साल 1983 में धर्मेंद्र ने अपने बेटे सनी देओल को फ़िल्म बेताब से बॉलीवुड में लॉंच किया था । और अब पूरे 36 साल बाद सनी देओल अपने बेटे करण देओल को बॉलीवुड में लॉंच कर रहे हैं अपने निर्देशन में बनी फ़िल्म, पल पल दिल के पास, से । इस फ़िल्म में सनी देओल ने हिमालय के ऐसी जगहों को शूट किया है जो पहले कभी नहीं देखी गई । इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई पल पल दिल के पास क्या दर्शकों का मन लुभाने में कामयाब होगी, या यह अपने प्रयास में विफ़ल हो जाएगी, आइए समीक्षा करते है ।
पल पल दिल के पास, हिमालय की खूबसूरती और दिल्ली की बदसूरत राजनीति के बीच एक प्रेम कहानी है । करण सहगल (करण देओल) मनाली में रहते हैं और बहुत लोकप्रिय कैंप उझी ढार के मालिक हैं । जब वह 10 साल का था तब उसने अपने माता-पिता को हिमस्खलन में खो दिया है । दिल्ली की ब्लोगर साहेर सेठी (सहर बाम्बा ), जिसने अभी-अभी अपने प्रेमी विन्नी (आकाश आहूजा) से ब्रेक अप किया है, अपने सगे-संबंधियों से बचने के लिए एक बहाने के रूप में यहां आती है । यहां आने का खर्चा उसकी कंपनी उठाती है जिसके लिए साहेर ब्लॉगिंग करती है । वह परिवार के सामने असाइनमेंट का बहाना बनाकर करण की कंपनी की सर्विस का रिव्यू करने के लिए दिल्ली से मनाली चली जाती हैं । यहां उसकी मुलाकात करण से होती है इसके बाद कहानी आगे बढ़ती है । आगे क्या होता है, ये फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।
जसविंदर सिंह बाथ और रविशंकर की कहानी काफ़ी साधारण और पुरानी है । यह चौंकाने वाला है कि इस तरह की कहानी को आज के दौर और पीढ़ी में अप्रूव किया गया । जसविंदर सिंह बाथ और रवि शंकरन की पटकथा भी खराब है, खासकर सेकेंड हाफ़ में । फ़र्स्ट हाफ भी कुछ खास नहीं है । जसविंदर सिंह बाथ और रविशंकर के डायलॉग भी कुछ भी यादगार नहीं हैं ।
सनी देओल का निर्देशन सरल और सभ्य है । वह फ़र्स्ट हाफ़ में पर्वतारोहण के दृश्यों को बहुत अच्छे से अंजाम देते है । इसके अलावा, वह विजुअल्स और लोकल्स को शूट करने में न्याय करते है । क्योंकि फ़िल्म की कहानी कमजोर और पुरानी है इसलिए उनका निर्देशन भी फ़िल्म को बचा नहीं पाता है । वह एक्शन के साथ फ़िल्म की अपील बढ़ाने की कोशिश करते है ।
पल पल दिल के पास, की शुरूआत काफ़ी खराब होती है, जिसमें करण का बचपन और उनका वर्तमान जीवन दिखाई देता है । सहर का एंट्री सीन भी समझ के परे है । फिल्म का सबसे बेहतरीन दृश्य तब आता है जब सहर बेहोश हो जाती है और करण उन्हें अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाता है । बाकी दृश्य ठीक हैं और लोकेशन और ट्रेकिंग फैक्टर के फ़िल्म में दिलचस्पी बरकरार रहती है । सेकेंड हाफ़ की शुरूआत काफ़ी अच्छी होती है । लेकिन शुरू होते ही फ़िल्म फ़िर से बिखर जाती है । क्योंकि अब कोई कहानी है ही नहीं । और जो भी कहानी दिखाई जाती है वह काफ़ी पुरानी और रुटीन लगती है । फ़िल्म पूरी तरह से प्रिडिक्टेबल है । फ़ाइनल सीन भी काफ़ी सरल और समझ के परे लगता है ।
करण देओल अपना प्रयास करते है लेकिन नाकाम रहते है । वह बहुत रॉ लगते हैं । उन्हें एक अच्छा अभिनेता बनने के लिए मार्गदर्शन की आवश्यकता है । एक्शन दृश्यों में वह अपने पिता की तरह दहाड़ने की कोशिश करते हैं जो फ़्रंट बेंचर्स को लुभा सकता है । सहर बाम्बा अपनी अच्छी भूमिका निभाती है और उनकी शानदार स्क्रीनि मौजूदगी है । आकाश आहूजा खलनायक के रूप में ठीक हैं । कामिनी खन्ना (सहर की दादी) प्यारी हैं और एक मजाकिया दृश्य में हंसी लाती हैं । मेघना मलिक ने एक बड़ी छाप छोड़ती है । आकाश धर, सिमोन सिंह (साहेर की माँ), सचिन खेडेकर (साहेर के पिता), नूपुर नागपाल (नताशा), विजयंत कोहली (कपिल गुप्ता) और कल्लरोई तज़ियाता (करण की माँ) सभ्य हैं ।
संगीत ठीक है लेकिन कुछ गानों को अच्छे से फिल्माया गया है । 'पल पल दिल के पास' एक महत्वपूर्ण मोड़ पर आता है । 'हो जा आवारा' सभी में बेहतर है । करण की एक्टिंग की वजह से 'अदा भी ज्यादा' काम करने में नाकाम होता है । राजू सिंह और ऋषि रिच का बैकग्राउंड स्कोर काफी प्राणपोषक है ।
हिमांशी धामेजा और रागुल धरमन की सिनेमैटोग्राफी शानदार है । हिमाचल प्रदेश के स्थानों को खूबसूरती से फिल्माया गया है । पूरी टीम उन स्थानों पर फिल्म की शूटिंग के लिए श्रेय की हकदार है जो सेल्युलाइड पर पहले कभी नहीं देखे गए । रसूल पकुट्टी का साउंड डिज़ाइन फ़िल्म में प्रभाव को जोड़ता है । अमरदीप बहल और टीना धरमसी की प्रोडक्शन डिजाइन आकर्षक है । निहारिका खान और विशाखा कुँवरवार की वेशभूषा बहुत ही ग्लैमरस है, विशेष रूप से सहर बाम्बा द्वारा पहने गए । विक्रम दहिया के एक्शन अच्छे हैं । प्राइम फोकस का वीएफएक्स काफी ठीक है और स्नो लेपर्ड सीक्वेंस में बेहतर हो सकता था । देवेन्द्र मुर्देश्वर का संपादन धीमा हो सकता था, यह देखते हुए कि यह फिल्म 153 मिनट में बहुत लंबी है ।
कुल मिलाकर, पल पल दिल के पास एक पुरानी कहानी है जो कुछ पहाड़ी सीन और सनी देओल के निर्देशन की वजह से काफ़ी हद तक बच जाती है । नतीजतन बॉक्सऑफ़िस पर इस फ़िल्म को काफ़ी संघर्ष करना पड़ेगा ।