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पांच साल पहले, गौरी शिंदे ने इंग्लिश विंग्लिश फ़िल्म के साथ निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा था और इस फ़िल्म में उन्होंने एक उद्यमी गृहिणी की एक अद्भुत कहानी को दर्शाया था । यह आश्चर्य की बात है कि भारत में लाखों ऐसी महिलाएं हैं, लेकिन उन पर बहुत कम फिल्में बनाई गई हैं । सुरेश त्रिवेणी ने फ़िल्म तुम्हारी सुलु में, एक गृहिणी की महत्वाकांक्षाओं को दर्शाने की चुनैती ली । लेकिन इंग्लिश विंग्लिश के विपरीत, तुम्हारी सुलु एक हल्की-फ़ुल्की मजेदार फ़िल्म है । तो क्या यह फ़िल्म दर्शकों को छू पाने और उनके चेहरे पर मुस्कुराहट लाने में कामयाब होती है या निराश करती है ? आइए समीक्षा करते हैं ।

तुम्हारी सुलु उद्यमी गृहिणी की कहानी है जो लेट नाइट सेमी-एडल्ट रेडियो शो की आरजे बन जाती है । सुलोचना (विद्या बालन) मुंबई में रहने वालीं एक गृहिणी है और उनके पति हैं अशोक (मानव कौल) और उनका एक बेटा है प्रणव (अभिषेक शारमा) । सुलोचना की, जिंदगी में कुछ करने की इच्छा है और वह अपना समय सिर्फ़ परिवार की सेवा में बर्बाद नहीं करना चाहती है । एक दिन, वह लोकप्रिय आरजे अलबेली अंजली (मलिश्का मेंडोंसा) द्वारा आयोजित एक रेडियो शो में एक प्रेशर कुकर जीतती है । सुलोचना अपने कुकर को लेने के लिए रेडियो स्टेशन जाती हैं और वहां उसे पता चलता है कि उन्हें एक रेडियो शो के लिए आर जे की तलाश है । वह मारिया (नेहा धूपिया) से संपर्क करती है जो रेडियो स्टेशन चलाती है और कहती है कि उन्हें इस जॉब में दिलचस्पी है । मारिया उसे लेट नाइट का स्लॉट देती है और सुलोचना को एक अर्ध-वयस्क शो चलाने के लिए कहा जाता है । सुलोचना एक आरजे के रूप में काम करना शुरू कर देती है और उसका शो एक हिट शो बन जाता है । इसके बाद सुलोचना की जिंदगी में क्या समस्याएं और पागलपन आता है, यह सब बाकी की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

तुम्हारी सुलु काफ़ी खूबसूरती से बनाई गई है और तुरंत ही एक मूड सेट कर देती है । यह फिल्म ऋषिकेश मुखर्जी और बसु चटर्जी सिनेमा की याद दिलाती है और यह एक प्लस प्वाइंट है । हालांकि मुख्य किरदारों के परिचय के बाद, इंटरेस्ट लेवल और गति सुस्त पड़ जाती है । फ़र्स्ट हाफ़ प्रमुख अंशों से रहित है । फ़िल्म में रुचि तब जागती है जब सुलु आर जे बनने का फ़ैसला करती है और ऑडिशन देती है । सेकेंड हाफ़ बेहतरीन हो जाता है क्योंकि सुलु सफ़लतापूर्वक लेट नाइट शो चलाती है । जिस तरीके से सुलू अपने घर चलाने के साथ-साथ जॉब को भी संभालती है, उसे काफ़ी अच्छे तरीके से दर्शाया गया है । इसके अलावा, जिस तरह से सुलु को उसकी बहनों द्दारा ताना मारा जाता है, वह वास्तव में बहुत ही वास्तविक है । हालांकि, फिल्म की गति बहुत धीमी है और यह वास्तव में प्रभाव को प्रभावित करती है । इसके अलावा, सुलु के शो की अचानक सफलता थोड़ी अवास्तविक सी दिखाई देती है । यह 140 मिनट लंबी फ़िल्म 15-20 और छोटी हो सकती थी । क्लाइमेक्स अस्पष्ट है और थोड़ा सरल होना चाहिए था । हालांकि अंतिम सीन इसकी भरपाई कर देता है ।

सुरेश त्रिवेणी की कहानी बहुत सरल और काफ़ी रिलेटेबल है । सुरेश त्रिवेणी की पटकथा ज्यादातर दृश्यों में प्रभावशाली है, लेकिन कुछ दृश्यों में थोड़ा खींच सी जाती है । सुरेश त्रिवेणी के डायलॉग यथार्थवादी और मजाकिया हैं । विजय मौर्य के एडिशनल स्क्रीनप्ले और डायलॉग को विशेष उल्लेख दिया जाना चाहिए । सुरेश त्रिवेणी का निर्देशन सरल है और यह फ़िल्म के लिए काफ़ी काम करता है । सेटिंग, किरदार और उनकी समस्याएं उतनी ही यथार्थ हैं जितनी की हो और इसलिए अधिकांश सिनेप्रेमी इससे जुड़ सकेंगे । लेकिन दूसरी तरफ़ देखें तो, वह शुरूआती घंटों में कहानी को बुनने में काफ़ी वक्त लगाते हैं । और यही सेकेंड हाफ़ के मध्य में भी होता है ।

विद्या बालन फ़िल्म की आत्मा है और वह फ़िल्म को पूर्ण रुप से एक अलग ही स्तर पर ले जाती है । कहानी के बाद ये उनका सबसे निपुण कार्य है और सभी को प्रभावित करने का दम रखता है । शुभकामनायी गृहिणी के रूप में, वह अपने किरदार में समा जाती हैं और अपनी भूमिका को पूरी शिद्दत से परफ़ेक्शन के साथ निभती है । मानव कौल काफ़ी डेशिंग दिखते हैं और विद्या बालन से अच्छी तरह मेल खाते है । वह एक दिलचस्प भूमिका निभाते हैं और सफ़लतापूर्वक अपना काम कर जाते है । नेहा धूपिया ग्लैमरस दिखाई देती हैं और अच्छा काम करती हैं । विजय मौर्य (पंकज) फ़र्स्ट हाफ़ में मजेदार है । हालांकि सेकेंड हाफ़ में उनके पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है लेकिन फ़िर भी वह एक छाप छोड़ देते हैं । अभिषेक शर्मा अच्छे है । मलिश्का मेंडोंसा एक कैमियो में अत्मविशावासी दिखती है । आयुष्मन खुराना एक दृश्य में दिखाई देते है और प्यारे लगते हैं । सीमा तनेजा (सुलु की बहन आराधाना) और सिंधु शेखरन (सुलु की बहन कल्पना) बहुत जंचती हैं । सोनल सिंह (रिसेप्शनिस्ट गिरिजा) विशेष रूप से अपने पहले दृश्य में एक छाप छोड़ती हैं । संतनु घटक (सचिन, अशोक की नई गति) एक विश्वसनीय प्रदर्शन देते हैं । भूमिक दुबे (जिम रिसेप्शनिस्ट) ठीक है जबकि तृप्ती खामकर (ओला ड्राइवर) एक अद्भुत किरदार अदा करती हैं और जो यादगार है ।

गानों की बात करें तो, 'हवा हवाई 2.0’ वाकई मजेदार है और अच्छे से फ़िल्माया गया है । दूसरा गाना जो अच्छा है वो है 'बन जा रानी' जो वास्तविक और प्यारा सा अनुभव देता है । 'फ़र्राट' थोड़ा सा अटपटा सा लगता है खासकर बी-बॉयिंग के शॉट्स । 'रफू 'भावपूर्ण है लेकिन थोड़ा खो जाता है ।

करन कुलकर्णी का पृष्ठभूमि स्कोर अनूठा है और फ़िल्म में रुचि जगाता है । सौरभ गोस्वामी का छायांकन स्वच्छ और संतोषजनक है । धारा जैन का प्रोडक्शन डिज़ाइन पूरी तरह से ईमानदार है और बहुत अधिक यथार्थपूर्ण है । शिवकुमार पानिकर का संपादन और अधिक शार्प होनी चाहिए था । रिकी रॉय के कॉस्ट्यूम बहुत प्रमाणिक हैं विशेष रूप से विद्या बालन द्वारा पहनी गई साडियां ।

कुल मिलाकर, तुम्हारी सुलु एक आनन्ददायक, प्यारी फ़िल्म है लेकिन लंबी लंबाई और फिल्म की धीमी रफ्तार मजा खराब कर सकती है ।

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