बॉलीवुड की फ़िल्मों का लगातार बॉक्स ऑफ़िस पर फ़्लॉप होना और वहीं साउथ की फ़िल्मों का न केवल साउथ बल्कि हिंदी बेल्ट में भी अच्छी कमाई करना, एक बार फ़िर बॉलीवुड वर्सेस साउथ के मुद्दे को हवा दे गया है । बॉलीवुड के शो-मैन कहे जाने वाले फ़िल्ममेकर सुभाष घई ने हाल ही में बॉलीवुड हंगामा के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में साउथ वर्सेस बॉलीवुड पर खुलकर बात की । सुभाष घई ने बताया कि क्यों आज के दौर की बॉलीवुड फ़िल्में साउथ फ़िल्मों की तुलना में अच्छा बिजनेस नहीं कर पा रही हैं ।

EXCLUSIVE: बॉलीवुड वर्सेस साउथ डिबेट पर सुभाष घई ने खुलकर कहा, “बॉलीवुड फ़िल्में साउथ फ़िल्मों की तुलना में अच्छा बिजनेस नहीं कर पा रही हैं क्योंकि यहां अब स्टार्स को गॉड बना दिया है”

साउथ वर्सेस बॉलीवुड पर खुलकर बोले सुभाष घई 

सुभाष घई ने स्टार सिस्टम पर बात करते हुए कहा कि बॉलीवुड में स्टूडियोज़ और इंवेस्टर्स ने स्टार्स को गॉड बना दिया है जो सही नहीं है । इंटरव्यू के दौरान जब सुभाष घई से पूछा गया कि, आज के समय में बॉलीवुड में डायरेक्टर को कितना पावर है ? इसके जवाब में सुभाष घई ने कहा, “आज हम मुंबई में बैठकर इस बात को लेकर रो रहे हैं कि हिंदी सिनेमा को, साउथ इंडियन सिनेमा डोमिनेट कर रहा है यानी पछाड़ रहा है । लेकिन क्या हमने कभी उसका कारण जाना । कारण इसका एक ही है और वो ये है कि साउथ में जितनी भी फ़िल्में बनीं है उसमें आप देख सकते हैं कि ये डायरेक्टर की फ़िल्म है ।

स्टार कास्ट हो या नॉन स्टारकास्ट हो । स्टार कास्ट पुष्पा में भी है, आरआरआर में भी है लेकिन मैं देख सकता हूं की इसमें एक्टर ने डायरेक्टर को पूरा फोलो किया है । डायरेक्टर ने भी पूरी फ़िल्म की स्क्रिप्ट को फोलो किया है । डायरेक्टर ने अपने काम पर पूरा ज़ोर लगा दिया है । 

स्टार्स को गॉड बना दिया है

 सुभाष घई ने आगे कहा कि, “साउथ इंडिया की जो फ़िल्म इंडस्ट्री है वहां स्टार्स अपने डायरेक्टर को भगवान की तरह ट्रीट करते हैं । उन्हें अपने डायरेक्टर के विजन पर विश्वास होता है । लेकिन आज बॉलीवुड की जो दशा हो गई है वो ये है की, स्टूडियोज़ और इंवेस्टर्स ने स्टार्स को गॉड बना दिया है । जब स्टार्स को गॉड बना दिया तो एक्टर को लगता है की उसकी वजह से वो प्रोजेक्ट बना है तो फिर स्टार्स अपने तरीक़े से प्रोजेक्ट को गाइड करते हैं  

हालत ये हो जाती है, कि फिर स्टार ही फ़िल्म की कास्टिंग, म्यूज़िक, आउटडोर शूटिंग से लेकर फ़ाइनल एडिटिंग भी वही डिसाइड करता है । हमारे दौर यानी 90 के दशक से लेकर 2001 तक स्टार्स को एडिटिंग रूम में आने की परमिशन नहीं थी । राजकपूर से लेकर मनोज कुमार तक जितने भी एक्टर्स थे वे कभी एडिटिंग में दख़ल नहीं देते थे ।  दिलीप कुमार साहब ने इतनी फ़िल्में की कभी उन्होंने ये नहीं कहा की मुझे फ़िल्म की एडिटिंग दिखाओ । ये कल्चर था 1960 से लेकर 2005 तक ।