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भारत में प्यार में पड़ना, मतलब की कई सारी समस्याओं को न्यौता देना है । ये बात खासकर वहां एकदम सटीक बैठती है जहां प्रेमी-प्रेमिका अलग जाति, धर्म या हैसियत के हों । भारत में आज भी कई जगहों पर ऑनर किलिंग विद्यमान है,और मीडिया में ऐसे कई मामले सामने भी आए हैं और आते हैं लेकिन इसकी संख्या में कहीं भी कमी नहीं हुई है । इसलिए ये मुद्दा इतना हैरान नहीं करता है । जब नागराज मुंजाल ने साल 2016 में मराठी फ़िल्म सैराट को दर्शकों के लिए पेश किया तो ये दर्शकों के दिल में उतर गई और नतीजतन ये एक ब्लॉकबस्टर फ़िल्म साबित हुई । ये फ़िल्म न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे भारत देश में चर्चा का विषय बन गई, और फ़िर हिंदी फ़िल्ममेकर शशांक खेतान, जिसने हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया [2014], बद्रीनाथ की दुल्हनिया [2017] जैसी हिट फ़िल्में बनाई, ने इस मराठी फ़िल्म के हिंदी वर्जन को बनाने का फ़ैसला किया । इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई शशांक खेतान द्दारा निर्देशित फ़िल्म धड़क, सैराट का ही हिंदी रीमेक है । इस फ़िल्म के साथ दिवंगत अभिनेत्री श्रीदेवी की बेटी जाह्नवी कपूर अपना डेब्यू कर रही है । तो क्या धड़क दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब होगी या यह ऑरिजनल सैराट से भी बेहतर होगी ? या यह सभी उम्मीदों पर पानी फ़ेर देगी, आइए समीक्षा करते हैं ।

फ़िल्म समीक्षा : धड़क

धड़क ऐसे दो नौजवानों की कहानी है, जो जाति के वर्गीकरण के प्रतिबंधों के खिलाफ़ भी एक दूसरे के प्यार में पड़ जाते हैं । मधुकर बागला (ईशान खट्टरर) उदयपुर, राजस्थान में निचली जाति से संबंधित है । लेकिन उसे उच्च जाति के राजनेता रतन सिंह (आशुतोष राणा) की बेटी पार्थवी सिंह (जाह्नवी कपूर) से प्यार हो जाता है । पार्थवी काफ़ी भयभीत करने वाली शख्सियत है लेकिन वह मधुकर के सामने कभी यह नहीं जताती कि वह भी उसके लिए कुछ फ़ीलिंग रखती है । पार्थवी मधुकर की बहादुरी से काफ़ी प्रभावित हो जाती है खुलकर अपने प्यार का इज़हार करती है । लेकिन समस्या तब शुरू होती जब पार्थवी के भाई गोदान कुमार (रूप कुमार) के जन्मदिन की पार्टी होती है, तब रतन सिंह पार्थवी और मधुकर को रंगे हाथो पकड़ लेता है । मधुकर और उसके दोनों दोस्त श्रीधर वत्सर (पुरुषोत्तम) और गोकुल (अंकित बिष्ट) को पुलिस अपनी हिरासत में ले लेती है और पार्थवी को उसके पिता घर मेंनजरबंद कर देते हैं । लेकिन पार्थवी कैसे भी करके पुलिस स्टेशन पहुंच जाती है और मधुकर और उसके दोस्तों को भगाने में कामयाब होती है । मधुकर और पार्थवी बचकर कोलकाता भाग निकलते हैं और एक नए सिरे से अपनी जिंदगी शुरू करते हैं । इसके बाद उनकी जिंदगी में क्या-क्या अड़चनें आती है ये पूरी फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

धड़क, सैराट (नागराज पोपटराव मंजुले द्वारा लिखित और निर्देशित की गई है ) से ली गई फ़िल्म है । शशांक खेतान की कहानी मामूली से मोड़ के साथ मराठी ब्लॉकबस्टर सैराट के समान ही है । शशांक खेतान की पटकथा काफ़ी प्रभावशाली है । इसकी पटकथा के बारें में सबसे अच्छी बातों में से एक यह है कि यह सैराट से काफ़ी छोटी है । हालांकि इसका प्रभाव कमोबेश समान ही है । सेकेंड हाफ़ में, यह फ़िल्म थोड़ी धीमी हो जाती है लेकिन फिर कठिनाइयों को प्रदर्शित करना आवश्यक था । शशांक खेतान का निर्देशन फ़िल्म की स्क्रिप्ट के साथ अच्छे से मेल खाता है । यह फ़िल्म को बहुत जमीनी रखता है और उससे संबंधित कहानी को बताता है । कुछ सीन में, तो वह फ़िल्म को एक अलग ही स्तर पर ले जाते हैं । उदाहरण के लिए, जैसे मधुकर और पार्थवी कोलकाता की सड़क पर एक दूसरे के साथ झगड़ते हैं, यह काफ़ी अच्छे तरीके से फ़िल्माया गया है । वहीं क्लाइमेक्स सीन भी । शशांक खेतान के डायलॉग्स काफ़ि साधारण और मजेदार हैं और जरूरत के मुताबिक काफ़ी एसिडिक हैं ।

हालांकि धड़क मराठी ब्लॉकबस्टर फ़िल्म सैराट का ऑफ़िशियल हिंदी रीमेक है, इसलिए किसी को भी यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि उसका एक-एक सीन फ़िर से बनाए जाए । नतीजतन इसमें कई सारे बदलाव किए गए हैं । यहां तक की जिसने सैराट देखी है वो भी इसे देखकर सरप्राइज हो जाएंगे । फ़िल्म की शुरूआत काफ़ी अच्छी होती है जिसमें एक खाने की प्रतियोगिता दिखाई जाती है जो बाद में काफ़ी दिलचस्प बन जाती है । जिस तरह से, मधुकर और पार्थवी की प्रेम कहानी आगे बढ़ती है, निश्चितरूप से दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान लेकर आएगी । दो सीन बहुत ही मजेदार हैं- जब मधुकर रात में पार्थवी की हवेली में उससे मिलने जाता है और दूसरा सीन, जब मधुकर अंग्रेजी में पार्थवी के लिए गाना गाता है । फ़िल्म,और भी ज्यादा रोमांचक हो जाती है जब रतन सिंह को पार्थवी और मधुकर के रोमांस के बारें में पता चलता है । इंटरवल के बाद, फ़िल्म की कहानी में थोड़ा बदलाव आता है और प्रेमी जोड़े को महसूस होता है कि प्यार इतना भी आसान नहीं है । लेकिन फ़िल्म के क्लाइमेक्स में बेहतरीन सीन आता है । इतना कह सकते हैं कि यह हैरान कर देने वाला है ।

ईशान खट्टर ने पहले ही अपनी पहली फ़िल्म,बीयोंड द क्लाउड्स में अपने शानदार अभिनय से सभी को प्रभावित कर दिया और धड़क के साथ, वह एक बार फ़िर साबित करते हैं कि वह इंडस्ट्री में निश्चितरूप से लंबी रेस के घोड़े हैं । वह कुछ सीन में तो बहुत आत्मविश्वासी और प्यारे लगते हैं जैसे, जब वो पूरी तरह से प्यार में डूबे हुए होते हैं, खासकर 'पहलि बार' गीत में । इमोशनल और नाटकीय सीन में भी वह काफ़ी प्रभावपूर्ण लगते हैं । जाह्नवी कपूर ने भी बराबरी से काफ़ी अच्छा काम किया है और स्क्रीन पर उनका आत्मविश्वास साफ़-साफ़ नजर आता है । वह ऐसे मुश्किल किरदार को भी बेहद सहजता के साथ निभाती हैं और यह किसी नवोदित कलाकार के लिए उपल्ब्धि है । निश्चितरूप से, उनके खून में अभिनय है । आशुतोष राणा काफ़ी नेचुरल लगते हैं जब वो नेगेटिव रोल में आते हैं और इस फ़िल्म में भी वह वैसा ही प्रभाव छोड़ते हैं । श्रीधर वात्सर बेहद मजेदार हैं और फ़िल्म में ढेर सारा हंसी का तड़का लगाते हैं । उन्हें नौजवानों व सिंगल स्क्रीन के दर्शकों द्दारा खूब पसंद किया जाएगा । अंकित बिष्ट अपने किरदार में जंचते हैं लेकिन ईशान और श्रीधर की मौजूदगी के सामने वह फ़ीके पड़ जाते हैं । गोदान कुमार खलनायक की भूमिका में जंचते है खासकर उस सीन में जब उनसे कॉलेज के प्रोफेसर से माफ़ी मांगने के लिए कहा जाता है, यह सीन एक अमिट छाप छोड़ता है । आदित्य कुमार (देवीलाल) के पास करने के लिए सीमित स्कोप था । इशिका गनेजा (अंबिका) सुंदर दिखती है और उन पर ध्यान जाता है । गोविंद पांडे (भगवानदास) मधुकर के पिता के रूप में अच्छे लगते हैं । शालिनी कपूर (आशादेवी) और ऐश्वर्या अविनाश (गायत्री) क्रमशः पार्थवी और मधुकर की मां के रूप में निष्पक्ष लगती हैं । मनीष वर्मा (अरविंद मामा) पास योग्य हैं जबकि खारज मुखर्जी (सचिन भौमिक) बहुत प्यारे लगते हैं और उन्हें पसंद किया जाएगा । शुभादेवी हर्षल चोकसी (प्रोमिला भोमिक) सुंदर दिखती है और आत्मविश्वासी भी । बालाजी गौरी (सुलेखाजी गोयनका) एक कैमियो में अपनी छाप छोड़ती हैं । विश्वनाथ चटर्जी (इंस्पेक्टर शेखावत) अपने रोल में छा जाते हैं ।

अजय-अतुल का म्यूजिक सुरमयी/मधुर है । फ़िल्म का टाइटल गीत दिल में उतर जाता है । 'झिंघाट' ने पहले ही अपनी जगह बना ली थी और फ़िल्म की रिलीज के बाद इसे और बढ़त हासिल करनी चाहिए । 'पहली बार' काफ़ी आत्मीय है और अच्छे से शूट किया गया है । 'वारा रे' को पृष्ठभूमि में अच्छी तरह से हटा दिया गया है । जॉन स्टीवर्ट एडुरी का बैकग्राउंड स्कोर शानदार है और फ़िल्म के प्रभाव को बढ़ाता है । विष्णु राव का छायांकन फिल्म के बारे में सबसे अच्छी चीजों में से एक है । उदयपुर की जगहों को ऐसे दिखाया गया है मानो इससे पहले कहीं न दिखाया गया हो । शशांक तेरे का प्रोडक्शन डिजाइन दृढ़ और आकर्षक है । मोनीशा आर बलदावा का संपादन स्लिक है । मनीष मल्होत्रा, नताशा चरक, निकिता मोहंती के परिधान प्रभावशाली हैं ।

कुल मिलाकर, धड़क एक सिंपल सी कहानी को बेहद खूबसूरती से गूंथी गई फ़िल्म है । आईकॉनिक फ़िल्म का रीमेक होने के बावजूद, यह अपने बूते एक पहचान बनाने में कामयाब होती है और दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करती है । बॉक्सऑफ़िस पर इस फ़िल्म को युवा एक जबरदस्त ग्रोथ देंगे और उनके द्दारा ये काफ़ी पसंद की जाएगी, जो इसकी वाणिज्यिक सफलता सुनिश्चित करेगा ।