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पिछले कई सालों से बॉलीवुड में शारीरिक कमियों जैसे-मोटापा, रंग, कद का न बढ़ना, जिसने आत्मसम्मान को झकझोर दिया, इत्यादि मुद्दों पर कई फ़िल्में बनी है । लेकिन गंजेपन पर बॉलीवुड में बमुश्किल ही फ़िल्में बनी है । और अब इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई है गंजेपन पर आधारित फ़िल्म उजड़ा चमन । इस फ़िल्म के साथ निर्माता अभिषेक पाठक निर्देशन की दुनिया में कदम रख रहे है । तो क्या ये फ़िल्म दर्शकों के दिल में जगह बना पाती है या यह अपने प्रयास में विफ़ल होती है ? आइए समीक्षा करते है ।

Ujda Chaman Review: इंप्रेस नहीं करती सनी सिंह की उजड़ा चमन

उजड़ा चमन एक ऐसी आदमी की कहानी है जिसे अपने लाइफ़ पार्टनर की तलाश है । चमन कोहली (सनी सिंह) दिल्ली के हंसराज कॉलेज में 30 वर्षीय लेक्चरर हैं । पिछले पांच वर्षों में चमन के अधिक संख्या में बाल झड़ गए जिसकी वजह से उसके आत्मसम्मान और शादी की संभावानों में रुकावट आ रही है । चमन के माता-पिता, शशि कोहली (अतुल कुमार) और सुषमा कोहली (ग्रुशा कपूर) ने उसकी शादी के बायोडेटा में उसकी पांच साल पुरानी तस्वीर डाल दी और जब वह एक भावी दुल्हन को देखने जाते हैं, तो वह एक टोपी पहन कर जाता है । लेकिन यहां उसकी टोपी उतर जाती है और लड़की वाले उसे और उसके परिवार को बाहर निकाल देते है । इसके बाद उनका ज्योतिष (सौरभ शुक्ला) उसे और उसके परिवार को ये कहकर डरा देता है कि यदि चमन अपने 31 वें जन्मदिन से पहले शादी नहीं करता है, तो वह जीवन भर ब्रह्मचारी रहेगा । अब चमन सीरियसली अपनी लाइफ़ पार्टरन को खोजने की तलाश में लग जाता है । वह अपनी कलिग व्याख्याता, एकता (ऐश्वर्या सखूजा) को लुभाने की कोशिश करता है, लेकिन वह उसके प्रपोजल को ठुकरा देती है क्योंकि वह पहले से ही किसी के साथ रिलेशनशिप में है । इसके बाद चमन अपने कॉलेज की फ़र्स्ट ईयर की स्टूडेंट आईना अली (करिश्मा शर्मा) में रुचि दिखाता है । आईना भी उसमें अपने स्वार्थ के चलते उसके साथ समय बिताती है लेकिन चमन को पता चल जाता है कि आईना अपने मतलब के लिए उससे जुड़ी हुई है । इसके बाद चमन अपने पापा के प्रपोजल को मान लेता है और टिंडर पर अपना अकाउंट ओपन करता है । इसके बाद आगे क्या होता है, ये आगे की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

उजड़ा चमन दरअसल, साल 2017 में आई कन्नड़ फ़िल्म ONDU MOTTEYA KATHE (लेखक: राज बी शेट्टी) की आधिकारिक रीमेक है । दानिश जे सिंह एक एडेप्टेड कहानी है और इसमें लोगों को आकर्षित करने की क्षमता थी लेकिन दानिश जे सिंह की स्क्रीनप्ले मजा खराब करता है । फ़िल्म की कहानी कहीं_कहीं बांधे रखने वाली है । दानिश जे सिंह के डायलॉग्स फ़नी और तथ्य से भरपूर हैं ।

अभिषेक पाठक का निर्देशन उतना योग्य नहीं है । निष्पादन थोड़ा बचकाना सा और समझ के परे लगता है । चमन जिस तरह से लगभग हर रोज छात्रों द्वारा उपहास की वजह बनता है क्योंकि उसके सिर पर बहुत कम बाल है । इसके अलावा निर्देशन स्टाइल सुसंगत नहीं है । सेकेंड हाफ़ अपने फ़र्स्ट हाफ़ से बहुत अलग लगता है । फ़िल्म में कुछ भी यूनिक नहीं होता है । इसके विपरीत फ़िल्म में कुछ सीन काम करते है ।

उजड़ा चमन की शुरूआत एक मजेदार नोट पर होती है और शुरूआती हिस्से बांधे रखने योग्य है । इस सीन में ह्यूमर जबरदस्ती का जोड़ा गया लगता है जहां चमन अपने भाई गोल्डी (गगन अरोड़ा) के साथ मारपीट करने का प्रयास करता है । शुक्र है कि आयना का ट्रैक बेहतर है, लेकिन फिर भी, फिल्म अपने हाई नोट पर नहीं पहुंचती है । सेकेंड हाफ़ दिलचस्प है और फिल्म यहां से आशाजनक लगती है । और सेकेंड हाफ़ के शुरूआती हिस्से काफ़ी मनोरंजक है क्योंकि यहां चमन और अप्सरा करीब आते है । लेकिन इसके बाद फ़िल्म में कुछ भी खास नहीं होता है । फ़ाइनल सीन क्यूट है लेकिन यह बहुत देर में आता है ।

सनी सिंह अपना सर्वश्रेष्ठ देते हैं लेकिन वांछित प्रभाव नहीं बनता है । जिस तरह से वह पूरी फिल्म में गंभीर और बेजान दिखाई देते हैं, यह पचा पाना मुश्किल होता है । यहां तक कि शुरुआत में उनका नरेशन अजीब सी आवाज में किया जाता है । मानवी गगरू काफी बेहतर करती हैं और नेचुरल लगती हैं । उसके मुद्दे और भविष्यवाणियाँ बहुत भरोसेमंद लगती हैं और वह अच्छी तरह से अपनी भूमिका निभाती है । ग्रुशा कपूर बहुत लाउड लगती हैं । गगन अरोरा पास करने योग्य हैं । करिश्मा शर्मा आवश्यकता के अनुसार अपनी भूमिका निभाती हैं । ऐश्वर्या सखुजा की शानदार स्क्रीन उपस्थिति है । शारिब हाशमी (राज) अच्छे हैं लेकिन दुख की बात है कि उनका ट्रैक अनुमानित है । सौरभ शुक्ला सख्ती से ठीक हैं ।

संगीत निराशाजनक है । केवल 'चांद निकला' ठीक है । बाकी के गाने जैसे- 'ट्विंकल ट्विंकल ', 'आउटफ़िट" भूलाने योग्य है । हितेश सोनिक का बैकग्राउंड स्कोर बहुत लाउड और नाटकीय है ।

सुधीर के चौधरी की सिनेमैटोग्राफी साफ-सुथरी है । तर्पण श्रीवास्तव का प्रोडक्शन डिज़ाइन फिल्म की सेटिंग के अनुरूप है । प्रीतिशील सिंह का मेकअप और प्रोस्थेटिक्स दोष रहित हैं । राहिल राजा और हिमांशी निझावन की वेशभूषा यथार्थवादी है । मितेश सोनी के संपादन में कई कमियां हैं क्योंकि फिल्म की लंबाई 120 मिनट है ।

कुल मिलाकर, उजड़ा चमन एक अच्छी और भरोसेमंद कहानी है लेकिन असंगत निष्पादन और पूर्वानुमानित कहानी फ़िल्म का मजा खराब करती है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म कम प्रचार, कम लोकप्रिय नाम के चलते संघर्ष करेगी ।