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हॉलीवुड में जाने-माने निर्माता हार्वे वाइंस्टीन का यौन उत्पीडन मामला सार्वजनिक होने के बाद #MeToo आंदोलन ने जोर पकड़ा और इसकी आंधी भारत तक भी पहुंच गई । मीटू आंदोलन में कई बड़े चेहरे सामने आए और देखते ही देखते ये एक बड़ा और गंभीर मुद्दा बन गया । और अब इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई फ़िल्म सेक्शन 375 भी इसी आंदोलन से प्रेरित लगती है । तो क्या सेक्शन 375 दर्शकों पर प्रभाव छोड़ने में कामयाब होगी, या यह अपने प्रयास में विफ़ल होती है ? आइए समीक्षा करते है ।

Section 375 Movie Review: अक्षय खन्ना की दमदार एक्टिंग के साथ अहम मुद्दे उठाती है सेक्शन 375

सेक्शन 375, बलात्कार के आरोपी एक फिल्म निर्माता की कहानी है । अंजलि (मीरा चोपड़ा) एक फिल्म के सेट पर एक जूनियर पोशाक डिजाइनर है । अंजलि को निर्देशक रोहन खुराना (राहुल भट्ट) के घर जाकर उन्हें वेशभूषा दिखाने के लिए कहा गया । जब वह घर पहुंचती है तो वहां रोहन और उसकी नौकरानी मौजूद होती है । रोहन किसी बहाने घर से नौकरानी को भेज देता है और फिर अंजलि के साथ जबरदस्ती करता है । अंजलि अपने घर पहुंचती है और अपने परिवार को बताती है कि रोहन ने उसके साथ बलात्कार किया । उसी शाम, रोहन को उसके फिल्म सेट से गिरफ्तार कर लिया जाता है । सत्र न्यायालय ने रोहन को दोषी पाया और उसे दस साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई । रोहन की पत्नी काइनाज (श्रीश्रवा) बॉम्बे हाईकोर्ट में इस केस को दर्ज कराने के लिए क्रिमिनल वकील तरुण सलूजा (अक्षय खन्ना) से संपर्क करती है । तरुण रोहन का के स स्टडी करता है और महसूस करता है कि सत्र न्यायालय का फैसला अनुचित था । मामला उच्च न्यायालय में स्वीकार हो जाता है और फ़िर मुकदमा शुरू होता है । तरुण के शिष्या हीरल गांधी (ऋचा चड्ढा) सरकारी वकील और अंजलि की ओर से केस लड़ती हैं । जैसे ही केस शुरू होता है, बहुत सारे अनकहे राज सामने आते है । इसके बाद आगे क्या होता है, ये आगे की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

मनीष गुप्ता की कहानी में जबरदस्त क्षमता है और इसे समय की जरूरत है । यह आज के समय में भी काफी प्रासंगिक है । मनीष गुप्ता की पटकथा (अजय बहल की अतिरिक्त पटकथा के साथ) अधिकांश हिस्सों के लिए काफी प्रभावी है । फिल्म थोड़ी तकनीकी हो जाती है लेकिन इसे अपने लक्षित मल्टीप्लेक्स दर्शकों के लिए समझना आसान होगा । मनीष गुप्ता के डायलॉग (अजय बहल के अतिरिक्त संवादों के साथ) काफी शार्प और ज्वलनशील हैं । हालांकि, कई स्थानों पर, बहुत सारे अंग्रेजी संवाद हैं ।

अजय बहल का निर्देशन काफी उपयुक्त है । वह दर्शकों को अपनी कहानी के साथ आकर्षित करते है और 120 मिनट की अवधि में एक बार भी अपना ध्यान नहीं खोते है । इसके अलावा, वह दोनों पक्षों को अच्छी तरह से पेश करते हैं जो समझने योग्य है । यह एक कोर्टरूम ड्रामा है लेकिन इस शैली की पारंपरिक बॉलीवुड फिल्मों की तरह, यह फिल्म नाटकीय अंदाज में नहीं बनी है । हां, फिल्म में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन यह सब कुछ अधिक वास्तविक रूप से किया गया है । इसी के विपरीत, सेकेंड हाफ़ में फ़िल्म थोड़ी बिखर सी जाती है । आपको लगेगा कि फ़िल्म अप्रत्याशित क्षण खत्म होंगे लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि ऐसा नहीं होता है । तरुण को छोड़कर, हीरल और अंजलि के निजी जीवन को कभी नहीं दिखाया गया है और यह एक हद तक प्रभाव को कम करता है ।

सेक्शन 375 की शुरूआत बेहतरीन होती है । तरुण सलूजा ने 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले का उदाहरण देकर न्याय और कानून की अवधारणा को स्पष्ट किया है और यह दर्शाता है कि इसका पालन करना है । जिस दृश्य में अंजलि रोहन से उसके घर में मिलती है और वहां कथित बलात्कार होता है उसे काफी स्मार्ट तरीके से अंजाम दिया जाता है । और इसके बाद आता है दिल दहला देने वाला सीन- मेडिकल ऑफिसर [पुरुष] का अंजलि से बलात्कार के बारें पूछना वो भी उसकी मां के सामने, बहुत उदासीनता से भरा है । ये फ़िल्म हाई नोट पर तब जाती है जब कोर्ट रूम ट्राइल शुरू होता है । जिस तरह से यह बात सामने आई है कि जांच करने वाले पुलिस अधिकारी मिलिंद कासल (श्रीकांत यादव) ने एक बेहद घटिया काम किया, वह दर्शकों को हैरान कर देता है । इंटरवल के बाद, भी दिलचस्पी बरकरार रखती है । हालांकि इस दौरान कई कमियां भी है । क्लाइमेक्स में फ़ैसला दर्शकों को हैरान कर सकता है ।

अक्षय खन्ना परफ़ोरमेंस के मामले में छा जाते है । अन्य कलाकार भी अच्छा परफ़ोरमेंस देते हैं लेकिन अक्षय खना बहुत दमदार छाप छोड़ते है । चाहे वो उनकी डायलॉग डिलिवरी हो या कोर्ट में उनके सवाल-जवाब या उनकी कुटिल मुस्कान, हर रूप में उन्होंने प्रभावित किया है । ऋचा चड्ढा नो-नॉनसेंस वकील के रूप में बहुत अच्छी लगती हैं, जिनके न्याय का विचार अक्षय के किरदार से अलग है । उनका एक दिलकश दृश्य है जब हीरल अपने साथी के बारे में चर्चा कर रही है और अपने भोजन को अपने ‘प्रतिद्वंद्वी’ तरुण के साथ साझा कर रही है । राहुल भट अपने किरदार में समा जाते है । शुरूआती सीन में वह बहुत जंचते है जब वह सेट पर आते हैं और सभी पर चिल्लाते है । मीरा चोपड़ा के पास शुरू में बहुत कम संवाद हैं लेकिन सेकेंड हाफ़ में, उनका एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसमें वह अच्छा प्रदर्शन करती है । कृतिका देसाई (जस्टिस भास्कर) अच्छी हैं जबकि किशोर कदम (जस्टिस मडगांवकर) अपने हिस्से में बहुत प्रभावशाली हैं । और फ़िल्म में हंसी लेकर आते है । श्रीस्वारा अपनी खामोशी से बहुत कुछ बोलती है और अपनी मौजूदगी दर्ज कराती है । श्रीकांत यादव बहुत अच्छे हैं । दिब्येंदु भट्टाचार्य भी अपने रोल में जंचते है । संध्या मृदुल (शिल्पा) अपने स्पेशल रोल में बहुत जंचती है ।

सेक्शन 375 में कोई भी गाने नहीं है । क्लिंटन सेरेज़ो का पृष्ठभूमि स्कोर हालांकि सूक्ष्म और नाटकीय है । सुधीर के चौधरी की सिनेमैटोग्राफी काफी उपयुक्त है । कथित बलात्कार सीन को कई एंगल से शूट किया गया है जो बेहतरीन है । नीलेश वाघ का प्रोडक्शन डिजाइन अच्छा है । अमीरा पुनवानी की वेशभूषा यथार्थवादी है । प्रवीण आंगरे का संपादन क्रिस्प है ।

कुल मिलाकर सेक्शन 375, एक दमदार कोर्टरूम ड्रामा फ़िल्म है जो कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाती है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म अपने लक्षित दर्शकों के बीच सकारात्मक तारीफ़ से दर्शक जुटाने का दम रखती है ।