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निर्देशक बिजॉय नांबियार ने जब शैतान फ़िल्म से निर्देशन में अपना डेब्यू किया था तो हर कोई उनकी काबिलियत को देख हैरान था । इसके बाद उन्होंने डेविड और वजीर जैसी फ़िल्में बनाई लेकिन ये उम्मीद पर खरी नहीं उतर पाई । और अब एक बार फ़िर बिजॉय एक्शन थ्रिलर फ़िल्म, तैश के साथ वापस आए है । तो क्या तैश दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब होगी, या यह अपने प्रयास में विफ़ल हो जाएगी ? आइए समीक्षा करते हैं ।

Taish Movie Review: कैसी है पुलकित सम्राट, कृति खरबंदा और जिम सरभ की तैश, यहां जानें

तैश, ऐसे दो परिवारों की कहानी है जो एक-दूसरे को नष्ट कर देते हैं । रोहन कालरा (जिम सरभ) एक भारतीय मूल का ब्रिटेन निवासी है जो एक अस्पताल में जीपी के रूप में काम करता है । वह अरफा सईद खान (कृति खरबंदा) के साथ रह रहा है, जो पाकिस्तानी मूल की है । रोहन काम से छुट्टी लेकर अपने गांव जाता है अपने भाई कृष (अंकुर राठी) और माही (ज़ोआ मोरानी) की शादी में शामिल होने के लिए । रोहन चाहता है कि अरफा सईद खान भी उसके साथ शादी में चले लेकिन उसे डर है कि उसके पिता (इख्लाक खान) उनके रिलेशन को लेकर कैसे रिएक्ट करेंगे क्योंकि अरफ़ा एक मुस्लिम लड़की है । अरफ़ा बात समझ जाती है और वापस आ जाती है । रोहन घर लौटता है और उसकी मां (मोनिशा हसीन) उसे सिम्मी (मेलिसा राजू थॉमस) के साथ शादी करने के लिए कहती है । इस शादी में रोहन का सबसे अच्छा दोस्त सनी लालवानी (पुलकित सम्राट) भी शामिल होता है । वह आरफा को शादी में आने के लिए मना लेता है और रोहन के माता-पिता को उनके रिश्ते के बारे में सच्चाई भी बता देता है । सब ठीक चल रहा है लेकिन तभी सभी मिलकर जश्न मनाने पब जाते हैं । यहां, रोहन कुलजिंदर बराड़ उर्फ कुल्ली (अभिमन्यु सिंह) को देखता है । वह आपा खो देता है फ़िर उसे घर ले जाना पड़ता है । सनी ये सब देखकर हैरान होता है । इसके बाद रोहन कुछ राज खोलता है । जिसके बाद फ़िल्म में कई उतार-चढ़ाव आते है । जिन्हें देखने के लिए आपको फ़िल्म पूरी देखनी होगी ।

बिजॉय नाम्बियार की कहानी अच्छी है । कागज पर, यह एक महान थ्रिलर की तरह लग रही होगी । लेकिन अंजलि नायर, कार्तिक आर अय्यर, बिजॉय नाम्बियार और निकोला लुईस टेलर की पटकथाी इसके साथ पूरी तरह से न्याय नहीं करती है । कुछ दृश्यों को बहुत अच्छी तरह से लिखा गया है और सोचा गया है, लेकिन फिर ऐसे दृश्य भी हैं जो बहुत औसत हैं और बस स्क्रिप्ट की लंबाई को बढ़ाते हैं । गनजीत चोपड़ा और बिजॉय नांबियार के संवाद बहुत अच्छे नहीं हैं, लेकिन फ़र्स्ट हाफ में कुछ वन लाइनर काफी मजेदार हैं । हालांकि, पाली और आसपास के किरदारों के दृश्यों के लिए पंजाबी का उपयोग दर्शकों को सबटाइटल्स की जरूरत महसूस करा सकता है ।

बिजॉय नाम्बियार का निर्देशन बेहतर हो सकता था । इसमें कोई संदेह नहीं है कि तकनीकी रूप से वह काफी प्रतिभाशाली हैं और वह कई दृश्यों में प्रभाव बढ़ाने के लिए अपने ज्ञान और विशेषज्ञता का उपयोग करते हैं । लाल बत्ती का उपयोग विशेष रूप से शानदार है । कुछ दृश्य तो असाधारण हैं । हालांकि, वह पटकथा की कमियों को छुपाने में नाकाम होते हैं । पाली और उनका परिवार जिस तरह से काम करता है, वह भी ब्रिटेन में, समझ के परे है । उन्हें कानून का कोई डर नहीं है, यहां तक कि जब पाली जेल में होता है तो उसके पास सेल फोन तक की पहुंच होती है । यदि यह फ़िल्म ब्रिटेन की बजाए यूपी में बेस्ड होती तो ज्यादा वास्तविक लगती । फ़र्स्ट हाफ़ फ़िर भी ठीक है लेकिन सेकेंड हाफ़ तो पूरी तरह निराश करता है ।

तैश की शुरूआत काफ़ी रोमांचकारी है जिसमें पाली और कुल्ली के बीच के संघर्ष और संबंध को दर्शाया जाता है । इसके तुरंत बाद फ़िल्म का पूरा फ़ोकस कालरा फ़ैमिली पर चला जाता है जिसमें वे कैसे कृष और माही की शादी के लिए तैयारी करते हैं । यहां कुछ सीन देखने लायक हैं । फ़िल्म तब एक अलग लेवल पर चली जाती है जब सनी ने कुल्ली को बुरी तरह घायल कर देता है । कृष के निधन का दुखद सीन भी फ़िल्म के प्रभाव को बढ़ाता है । लेकिन यहां के बाद से फ़िल्म डगमगा जाती है । जैसे फ़िल्म की कहानी दो साले आगे बढ़ जाती है और रोहन बदल जाता है, ये पचा पाना थोड़ा मुश्किल है । हालांकि यहां कुछ सीन है जो ध्यान खींचते हैं जैसे सनी जेल में पाली को खत्म करने का प्रयास करता है और नाइट क्लब में क्लाइमेक्स से पहले वाला सीन । लेकिन अच्छे सीन कम ही है । फ़िनाले में कमी सी लगती है । 2 घंटे 22 मिनट की यह फ़िल्म काफ़ी लंबी लगती है ।

तैश, कुछ कलाकारों के शानदार पर्फ़ोर्मेंसेस से सजी है जिन्होंने स्क्रिप्ट से ऊपर उठकर अपना बेहतर देने की कोशिश की । जिम सरभ का स्क्रीन टाइम काफ़ी ज्यादा है और वह अपना बेस्ट करते हैं । अक्सर वह निगेटिव रोल ज्यादा करते दिखे हैं लेकिन यहां उन्होंने एक समझदार व्यक्ति का किरदार निभाया है जो उन पर जंचता है । हर्षवर्धन राणे डैशिंग दिखते हैं और पहले दर्जे का प्रदर्शन देते हैं । पुलकित सम्राट फिल्म का सरप्राइज है । इसमें वह एक आवेगी, जिद्दी आदमी की भूमिका निभाते हैं और आसानी से अपने किरदार में समा जाते हैं । वह वॉशरूप एक्शन सीन में छा जाते हैं । कृति खरबंदा काफ़ी स्टनिंग लगती हैं और एक प्रभावशाली प्रदर्शन देती हैं । संजीदा शेख बस ठीक है क्योंकि उनका किरदार ठीक से सामने नहीं आता । ज़ोआ मोरानी की एक अच्छी स्क्रीन उपस्थिति है । अंकुर राठे अच्छे लगते हैं । अभिमन्यु सिंह हमेशा की तरह भरोसेमंद हैं। मेलिसा राजू थॉमस ने एक अमिट छाप छोड़ी है । सौरभ सचदेवा (सुखी) का प्रदर्शन देखने लायक है । विराफ पटेल (शोज़ी) ठीक हैं लेकिन उनका किरदार कालरा के लिए कैसे जाना जाता है इसको नहीं बताया । अन्य कलाकार जो सभ्य हैं, वे हैं इख्लाक खान, मोनिशा हसेन, अरमान खेरा (जस्सी बराड़), सलोनी बत्रा (सनोबर बराड़), कुनिके सदानंद (बीजी), महावीर भुल्लर (ज्ञान जी), एकांशु कुमार शर्मा (सत्तू) और शिवांशु पांडे। इस्माइल) ।

संगीत निराश करता है । 'शहनाई बाजे दो', 'जागो' और 'सावन' थोड़ा ठीक हैं । गौरव गोदखिंडी और गोविंद वसंत का बैकग्राउंड स्कोर थोड़ा बेहतर है । हर्षवीर ओबराय की सिनेमैटोग्राफी उपयुक्त है । झकझोर देने वाला कैमरावर्क दिलचस्प है । इयान वान टेम्परले के एक्शन अच्छे हैं क्योंकि ये ज्यादा खूनखराबे वाले नहीं है । गोपिका गुलवाड़ी की वेशभूषा आकर्षक है विशेष रूप से शादी के सीक्वेंस के दौरान । मंदार डी नागांवकर का प्रोडक्शन डिजाइन समृद्ध है । प्रियांक प्रेम कुमार की एडिटिंग और थोड़ी टाइट हो सकती थी । फिल्म को 15 से 20 मिनट और छोटा होना चाहिए था ।

कुल मिलाकर, तैश दिलचस्प कहानी और कुछ शानदार परफ़ोर्मेंस पर टिकी हुई है । लेकिन कमजोर सेकेंड हाफ़ और जरूरत से ज्यादा लंबाई, फ़िल्म का प्रभाव काफ़ी हद तक कम कर देते हैं ।