहीं । 'धूम तारा' थीम सॉन्ग की तरह है और कई दृश्यों को बढ़ाता है ।

डेनियल बी जॉर्ज का बैकग्राउंड स्कोर शानदार है और विंटेज फील देता है । परवेज शेख का एक्शन सीमित जरुर है लेकिन प्रभावशाली है । अमित रे और सुब्रत चक्रवर्ती का प्रोडक्शन डिजाइन बीते जमाने की याद दिलाता है । पोशाक वास्तविक सी लगती हैं । वाणी ने जो पहना है वह आकर्षक है। वीएफएक्स कुल मिलाकर संतोषजनक है, हालांकि कुछ दृश्य उतने वास्तविक नहीं हैं जितने होने चाहिए । चंदन अरोड़ा की एडिटिंग साफ-सुथरी है ।

कुल मिलाकर, बेल बॉटम बड़े पर्दे पर मनोरंजन करने के लिए परफ़ेक्ट फ़िल्म है । अक्षय कुमार, वाशु भगनानी और बेल बॉटम की पूरी टीम, महामारी के इस दौर में इतने बड़े स्केल की फ़िल्म बनाने और उसे सिनेमाघरों में रिलीज करने के लिए जबकि हर जगह सिनेमाघर खुले भी नहीं है, के लिए तारीफ़ के काबिल है । फ़िल्म इंडस्ट्री को एक बार फ़िर से पटरी पर लाने के लिए यकीनन यह एक सराहनीय कदम है ।