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अक्सर सोचा कि, गैंगस्टर, अपराधियों और अंडरवर्ल्ड पर बनने वाली फ़िल्मों में कुछ ऐसी बात तो जरूर है…कि क्यों पूरी दुनियाभर के अनेक फ़िल्ममेकर्स इस शैली की फ़िल्मों से इतने आकर्षित है ? हालांकि मैं, इस शैली की फ़िल्मों का जबरदस्त प्रशंसक नहीं हूं । लेकिन साथ ही मुझे यह कहना ही होगा कि मैंने मुंबई में बनी क्राइम बेस्ड फ़िल्में-दीवार, धर्मात्मा, परिंदा, अग्निपथ, सत्या, वास्तव, गैंगस्टर, शूटआउट एट लोखंडवाला, वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई...का भरपूर आनंद लिया । इन फ़िल्मों में फ़िल्म इंडस्ट्री के कई सारे बड़े नाम जुड़े थे । इन फ़िल्मों में याद रखने योग्य वेल्यू है । मेरे मन पर एक अमिट छाप छोड़ने के अलावा इन फ़िल्मों ने समय की रेत पर भी एक अमिट छाप छोड़ी ।

रईस के बारें में जबरदस्त अटकलें है...इस फ़िल्म की कहानी असल जिंदगी से प्रेरित है…यह असल जिंदगी के किरदारों पर आधारित है…सच कहूँ तो, फ़िल्म में दिखाए गए किरदारों/सीन की प्रमाणिकता पर टिप्पणी करने के लिए या अटकलों को जांचने के लिए मैं सही शख्स नहीं हूं, लेकिन एक सिनेप्रेमी होने के नाते, मुझे यह स्वीकार करना ही होगा कि रईस ने मुझे अपनी दुनिया में पहुंचा दिया । अपराधियों/गुंडों के जीवन पर आधारित ज्यादातर फ़िल्मों की एक सुनिश्चित पटकथा होती है: एक आम आदमी का जुर्म का रास्ता अपनाना, उसका एक नामी गिरामी अपराधी बन जाना, अमीर और प्रभावशाली लोगों में उठना बैठना, लेकिन आखिर में कानून के हाथों सब हिसाब-किताब बराबर हो जाना । रईस भी ऐसा ही खाका/प्लॉटलाइन पेश करती है…अंतर सिर्फ़ इतना है कि, इस शैली की कई फिल्मों की तुलना में, यह फ़िल्म दृष्टिकोण में अधिक यथार्थवादी है ।

निर्देशक राहुल ढोलकिया ने रईस में एक दमदार पावर प्ले और रईस व ईमानदार पुलिस वाले जयदीप के बीच चूहे-बिल्ली जैसा पीछा, बहुत ही प्रभावशाली ढंग से दर्शाया है, मेरी राय से, यही इस फ़िल्म का मुख्य आधार है । यह कहने के बाद, मैं स्वीकार करता हूं, जो फ़िल्म को एक ऊंचाई पर लेकर जाता है वो है शाहरुख खान और नवाजुद्दीन सिद्दीकी, जिसने अपने-अपने हिस्से में बेहतरीन किया, द्दारा निभाए गए कमाल के किरदार ।

यहाँ पेश है संक्षिप्त में फ़िल्म की प्लॉटलाइन...1980 के दशक की पृष्ठभूमि में, रईस [शाहरुख खान] सिस्टम प्रणाली को हराने की कोशिश करता है और अपनी शर्तों पर सफ़ल भी हो जाता है । उद्यमशीलता के लिए उसका प्राकृतिक स्वभाव और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के दौरान कभी हार न मानने वाले दृढ़ संकल्प, ने उसे प्यारा और डरावना दोनों बना दिया । और फ़िर होती है पुलिस वाले जयदीप [नवाजुद्दीन सिद्दीकी], जिसने अपराध को खत्म करने... और रईस के 'साम्राज्य' को खत्म करने की प्रतिज्ञा ली है, की एंट्री ।

बीते हुए युग को एक बार फ़िर से बनाना वाकई बहुत मुश्किल काम है, लेकिन सबसे मुश्किल हिस्सा है, वर्तमान के दर्शकों, जिन्हें उन किरदारों और उस युग के बारें में कोई जानकारी नहीं है, को शामिल करना है । प्रोडक्शन ने बिना किसी गलती के उस युग को बेहतरीन ढंग से बनाया है, ढोलकिया और उनके लेखक की टीम [हरित मेहता, आशीष वाशी, नीरज शुक्ला और खुद ढोलकिया] ने इस बात का पूरा ख्याल रखा कि फ़िल्म की लिखित सामग्री इतनी शक्तिशाली हो कि दर्शक तल्लीनता से फ़िल्म का मजा लें । परिणामस्वरूप, यह फिल्म न केवल 1980 के दशक की यादें ताजा करती है बल्कि, ये आपको उन बीते दिनों को महसूस भी कराती है और इसले लिए किरदारों और एपिसोड्स, जो फ़िल्म मे हाइलाइट किए गए, का धन्यवाद ।

ढोलकिया, वास्तव में एक कट्टर व्यावसायिक फिल्म निर्माता होने के लिए नहीं जाने

जाते हैं । लेकिन जब आप इनके काम करने का तरीका देखते हैं तो आपको खुद-ब-खुद यह महसूस हो जाता है कि उनका झुकाव वास्तविकता में ज्यादा है बजाए कृत्रिमता के । लेकिन रईस के बारें में बात करें तो, रईस में वास्तविकता और मसाला दोनों ही आश्चर्यजनक रूप से जोड़ा है । फ़िल्म की कहानी बिना जोड़ के सीधे, रोमांस [शाहरुख खान-माहिरा] से 'कौन किससे बढ़ के' के खेल की और रुख कर लेती है जब चोर पुलिस की भिड़ंत होती है । ये एक बड़े बजट की फ़िल्म है और शाहरुख और ढोलकिया ये भलीभांती जानते हैं कि दांव बड़ा है । उन्होंने वास्तविकता को बनाए रखा है, और इस बात का ख्याल रखा है कि फ़िल्म की गति और ऊर्जा कदाचित कम न हो…लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि, उन्होंने शाहरुख खान के करोड़ों प्रशंसकों को जरा भी निराश नहीं किया है । एक कहानीवक्ता के रूप में वह लीप लेते हैं, और लिखित सामग्री के साथ पूरा न्याय करते हैं और साथ ही फ़िल्म के हर किरदार से उनकी बेहतरीन परफ़ोरमेंस को निचोड़ने में कामयाब रहते हैं ।

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गलतियां ? ओह हां ! फ़िल्म का फ़र्स्ट हाफ़ आपकी उत्सुकता को खोलकर रख देता है, और फ़िर आप सेकेंड हाफ़ देखने के लिए लालायित हो जाते हैं । लेकिन यहाँ समस्या पैदा होती है । इंटरमिशन के बाद फ़िल्म की गति धीमी पड़ जाती है और रोमांटिक गीत और कुछ सीक्वेंस सीन विफ़ल हो जाते हैं । शुक्र है, फिल्म फ़िर से अपनी रफ़्तार पकड़ती है जब रईस की जिंदगी एक नाटकीय मोड़ लेती है, जो कि फ़िल्म का हाई-वॉल्टेज क्लाइमेक्स है ।

फ़िल्म का साउंडट्रेक अच्छा है, हालांकि फ़िल्म के डांस और गीत में थोड़ी और गुंजाइश हो सकती थी । फ़िल्म के गाने 'लैला मैं लैला' और 'ज़ालिमा' गाना पहले ही दर्शकों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हो गया है । हालांकि 'लैला मैं लैला' गाना फ़िल्म के महत्वपूर्ण मोड़ पर आता है और कहानी को आगे ले जाता है । बैकग्राउंड स्कोर प्रभावोत्पादक है, विशेषरूप से सिग्नेचर ट्यून जिसे कथानक में उदारतापूर्वक इस्तेमाल किया गया ।

फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफ़ी [K.U. मोहनन] ने सेल्यूलाइड पर स्थानीय स्थानों को बहुत ही शानदार ढंग से कैप्चर किया है । एडिटिंग [दीपा भाटिया] एकदम कसा हुआ है । दर्शकों को ध्यान में रखकर डायलॉग बनाए गए जो अपना असर छोड़ते हैं । 'बनिए का दिमाग और मियांभाई का डेरिंग' और 'अम्मी जान कहती थी, कोई धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धरम नहीं होता' जैसे कई बेहतरीन डायलॉग पहले ही दर्शकों के बीच अपनी जगह बना चुके हैं । मुझे नवाजुद्दीन की लाइनों पर भी ध्यान आकर्षित करना चाहिए ; वो लोगों में उत्साह और उमग़ भर देंगे, विशेषरूप से फ़र्स्टहाफ़ में । एक्शन सीक्वेंस बेहद दमदार हैं ।

रईस में शानदार प्रदर्शन लगातार उल्लेखनीय हैं । शाहरुख बढ़िया कलाकार के साथ-साथ शो-स्टीलर भी हैं । फ़िल्म में उनका ग्रे किरदार,उनके करियर के प्रारंभ में उनकी पुरस्कार योग्य परफ़ोरमेंस की याद दिलाता है । नवाजुद्दीन ने अपने सह-कलाकार की प्रतिभा से मैच करते हुए अपनी शानदार परफ़ोरमेंस देते हैं । दोनों, शाहरुख खान और नवाजुद्दीन का प्रदर्शन आपको फ़िल्म की कहानी के साथ-साथ किरदारों में डूबो देता है । माहिरा खान बेहद खूबसूरत लगती हैं और पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने किरदार को निभाती हैं ।

मोहम्मद जीशान अय्यूब [शाहरुख खान के विश्वासपात्र] की एक ठोस भूमिका में पूरी तरह से डूब जाते हैं और एक बड़ा प्रभाव छोड़ते हैं । अतुल कुलकर्णी अपनी मौजूदगी एक प्रतिबद्ध प्रदर्शन के साथ महसूस कराते हैं । शीबा चड्ढा [शाहरुख खान की मां] एक संक्षिप्त भूमिका में जंचती हैं । नरेंद्र झा [मूसा भाई], जयदीप अहलावत [नवाब], उत्कर्ष मजूमदार [चिकित्सक], प्रमोद पाठक [मुख्यमंत्री] और उदय तिकेकर [पाशा भाई] अपने-अपने भागों में परिपूर्ण हैं । सनी लियोन 'लैला मैं लैला' आइटम नंबर में सनसनी फ़ैला देती है ।

कुल मिलाकर, रईस पक्के तौर पर एक हिट फ़िल्म है । इसमें कोई शक नहीं है कि शाहरुख खान एक सेंशेनल अभिनेता हैं । जो प्यार, मनुहार और स्टारडम शाहरुख को उनकी प्रारंभिक फिल्मों में प्राप्त हुआ वही सब कुछ, एक बार फ़िर रईस में भी मिलेगा । इस फ़िल्म को हिट कराने में कुछ तथ्यों का भारी योगदान है और उनमे शामिल हैं, नवाजुद्दीन सिद्दीकी की जबरदस्त परफ़ोरमेंस, भीड़ जुटाने के लिए लिखी गई इसकी विषय सामग्री और निंसंदेह इसका मनोरंजक क्लाइमेक्स । जहां तक बॉक्सऑफ़िस का सवाल है, इसे हिट होने से कोई नहीं रोक सकता । यह प्रत्यक्ष रूप से एक विजेता है । इसे बिल्किल भी मिस मत कीजिए !

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