/00:00 00:00

Listen to the Amazon Alexa summary of the article here

देश भर में फ़ेस्टिव सीजन और साल के खत्म होने का माहौल है, और अक्सर इस मौके पर कई बड़ी फ़िल्म सिनेमाघरों में दस्तक देती है । इस साल सलमान खान और कैटरीना कैफ़ अभिनीत, टाइगर जिंदा है सिनेमाघरों में रिलीज हुई, और इसके पक्ष में कई बातें जाती हैं । ब्लॉकबस्टर फ़िल्म एक था टाइगर [2012], के सीक्वल के अलावा यह फ़िल्म जबरदस्त स्टार कास्ट, हैरतअंगेज एक्शन से भरे ट्रेलर और चार्टबस्टर म्यूजिक का दावा करती है । तो क्या टाइगर जिंदा है, के साथ साल का अंत उच्चता के साथ होता है? या यह फिल्म निराश करती है ? आइए समीक्षा करते हैं ।

टाइगर ज़िंदा है, एक भारतीय और पाकिस्तानी जासूस की कहानी जो एक बड़ी वजह से एक साथ आते है । टाइगर (सलमान खान) और जोया (कैटरीना कैफ) आईएसआई और रॉ के चंगुल से बचते हैं और फिर वे यूरोप के बर्फ़ीले पहाड़ों पर सुखद जीवन जीना शुरू कर देते है । इस बीच इक्रित, इराक, अबू उस्मान (सज्जाद डेलाफ्रूज़) आईएससी के प्रमुख के रूप में उभरता हैं जो विश्व के सबसे धनी और सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन बनता है । अमेरिकन नाराज हो जाते है और वे अबु और उसके काफ़िले पर हमला बोल देते है और इसमें अबू घायल हो जाता है । उसी समय, 40 नर्सों का एक समूह जिसमें - 25 भारतीय हैं और 15 पाकिस्तानी हैं, जहां वह काम करती हैं वहां जा रही होती है । अबू के आदमी अबू का तुरंत इलाज करने के लिए नर्सों को अबू को साथ ले जाने के लिए मजबूर करते है । वे अस्पताल को टेक ओवर कर लेते है और नर्सों को बंधक बना लेते हैं । अमेरिकी 7 दिनों के भीतर अस्पताल पर हवाई हमला शुरू करने  का फैसला करते है । इसलिए, भारतीयों के पास नर्सों को बचाने के लिए सिर्फ एक सप्ताह का समय है । उच्च सुरक्षा आईएससी क्षेत्र में घुसपैठ करना असंभव है । रॉ के सीनियर ऑफ़िसर सीनॉय (गिरीश कर्नाड) सुझाते है कि टाइगर को बुलाया जाना चाहिए क्योंकि वह ही केवल एक ऐसा व्यक्ति है जो सफलतापूर्वक इस मिशन को पूरा कर सकता है । टाइगर को खोज लिया जाता है और वह तुरंत इस मिशन को अपने हाथ में ले लेता है । टाइगर आईएससी क्षेत्र में घुसपैठ कैसे करता है और नर्सों को कैसे बचाता है, यह सब बाकी की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

टाइगर ज़िंदा है, जेम्स फॉरवर्ड (टायलर गोवर्धन) के सीक्वंस के साथ एक आकर्षक नोट पर शुरू होती है । अबू उस्मान ने आतंकवाद को फैलाया है, यह बहुत अच्छी तरह से दर्शाया जाता है । उम्मीद के मुताबिक, टाइगर की एंट्री ताली बजाने योग्य है और जिसका स्वागत सीटी और ताली के साथ किया जाएगा । पूरा भेड़िए वाला सीन, अंतरराष्ट्रीय मानकों के समान है और यह वास्तव में आपको महसूस करता है कि हिंदी सिनेमा ने वास्तव में विकास की पराकाष्ठा प्राप्त कर ली है । फिल्म में एक अप्रत्याशित बिट है कि इसमें टाइगर और जोया द्दारा वैवाहिक समस्याओं का सामना किया गया है । निंसंदेह, मजा तब आता है जब टाइगर इराक पहुंचता है और हॉस्पिटल जाने का प्लान बनाता है । फिरदौस (परेश रावल) का परिचय फ़िल्म में हास्य को जोड़ता है । इंटरवल से पहले मार्केट का सीन काफ़ी विस्तारित है लेकिन अत्यधिक मनोरंजक भी है । सेकेंड हाफ़ तक मजा बरकरार रहता है लेकिन फ़िल्म की गति यहां थोड़ी धीमी पड़ जाती है । इसके अलावा, यह थोड़ी अविश्वसनीय लगती है जिसे अनदेखा किया जा सकता है । टाइगर और उनकी टीम को ऐसा नहीं लगता था कि घायल हो गए ताकि उन्हें अस्पताल ले जाया जाए - वे आसानी से रिफाइनरी में स्वयं का इलाज कर सकते थे । मेकर्स को उन्हें शायद ज्यादा घायल दिखाया जाना चाहिए था । इसके अलावा, जिस तरीके से जोया और फ़िऱदौस अमेरिकियों को उनका साइड के लिए समझाना, और जोया का अमेरिकियों को कमांड करना, थोड़ा पचाना मुश्किल है । कहानी मध्य में बिखर सी जाती है, लेकिन पिछले 30 मिनट में गति पकड़ लेती है । क्लाइमेक्स एक बार फ़िर से काफ़ी लंबा है लेकिन यह शानदार ढंग से फ़िल्माया जाता है और दर्शकों को उनके पैसे की कीमत देता है ।

नीलेश मिश्रा और अली अब्बास जफर की कहानी भावनाओं, एक्शन, रोमांस, हास्य और देशभक्ति का एक बहुत अच्छा मिश्रण है । और वहीं, यह एक था टाइगर का बढ़िया सीक्वल है और यह निश्चित रूप से प्रशंसनीय है । अली अब्बास जफ़र का स्क्रीनप्ले बांधे रखने वाला है । अली अब्बास जफर के डायलॉग सरल,लेकिन अत्यधिक प्रभावी हैं । अंग्रेजी डायलॉग का इस्तेमाल कई जगहों पर किया जाता है, लेकिन एक बार फ़िर, ये काफ़ी सरल हैं, और उन सीन को ऐसे स्क्रिप्ट और निर्देशित किया जाता है, कि जो भले ही अंग्रेजी नहीं समझ पाए या सबटाइट्ल्स को न पढ़ पाए, वो भी इन्हें देखकर आसानी से समझ सकते है कि क्या चल रहा है । अली अब्बास जफ़र का निर्देशन बड़े पैमाने पर आकर्षित करता है और इसी के साथ यह सुनिश्चित करता है कि यह फ़िल्म उनका क्लास प्रोडक्ट है । वह समय न गंवाते हुए दुनिया और किरदारों को स्थापित करते है और ये सब तुरंत कहानी के साथ घुलमिल जाते है । टाइगर और जोया के बीच रोमांटिक सीन भी काफ़ी अच्छी तरह से दर्शाए गए हैं । सबसे दिलचस्प पहलुओं में से एक है पूरा भारत-पाकिस्तान का एंगल और यह निश्चित है कि यह दर्शकों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाता है और साथ ही आंसू भी लेकर आता है । इस फ़िल्म में शांति का बहुत बढ़िया संदेश दिया जाता है, जिसकी सराहना की जानी चाहिए !

अभिनय की बात करें तो, सलमान खान एक बार फ़िर धमाकेदार परफ़ोरमेंस देते है । कई जगह, वह अपना किरदार सयंत तरीके से निभाते है जो उनके जासूसी एक्ट के साथ बहुत अच्छी तरह से जंचता है । इसके अलावा, अपने परिवार के साथ उनकी बातचीत देखना रुचिकर है । सलमान खान ट्यूबलाइट में अपने दर्शकों को निराश करते हैं लेकिन टाइगर जिंदा में नहीं करते, वह काफ़ी अच्छे तरीके से इसकी भरपाई करते हैं और निश्चितरूप से दर्शक उनकी परफ़ोरमेंस का आनंद उठाते है । शुक्र है इसमें कैटरीना महज खूबसूरत अभिनेत्री की तरह नहीं लगती है । उनका बहुत महत्वपूर्ण रोल है और वह कई खतरनाक एक्शन सीन करती हुई नजर आती है । वह 'दिल दियां गल्लां" गाने में बहुत खूबसूरत लगती है और वहीं एक्शन अवतार में काफ़ी कूल दिखाई देती है । सज्जद डेलाफ्रूज़ विलेन के किरदार को बहुत अच्छी तरह से निभाते है । अगर उन्होंने कमजोर परफ़ोरमेंस दिया होता तो यह फ़िल्म आधी सफ़ल नहीं होती । उनका चेहरा, बॉडी लैंगग्वज और संतुलन एक स्पष्ट संदेश देता है कि उन्हें सिर्फ़ बिजनेस से मतलब है । परेश रावल शानदार हैं और उनके इस प्रदर्शन के लिए उन्हें लंबे समय तक याद रखा जाना चाहिए । वह हंसी के भागफल में भी योगदान देते है । अंगद बेदी (नवीन) ठीक है और क्लाइमेक्स सीन में अपनी महत्त्ता को दर्शाते है । कुमूद मिश्रा (राकेश) ने एलेन के साथ एक दिलचस्प किरदार को निभाया है । परेश पहूजा (आजा अकबर) ने कम स्क्रीन टाइम के बावजूद एक अमिट छाप छोड़ी है । बाल कलाकार जनीत रथ (हसन) और सरताज कक्कर (जूनियर) के अहम किरदार है निभाने के लिए और जिन्हें अच्छी तरह से निभाया जाता है । गिरीश कर्नाड हमेशा की तरह है, जबकि अनंत विदात (करण), जिन्होंने सुल्तान में अच्छा काम किया, एक विश्वसनीय प्रदर्शन देते है । अनुप्रिया गोएंकर (पूरणा) नर्सों में सबसे ज्यादा स्कोप पाती है और वह इसके साथ न्याय भी करती है । बाकी के सभी किरदार अपना-अपना किरदार अच्छे से निभाते है ।

विशाल-शेखर का संगीत मधुर है और अच्छी तरह से स्क्रिप्ट में समा जाता है । 'दिल दियां गल्लां' बहुत प्यारा है । 'तेरा नूर' फिल्म का सर्वश्रेष्ठ चित्रित गीत है और यह बहुत अच्छा है कि इस तरह की विपरीत स्थिति में ऐसा गाना इस्तेमाल किया जाता है । 'स्वैग से स्वागत' एक चार्टबस्टर गीत है और अंत में क्रेडिट देनेके लिए बजाया जाता है । 'जिंदा है' और 'दाता तू' फिल्म से गायब हैं लेकिन इसके लिए कोई शिकायत नहीं है ! जूलियस पैकेम का पृष्ठभूमि स्कोर नाटकीय और प्राणपोषक है और फिल्म की गति को बढ़ाता है ।

मार्सिन लस्कावियस की सिनेमैटोग्राफी मनोरम है और फिल्म को एक अंतर्राष्ट्रीय अनुभव देती है । रामेश्वर एस भगत का संपादन आसान है और कई जगहों पर सटीक है । टॉम स्ट्रथर्स के एक्शन बहुत ज्यादा रक्तरंजित नहीं है और लोगों द्दारा पसंद किए जाएंगे । रजनीश हैदो का प्रोडक्शन डिजाइन बहुत ही प्रामाणिक है । यही वाईएफएक्स के वीएफएक्स के लिए भी फ़िट बैठता है - यह अब से भारतीय फिल्मों के लिए एक बेंचमार्क के रूप में काम करेगा ! अलविरा खान अग्निहोत्री, एशले रीबेलो और लेपेक्षी एलावाडी की वेशभूषा भी काफी वास्तविक और बहुत अच्छी तरह से शोध की गई है ।

कुल मिलाकर, टाइगर जिंदा है एक्शन से भरी सर्वश्रेष्ठ मनोरंजक फ़िल्म है जो अपनी शैली के साथ न्याय करती है । बॉक्सऑफ़िस पर, दर्शक इस फ़िल्म का शानदार 'स्वागत' करेंगे क्योंकि यह फ़िल्म उनके मनोरंजन का वादा करती है । यह फ़िल्म निश्चितरूप से ब्लॉकबस्टर है और इस फ़िल्म को नए रिकॉर्ड बनाने से कोई नहीं रोक सकता ।